डिजीटल डेस्क : Awakening Story – नोएडा में रोजाना 5 हजार कमाता है कूड़ा बीनने वाला युवा। सोशल मीडिया पर एक युवा की कहानी तेजी से वायरल हो रही है।
यह युवा एनसीआर (नेशनल कैपिटल रीजन) के नोएडा का है। यह कूड़ा बीनकर रोजाना 5 हजार यानी महीने का डेढ़ लाख रुपये और सालाना 18 लाख रुपये के विशुद्ध नगदी वाले आमदनी के पैकेज का काम कर रहा है।
इसकी कहानी ने लोगों को इतना चौंकाया है कि लोग इसकी कहानी का वीडियो सोशल मीडिया पर काफी चाव से देख रहे हैं।
आईटी प्रोफेशनल से भी ज्यादा कमाई करके चौंकाया
अनकहे ही सोशल मीडिया पर दिन रात एआई और चैट जीपीटी टूल आदि को लेकर कमाई के नित नए साधन तलाशते युवाओं के बीच नोएडा में कूड़ा बीनने वाला युवक अचानक चर्चा और बहस का नया विषय बन गया है।
यानी कुल मिलाकर नोएडा का यह कूड़ा बीनने वाला युवा अच्छी कमाई की चाह रखने वाले युवाओं के लिए कहीं न कहीं चिढ़ का विषय बन गया है जो पूरे सिस्टम पर सवाल उठाने लगे हैं। नोएडा में कबाड़ बटोरने वाला एक शख्स आईटी प्रोफेशनल्स से भी ज्यादा कमाता है।
यह खबर सोशल मीडिया पर तेजी से फैल रही है। इस खबर ने भारत में असमानता को लेकर एक बार फिर बहस छेड़ दी है। इसने लोगों को हैरान कर दिया है। कई लोग अपनी नौकरियों और सैलरी पर सवाल उठाने लगे हैं।
कूड़ा बीनने वाले युवा महंगा ई-सिगरेट पीता हुआ मिला, फिर बना वीडियो
बताया जा रहा है कि पूरा वाकया तब खुला जब एक युवक ने कबाड़ बटोरने वाले को एक महंगा ई-सिगरेट पीते हुए देखा। पहले तो उसे लगा कि कबाड़ बटोरने वाला अपनी मासिक कमाई के बारे में बात कर रहा है, लेकिन जब उसे पता चला कि वह रोज इतना कमाता है तो वह हैरान रह गया।
यह वीडियो देखने के बाद बहुत से लोग अपनी सैलरी के बारे में सोच रहे हैं। यह मामला भारत में रोजगार को लेकर लोगों की सोच में आ रहे बदलाव को दर्शाता है। देश में कबाड़ बटोरने जैसा काम करने वाले लोग भी अच्छी कमाई कर रहे हैं जबकि ज्यादातर लोग इसे कम पैसों वाला काम मानते हैं।
यह वाकया समाज में काम को देखने के नजरिए और लोगों की मेहनत की कीमत को लेकर सवाल खड़े करती है। बहुत से लोगों ने इस वीडियो से जुड़ाव महसूस किया है। उनका कहना है कि धन के बंटवारे में हमेशा असमानता रहती है। यहां तक कि सफाई सेवाओं जैसी कंपनियों में भी ऐसा होता है।


कूड़ा बीनने वाले नोएडा के युवा की वायरल हुई कहानी पर विशेषज्ञों की भी जानिए राय….
अरुणाचल स्थित राजीव गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति और कृषि अर्थशास्त्री प्रो. साकेत कुशवाहा कहते हैं कि यह इस बात का संकेत है कि समाज में काम और वेतन को लेकर लोगों की सोच को बदलने की जरूरत है। खासकर ऐसे देश में जहां शिक्षा का स्तर बेहतर तनख्वाह की गारंटी नहीं देता है।
इसी क्रम में युवा मामलों के विशेषज्ञ वाराणसी के कमलाकर त्रिपाठी बताते हैं कि यह पूरा मामला अभी जेरे-बहस है। ऑनलाइन चर्चा अभी भी जारी है, लेकिन यह साफ है कि यह सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं है। यह भारतीय श्रम बाजार की कहानी है। इस पर और अधिक बहस की जरूरत है। सामने आई इस कहानी के कई आयाम हैं और इसे लोग अभी अपने-अपने रुचि और सोच के अनुसार ले रहे हैं लेकिन आमदनी, मेहनत, स्किल और शिक्षा के पैमाने पर यह कहानी कई नए अहम सवाल करती है जिस पर विशद चर्चा की जरूरत है।
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