पश्चिम बंगाल में वामपंथी शासनकाल के आखिरी मुखिया बुद्धदेव भट्टाचार्य नहीं रहे, भद्रलोक के रूप में थी पहचान

पश्चिम बंगाल के दिवंगत पूर्व सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य

कोलकाता : पश्चिम बंगाल में वामपंथी शासनकाल के आखिरी मुखिया बुद्धदेव भट्टाचार्य नहीं रहे, भद्रलोक के रूप में थी पहचान। पश्चिम बंगाल में 34 साल तक रहे वापमंथी शासनकाल में ज्योति बसु के बाद हमेशा नंबर दो रहे और बंगाल की वामपंथी सरकार के आखिरी मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने 80 साल की उम्र में गुरूवार को अंतिम सांस। बंगाल की सियासत के साथ ही वामपंथी सियासतदां लोगों के बीच भी उनकी पहचान भद्रलोक (सज्जन पुरुष) वाली थी। ज्योति बसु के उत्तराधिकारी के रूप में वह वाममोर्चा शासन के दूसरे सीएम बने थे। बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने पश्चिम बंगाल का लगातार 11 साल नेतृत्व किया। कला, साहित्य एवं संस्कृति मे उनकी गहरी रुचि थी। ज्योति बसु के मुख्यमंत्री रहते हुए एक वह कैबिनेट से बाहर हुए थे बिना किसी लाग लपेट और सुरक्षा तामझाम के बारिश में अपने जूते हाथों में उठाकर रवींद्र सदन पहुंचे थे। बाद में फिर कैबिनेट में लौटे तो ज्योति बसु ने चंद बरसों में ही उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। तब बतौर भावी मुख्यमंत्री उन्होंने लक्ष्य तय किया था कि वह अपनी हिंदी विरोधी छवि मिटाएंगे। मुख्यमंत्री के बनने के बाद उस पर अमल भी किया था एवं उसी क्रम में उन्होंने उद्यमियों को अपने राज्यों में उद्योग स्थापित करने के लिए न्यौता भी दिया था।

सुबह नाश्ता किया और बाद में बिगड़ी तबीयत, बेटे ने दी निधन की खबर

बताया जा रहा है कि पूर्व सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य ने गुरूवाह की सुबह नाश्ता भी किया था। उसके बाद वे अस्वस्थ हुए। सुबह करीब 8.20 बजे पाम एवेन्यू स्थित घर पर ही उन्होंने देह त्याग दिया। खबर मिलने के बाद उनके परिजन और राजनीतिक लोग एकत्रित होने शुरू हो गए। परिवारजनों के मुताबिक, गत बुधवार शाम से ही उनकी तबीयत ठीक नहीं थी। बुद्धदेव को सांस लेने में तकलीफ चरम सीमा पर पहुंच गई। फिर थोड़ी देर में उनकी स्थिति थोड़ी ठीक हुई।  फिर तय हुआ कि गुरुवार सुबह 11 बजे डॉक्टर आकर उनकी जांच करेंगे। जरूरत पड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा, क्योंकि वह अस्पताल जाने में बहुत अनिच्छुक थे। इसलिए डॉक्टरों की सलाह पर विचार किया जाएगा, लेकिन गुरुवार की सुबह से बुद्धदेव फिर बीमार पड़ गए। सुबह उठकर नाश्ते के बाद चाय पी। इसके बाद वह दोबारा बीमार पड़ गए और उन्हें नेबुलाइजर देने की कोशिश की गई। इस वक्त वह दिल की बीमारी से पीड़ित थे। तुरंत डॉक्टरों को सूचित किया गया। उन्होंने आकर बुद्धदेव को मृत घोषित कर दिया। उनके निधन की खबर उनके बेटे सुचेतन भट्टाचार्य ने गुरुवार सुबह दी।

घर में ही रखा है पार्थिव शरीर, राज्य में शोक की लहर, सीएम ममता और नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु ने जताया शोक

