Commonwealth Games 2022: …ये आसमां कुछ कम है

उसे गुमां है कि मेरी उड़ान कुछ कम है/ मुझे यक़ीं है कि ये आसमां कुछ कम है- नफ़स अम्बालवी

कुछ इसी अंदाज़ में कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) में भारतीय खिलाड़ी मेधा व

हौसले की ऐसी कहानियां लिख रहे हैं, जो लंबे समय तक याद रखी जाएंगी.

संघर्ष की आग में तप कर निकली मीराबाई चानू, संकेत और गुरुराज जैसी

मेधाओं ने कामयाबियों का लोहा पिघलाकर दुनिया को दिखा दिया.

कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) के दूसरे दिन वेटलिफ्टिंग में

संकेत महादेव सरगर ने सिल्वर, गुरुराज पुजारी ने ब्रॉन्ज और मीराबाई चानू ने गोल्ड मेडल हासिल कर

भारतीय उम्मीदों को जैसे पंख दे दिया. इन खिलाड़ियों के जीवन का सफ़र बताता है कि

मंज़िल तक पहुंचने से पहले इन्होंने धूप और तपिश के कितने लंबे दौर देखे.

अब कामयाबियों की सुबह इन्हें रौशन कर रही हैं.

छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं मीराबाई चानू

8 अगस्त 1994 को मणिपुर के एक छोटे-से गांव में जन्मीं मीराबाई (Mirabai Chanu) छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं.

मणिपुर की ही रहनेवाली स्टार वेटलिफ्टर कुंजुरानी देवी से प्रभावित होकर

मीराबाई ने भी वेटलिफ्टिंग में जाने का फैसला किया.

लेकिन बड़ा परिवार और आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चे के लिए यह आसान नहीं था.

न तो जरूरी खुराक और न ही ट्रेनिंग की सुविधा मगर चानूबाई का इरादा पक्का था. 2007 में उन्होंने अभ्यास शुरू किया.

वे अपने गांव से 50-60 किमी दूर ट्रेनिंग के लिए जाती थी. इन सबके बीच 11 साल की उम्र में वे अंडर-15 चैम्पियन और 17 साल की उम्र में जूनियर चैम्पियन का खिताब तो हौसला बढ़ाने वाला था लेकिन 2016 के रियो ओलंपिक (Rio Olympics) के दौरान मिली असफलता मीराबाई चानू के लिए किसी सबक से कम नहीं थी जिसके बाद उन्होंने नये सिरे से खुद को संभाला. इसी का नतीजा था कि 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता. 2020 टोक्यो ओलंपिक में सिल्वर जीता. अब बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड जीता.

गुरुराजा पुजारी ने सुशील कुमार को देखकर ठान लिया था पहलवान बनने का सपना

कर्नाटक के कुंडापुर के रहने वाले गुरुराजा पुजारी भी ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते हैं जिनकी माली हालत ऐसी नहीं थी कि गुरुराजा को पहलवान वाली जरूरी खुराक दे सकें. लेकिन गुरुराजा ने 2008 के ओलंपिक में विजेता सुशील कुमार को देखकर ठान लिया था कि वे भी पहलवान बनेंगे.

लिहाजा, पेशे से ट्रक ड्राइवर पिता ने गुरुराजा का हमेशा साथ दिया. हालांकि आगे चलकर उन्हें वेटलिफ्टिंग (Weightlifting) में जाने की सलाह दी गई जो उनके लिए मुफीद साबित हुई. 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) में गुरुराजा सिल्वर मेडल जीत चुके हैं. इस कॉमनवेल्थ गेम्स में उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया.

सिल्वर जीतकर संकेत महादेव सरगर ने की भारत के लिए पदक की शुरुआत

महाराष्ट्र के रहने वाले महज 21 साल के इस नौजवान की कामयाबी ढेरों वैसे नाउम्मीद खिलाड़ियों में हौसला जगाएगी, जो संसाधनों की कमी के आगे हार मान लेते हैं. भरोसा करना मुश्किल है लेकिन संकेत ने इसे हकीकत में बदल दिया है. कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) के दूसरे दिन वेटलिफ्टिंग में सिल्वर जीतकर संकेत ने भारत के लिए पदक की शुरुआत की. संकेत के पिता की चाय-पान की दुकान है और इसी से घर परिवार. यहां तक कि खुद संकेत भी पिता की दुकान पर बैठते रहे हैं. अब संकेत अपने पिता को हर खुशी देना चाहते हैं.

Share with family and friends:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

3 × three =