रांची: झारखंड में विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही बोरियो सीट इस बार खासा दिलचस्प बन गई है। इस सीट पर जेएमएम और बीजेपी के बीच ऐतिहासिक मुकाबले होते रहे हैं, लेकिन इस बार समीकरण और भी रोचक हो गए हैं, क्योंकि जेएमएम के बगावती नेता लोबिन अब बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या लोबिन के बीजेपी में आने से पार्टी को फायदा होगा या नुकसान?
बोरियो सीट की राजनीतिक परंपरा के अनुसार, यहां का चुनावी मुकाबला हमेशा करीबी रहा है। अब जब लोबिन बीजेपी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतर सकते हैं, तो यहां की राजनीति और पेचीदा हो गई है। खासकर बीजेपी के पुराने नेता सूर्यनारायण हांसदा और ताला मरांडी जैसे दिग्गज नेता भी अपनी दावेदारी मजबूत कर रहे हैं।
इतिहास की बात करें तो बोरियो सीट पर हर बार नया विधायक चुना गया है। लोबिन ने 2000 और 2009 में जीत हासिल की थी, जबकि ताला मरांडी ने 2005 और 2014 में बीजेपी की ओर से जीत दर्ज की थी। अब 2019 के बाद, लोबिन की जीत ने सीट को और दिलचस्प बना दिया है, खासकर तब जब उन्होंने बीजेपी में शामिल होकर पार्टी के भीतर नए समीकरण बना दिए हैं।
बोरियो में आदिवासी और मुस्लिम वोटरों की संख्या निर्णायक होती है। जेएमएम का आदिवासी-मुस्लिम गठजोड़ सीट पर बड़ा प्रभाव डालता है, लेकिन लोबिन का बीजेपी में आना और उनका व्यक्तिगत जनाधार इस समीकरण को चुनौती दे सकता है। खासकर तब, जब मुस्लिम वोटरों का 17.4% हिस्सा यहां के चुनाव परिणामों पर असर डाल सकता है।
बोरियो सीट पर बीजेपी की स्थिति को लोबिन के साथ जुड़े मतदाताओं और पार्टी के अंदर के विरोधों से चुनौती मिल सकती है। अगर सूर्यनारायण हांसदा या ताला मरांडी भी निर्दलीय या अन्य पार्टी से चुनाव लड़ते हैं, तो वोटों का बंटवारा बीजेपी को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, जेएमएम को भी अपने उम्मीदवार के रूप में हेमलाल मुरमू जैसे दिग्गज नेता पर भरोसा है, जो लोबिन हेमर के खिलाफ चुनौती पेश कर सकते हैं।
कुल मिलाकर, बोरियो सीट का चुनावी संघर्ष बेहद दिलचस्प होने जा रहा है, जहां हर पार्टी अपनी स्थिति मजबूत करने में जुटी है। अब देखना यह है कि क्या लोबिन हेमर बीजेपी को जीत दिला पाते हैं, या फिर जनता किसी और पर भरोसा जताती है।