कुड़मी समाज का बाछट कमिया सिखनात कुंबा का शुभारंभ

गोड्डा : कुड़मी समाज का बाछट कमिया सिखनात कुंबा का शुभारंभ- कुड़मी

कबिला का परंपरागत रुढ़ी स्वशासन आधारित अंतरराष्ट्रीय संगठन

‘‘माहा देसमड़ल जड़पा’’ द्वारा आयोजित दुअ दिनिया ‘‘बाछट कमिया सिखनात कुंबा’’ का शुभारंभ हुआ.

आयोजित कुंबा (शिविर) का तालेबरि (अध्यक्षता) संजीव कुमार महतो ने किया.

कुंबा का जानकारी देते हुए संजीव कुमार महतो ने कहा कि

कुड़मालि भाखि चारि बइसि से ही कुड़मी की पहचान और जीवन है.

इसलिए यह कुंबा संथाल परगना के कुड़मियों के लिए जीवन दायिनी दवा से कम नहीं है.

प्रशिक्षुओं को संबोधित करते हुए कहा कि शिविर का एक ही मकसद है कि

आप सबको आपके भाषाई सांस्कृतिक व महतो परगनैत स्वशासनीय परंपराओं के प्रति जिम्मेदार और जागरूक बनाना है.

भाषा संस्कृति और बइसि का संरक्षण जरूरी

देवेंद्र कुमार महतो ने तालेबर प्रस्ताव वक्तव्य रखते हुए कहा कि आने वाला भविष्य को संवारने के लिए भाषा संस्कृति और बइसि का संरक्षण और संवर्धन अत्यंत महत्वपूर्ण है समाज के हरेक सदस्य की जिम्मेदारी है और तन मन धन से इसमें लगना चाहिए. दिनेश कुमार महतो के अनुसार यह कुंबा भाषा संस्कृति और बइसि को मजबुती की दिशा में साकारात्मक पहल है. युवाओं को इसका बागडोर संभालने की जरूरत है.

कुड़मालि भाषा उपेक्षा का शिकार

बतौर कुंबा में आए बीबीएम कोयलांचल विश्वविद्यालय के शोध निदेशक डॉ भुतनाथ हस्तुआर ने उद्घाटन सत्र में कहा कि कुड़मि कबिला ही आदिम राड़ सभ्यता के जनक हैं. हमारे पास पूर्वजों से प्राप्त उनके द्वारा निर्मित वो सारा अवयव आदिकाल से मौजूद है. जो वगैर किसी दूसरे मानव समूह की भाषा, संस्कृति व सामाजिक अनुसरण व सहायता के वगैर समृद्ध रुप से जन्म, जीवन और मृत्यु तक के सारे क्रियाकर्म संचालित कर सकते हैं. लेकिन दुर्भाग्यवश कुड़मालि भाषा संस्कृति और बइसि को सरकारी उपेक्षा के बाद अब सामाजिक उपेक्षा का दौर से गुजरना पड़ रहा है.

अपनी पहचान को बचाए रखें- रामदयाल मुंडा

प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन करते हुए रामदयाल मुंडा जनजातीय शोध संस्थान के शोधकर्ता महादेव डुंगरिआर ने कहा कि दो दिन के प्रशिक्षण से संथाल परगना में कुड़मालि भाषा संस्कृति व स्वशासन का संरक्षण और संवर्धन अभियान का आज शुभारंभ हुआ है. यह अभियान को परिणाम तक पहुंचाने का संकल्प प्रशिक्षणार्थियों को लेना होगा. कुड़मियों के जनजातीय पहचान के ये मूल अवयव हैं. ये मिटने का मतलब कुड़मालियत समाप्त और अंततः कुड़मि का पहचान भी समाप्त. इसलिए जितना लगाव आपने परिवार रिश्तेदारों संगतों से उतना ही लगाव कुड़मियों को कुड़मालि भाखि चारि आर बइसि के प्रति रखना होगा.

ये लोग रहे उपस्थित

आज के कुंबा में डॉ. भुतनाथ हस्तुआर, माहादेव महतो, विष्णु चरण महतो, आनंद बानुहड़, संजीव महतो, देवेंद्र महतो, दिनेश महतो, धनंजय महतो, भानु महतो, आरती महतो, उदय महतो, प्रो गोविंद महतो, मणिकांत महतो, किशोर महतो, त्रिलोचन महतो, दीपक महतो, हीरा लाल महतो, श्यामसुंदर महतो, कैलास महतो, अशोक महतो, निर्मल महतो, गौतम महतो, मिथुन महतो, संदीप महतो, महादेव महतो, रामदेव महतो, पंकज महतो, नकुल महतो, सोमनाथ महतो, बब्लु महतो, चंदन महतो, सीमा कुमारी, किरण कुमारी, मनोरमा महतो, डिंपल कुमारी, हीना कुमारी, रोशनी कुमारी, बसंती कुमारी, श्यामा महतो, सरिता महतो, अनीता महतो, कारी महतो सहित कई लोग उपस्थित रहे.

रिपोर्ट: प्रिंस

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