जानकारी के मुताबित बुद्धदेव को अंतिम विदाई कैसे दी जाए यह निर्णय सीपीएम राज्य नेतत्व इस पर चर्चा करेगा। बुद्धदेव पोलित ब्यूरो के सदस्य थे। ऐसे में उनकी अंतिम यात्रा में दिल्ली के नेताओं की भी भूमिका रहेगी। उनका पार्थिव शरीर फिलहाल पाम एवेन्यू स्थित दो कमरे के फ्लैट में रखा गया है। उनके निधन से पूरे बंगाल में शोक का लहर है। बंगाल में नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन पर शोक जताया। बता दें कि पूर्व सीएम बुद्धदेव भट्टाचार्य पिछले साल 9 अगस्त को अस्पताल से ठीक होकर घर लौटे थे। उन्हें 29 जुलाई को गंभीर हालत में दक्षिण कोलकाता के अलीपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। डॉक्टरों ने उन्हें कई दिनों तक वेंटिलेशन (इनवेसिव) सपोर्ट पर रखा था। वे निमोनिया से पीड़ित थे। उन्हें फेफड़ों और श्वासनली में गंभीर रूप से संक्रमण हो गया था। अस्पताल में धीरे-धीरे उन पर इलाज का असर होने लगा था। 12 दिन बाद उन्हें छुट्टी मिली। हालांकि,घर वापस आकर भी वे निगरानी में थे। बुद्धदेव भट्टाचार्य के निधन पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और शुभेंदु अधिकारी ने शोक जताया है। सीएम ममता ने कहा है कि मैं बुद्धदेव भट्टाचार्य को लंबे वक्त से जानती थी। उनके चाहने वालों पर दुखों का पहाड़ टूट गया है। उनके परिवार और सीपीएम के कार्यकर्ताओं के प्रति मेरी संवेदना है। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ होगा। नेता प्रतिपक्ष शुभेंदु अधिकारी ने भी दुख जताते हुए संवेदना व्यक्त की है तो कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रदीप भट्टाचार्य ने बुद्धदेव के निधन को व्यक्तिगत क्षति बताया है।

क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज से पीड़ित थे पूर्व मुख्यमंत्री

बुद्धदेव भट्टाचार्य लंबे समय से गंभीर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से पीड़ित थे। बीमारी के कारण पिछले कुछ वर्षों से वह लगभग घर में ही थे। उन्हें पहले भी कई बार अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था। दिसंबर 2020 में बुद्धदेव को सांस लेने में गंभीर समस्या के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उस वक्त उन्हें कुछ दिनों तक वेंटिलेशन पर रखना पड़ा और बाद में ठीक होकर वे सकुशल घर लौट आए थे। मई 2021 के मध्य में वह कोविड से संक्रमित हो गये थे। हालत बिगड़ने पर उन्हें 18 मई को अस्पताल में भर्ती कराया गया। वहीं उनकी पत्नी मीरा भट्टाचार्य भी कोविड से संक्रमित थीं और उन्हें उसी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। कुछ ही दिनों में दोनों की रिपोर्ट नेगेटिव आई थी।

पश्चिम बंगाल के पूर्व सीएम स्व. ज्योति बसु और माकपा नेत्री वृंदा करात के साथ स्व. बुद्धदेव भट्टाचार्य की फाइल फोटो
पश्चिम बंगाल के पूर्व सीएम स्व. ज्योति बसु और माकपा नेत्री वृंदा करात के साथ स्व. बुद्धदेव भट्टाचार्य की फाइल फोटो

बंगाल में शुरू किया था आद्योगिकीकरण और अपने मुख्य सचिव से हारे थे चुनाव

बुद्धदेव भट्टाचार्य कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो के सदस्य भी रह चुके थे।  एक समय तक पश्चिम बंगाल की आय का प्राथमिक साधन कृषि थी, लेकिन बुद्धदेव ने इस स्थिति को बदलने के लिए अपने राजनीतिक जीवन का सबसे बड़ा जोखिम उठाते हुए औद्योगीकरण अभियान की शुरुआत की थी। बुद्धदेव ने अपने शासन में बंगाल में अद्यौगिक नीति स्थापित करने की कोशिश की। हालांकि, उनकी सरकार इसमें असफल साबित हुई। उन्होंने बंगाल में फैक्टरियों की स्थापना हेतु विदेशी और राष्ट्रीय पूंजी को आमंत्रित किया। इनमें से दुनिया की सबसे सस्ती कार टाटा नैनो भी शामिल रही, जिसका उत्पादन प्लांट कोलकाता के पास स्थित सिंगुर में स्थापित किया गया था। इसके अलावा उनकी योजना राज्य में अन्य बड़ी परियोजनाओं की शुरुआत करने की भी थी, लेकिन स्थानीय स्तर पर विरोध के चलते वह सफल नहीं हो सके और 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद साल 2011 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उम्मीदवार मनीष गुप्ता के हाथों मात मिली थी। तब मनीष गुप्ता ने बुद्धदेव भट्टाचार्य को 16,684 वोटों के बड़े अंतर से शिकस्त दी थी। यही मनीष गुप्ता पश्चिम बंगाल में पहले ज्योति बसु  और फिर बुद्धदेव भट्टाचार्य के शासनकाल में मुख्य सचिव पद पर रहे थे।

बांग्लादेश में है पुश्तैनी घर, प्रैक्टिक पॉलिटिक्स करने वाले बुद्धदेव ने प्रेसीडेंसी कॉलेज से किया था ग्रेजुएशन

