श्राद्धकर्म को लेकर प्रशासन ने व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की थी। पूरे गांव में पुलिस बल की तैनाती की गई थी और भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अलग-अलग मार्ग बनाए गए। इसके बावजूद श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ी, जो अपने प्रिय नेता को अंतिम नमन करने आई थी।
श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे ग्रामीणों और कार्यकर्ताओं ने पारंपरिक तरीकों से दिशोम गुरु को याद किया। माहौल गमगीन रहा और लोगों की आंखें नम हो गईं। खासकर कोल्हान और संताल परगना से बड़ी संख्या में झामुमो कार्यकर्ता और समर्थक यहां पहुंचे।
गौरतलब है कि शिबू सोरेन ने झारखंड को अलग राज्य के रूप में पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। वे कई बार सांसद और मुख्यमंत्री बने और आदिवासी अस्मिता की लड़ाई को राष्ट्रीय पटल पर उठाया। लोग उन्हें केवल एक राजनीतिक नेता नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक और संघर्षशील व्यक्तित्व के रूप में याद कर रहे हैं।