प्रैक्टिकल पॉलिटिक्स को तवज्जो देने वाले बुद्धदेव भट्टाचार्य ने करीब 35 साल तक बंगाल की राजनीति को प्रभावित किया। दिखावे से परहेज करते थे। पहली बार सीएम बनने के बाद दक्षिण 24 परगना जिले में हुई एक डकैती की घटना की सूचना मिलने पर वह एस्कार्ट में चल रहे सार्जेंट की बाइक पर ही सवार होकर घटनास्थल पर पहुंचे तो सभी चकित रह गए थे। उनके विरोधी भी उनकी सादगी के कायल थे। बंगाली ब्राह्मण परिवार से आने वाले भट्टाचार्य की राजनीति में आने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। उनके पुरखों का घर बांग्लादेश में है। 1 मार्च 1944 को जन्मे बुद्धदेव ने अपनी पूरी पढ़ाई कोलकाता से ही की। कलकत्ता विश्वविद्यालय के समीप मध्य कोलकाता स्थित प्रेसिडेंसी कॉलेज से बुद्धदेव ने बांग्ला साहित्य में ग्रेजुएशन किया था। बांग्ला साहित्य से पढ़ाई के पीछे बुद्धदेव की पारिवारिक वजहें थी। बुद्धदेव के दादा साहित्य के बड़े जानकार थे और कोलकाता में पुजारी दर्पण नामक मशहूर पत्रिका निकालते थे। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद बुद्धदेव शिक्षक बन गए। कुछ सालों तक बच्चों को पढ़ाने के बाद बुद्धदेव राजनीति में आ गए।

सियासत छोड़ने के बाद बीमारी की हालत में अपने फ्लैट में परिजनों के बीच रहते थे दिवंगत बुद्धदेव भट्टाचार्य।
सियासत छोड़ने के बाद बीमारी की हालत में अपने फ्लैट में परिजनों के बीच रहते थे दिवंगत बुद्धदेव भट्टाचार्य।

छात्र राजनीति से शुरू हुआ था बुद्धदेव का सियासी करियर, माकपा पोलित ब्यूरो सदस्य भी रहे

कोलकाता में जन्मे बुद्धदेव भट्टाचार्य ने छात्र राजनीति से अपनी करियर की शुरुआत की थी। वे साल 1968 में सीपीएम के छात्र संगठन डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन के राज्य सचिव चुने गए. बुद्धदेव ने इसके बाद राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1977 में कोलकाता की काशीपुर-बेलछिया विधानसभा सीट से वे विधायक चुने गए. 1987 में वे जादवपुर सीट की ओर से शिफ्ट हो गए. 2011 तक वे इस सीट से विधायक रहे। बुद्धदेव को 1977 में ज्योति बसु की सरकार में सूचना और संस्कृति मंत्रालय का जिम्मा मिला। साल 1982 तक वे इस पद पर रहे। वर्ष 1987 में उन्हें फिर से कैबिनेट में शामिल किया गया। इस बार उन्हें शहरी विकास जैसे बड़े विभाग दिए गए। वर्ष 1996 में बुद्धदेव बंगाल के गृह मंत्री बनाए गए। वह वर्ष 2002 से वर्ष 2015 तक माकपा के पोलित ब्यूरो के भी सदस्य रहे।

वर्ष 2015 में सियासत से लिया संन्यास, पद्म भूषण सम्मान ठुकराया, मनमोहन ने बताया था सबसे काबिल सीएम

साल 2000 में ज्योति बसु ने पश्चिम बंगाल की कमान अपने उत्तराधिकारी बुद्धदेव भट्टाचार्य को सौंप दी। बुद्धदेव उस वक्त बंगाल के डिप्टी सीएम थे और ज्योति बसु के कार्यकाल के बाद वह  2011 तक बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। उनके ही कार्यकाल में बंगाल में विवादित सिंगूर और नंदीग्राम का किसान आंदोलन हुआ था। वह साल 2015 तक सक्रिय राजनीति में रहे और फिर उन्होंने राजनीति छोड़ दी। हालांकि, साल 2021 के चुनाव में सीपीएम ने बुद्धदेव से एआई वीडियो के जरिए संदेश जारी करवाया था। बाद में बुद्धदेव भट्टाचार्य को 2022 में केंद्र सरकार ने पद्मभूषण सम्मान देने की घोषणा की, लेकिन भट्टाचार्य ने उसे लेने से इनकार कर दिया था। इससे पहले साल 2005 में देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बुद्धदेव भट्टाचार्य को देश का सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्री बताया था। उसी साल उन्हें यह उपाधि उद्योगपति अजीज प्रेमजी ने भी दी थी।

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