दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन का ससुराल में पुलिस अभिरक्षा में हुआ अंतिम संस्कार

डिजिटल डेस्क : दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन का ससुराल में पुलिस अभिरक्षा में हुआ अंतिम संस्कार। चंबल की सबसे खूंखार महिला दस्यु रही एवं दिवंगत फूलन देवी को डकैती की दुनिया में एक जमाने में पीटने वाली दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन अब इतिहास बन गई है।

सोमवार को यूपी में चंबल के बीहड़ों में स्थित जालौन जिला के कुरौली गांव में कफन में लिपटी दस्यु सुंदरी कुसुमा का अंतिम संस्कार पूरे विधि-विधान से पुलिस अभिरक्षा में कर दिया गया।

उसके अंतिम दर्शन के लिए कुरौली गांव में जिलेभर से समाज के लोग जुटे। ग्रामीणों के साथ-साथ उनके पुराने परिचित और संबंधी भी अंतिम विदाई देने पहुंचे। उनके निधन की खबर से गांव में सन्नाटा पसरा रहा, लेकिन माहौल शांतिपूर्ण बना रहा।

सोमवार सुबह गांव में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच उनकी अंतिम यात्रा निकाली गई और सोमवार सुबह विधि-विधान से अंतिम संस्कार कर दिया गया। पति केदार नाई उर्फ रूठे याज्ञिक ने मुखाग्नि दी।

47 साल बाद कफन में ससुराल पहुंची कुसुमा

बीते रविवार रात दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन 47 साल बाद अपनी ससुराल आई तो कफन में लिपटी हुई। उनके अंतिम संस्कार को लेकर प्रशासन पूरी तरह सतर्क रहा। गांव में रातभर भारी पुलिस बल तैनात रहा।

पुलिस के मुताबिक, इटावा जेल में बंद कुसमा की तबीयत खराब होने पर उसे सैफई मेडिकल कालेज में भर्ती कराया गया था। इस पर उसने अपने परिजनों से मिलने की इच्छा जताई थी। उस पर सिरसाकलार थाने से रामजी के पास भी फोन आया था। लेकिन उन्होंने मिलने से मना कर दिया था।

ज्यादा हालत खराब होने पर उसे लखनऊ भेज दिया गया था। कुसुमा नाइन की लखनऊ में बीते ेशनिवार की रात इलाज के दौरान मौत हो गई थी। अब दिवंगत हो चुकी दस्यु कुसुमा नाइन के बारे में चंबल में आज भी चर्चा छिड़ते ही लोगों के जुबां पर ताले लग जाते हैं और बोलती बंद हो जाती है।

अंतिम संस्कार के दौरान भी गांव वालों में कोई भी दस्यु सुंदर के खूंखार-जीवनी के बारे में विस्तार बताने को तैयार नहीं था। हालांकि दबी जुबान में सभी उसके पुराने किस्सों की तस्दीक कर रहे थे। पुलिस और चंबल के बीहड़ों के दस्यु संसार की जानकारी रखने वाले बताते हैं कि दिवंगत कुसुमा नाइन चंबल के 5 खूंखार दस्युओं में एक टॉप वाली रह चुकी थी।

उसने दिवंगत फूलन देवी तक को दस्यु बनाने वाली घटना में अहम भूमिका निभाते हुए निर्वस्त्र किया था और फूलन के दस्यु फूलन बनने से पहले पिटाई भी थी। कालांतर पर वह फूलन की भरोसेमंद की सूची में शुमार थी।

कुसुमा के बारे में लोग कहते हैं कि कोई भी बिना उसकी मर्जी पूरे इलाके में प्रधानी का चुनाव नहीं लड़ता था। विरोध करने वालों को पेड़ से लटकाकर उल्टा पीटा जाता था। कुसुमा नाइन के द्वारा कई बार जिंदा आखें निकाल ली गईं। अपने खिलाफ जुबान खोलने वालों को उल्टा पेड़ से लटकाने और उसकी आंखें निकालने का कुसुमा ने खौफ फैला रखा था।

दस्यु कुसुमा नाइन की पुरानी तस्वीर
दस्यु कुसुमा नाइन की पुरानी तस्वीर

13 साल की उम्र में घर से भागी थी कुसुमा नाइन

पुलिस रिकार्ड दिवंगत दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन की रोंगटे खड़ी करने वाली दस्तां बयां करते नहीं थक रहे। पुलिस रिकार्ड के मुताबिक, सत्तर और 80 के दशक में देश में जितनी महिला डकैत थीं, उनमें कुसमा सबसे खूंखार मानी जाती थी।

सिरसाकलार थाना क्षेत्र के टिकरी गांव निवासी डरू नाई की पुत्री कुसुमा नाइन का जन्म 1964 में हुआ था। कुसुमा के पिता गांव के प्रधान थे। चाचा गांव में सरकारी राशन के कोटे की दुकान चलाते थे। इकलौती संतान होने के चलते लाड़ प्यार से पल रही थी।

13 साल की उम्र में उसे पड़ोसी माधव मल्लाह से प्रेम हो गया। एक दिन अचानक बिना किसी को कुछ बताए ही वह माधव मल्लाह के साथ चली गई। करीब 2 साल तक उसका कोई पता नहीं चला।

इसके बाद उसने पिता को चिट्ठी लिखी कि वह दिल्ली के मंगोलपुरी में माधव के साथ है। तब पिता दिल्ली पुलिस के साथ पहुंचे और उसे घर ले आए।

पिता ने उसकी शादी कुरौली गांव निवासी केदार नाई के साथ कर दी। माधव कुसुमा से प्रेम करता था। और दस्यु सुंदरी कुसुमा के खूंखार जीवन-यात्रा ने यहीं से रोचक मोड़ लिया।

दस्यु कुसुमा की फाइल फोटो
दस्यु कुसुमा की फाइल फोटो

शादी केदार से, जीवन बिताया माधव-विक्रम मल्लाह और फक्कड़ संग…

इसके आगे की गाथा पुलिस रिकार्ड में काफी रोचक है। माधव मल्लाह ने डकैत विक्रम मल्लाह का साथ पकड़ा और उसे बताया कि वह कुसुमा नाइन का दीवाना है। उसके बाद तो विक्रम भी कुसुमा से मिलने को मचल उठा था।

फिर  विक्रम मल्लाह माधव को लेकर गैंग के साथियों के साथ कुसुमा की ससुराल पहुंचा। उसने कुसुमा को अगवा कर लिया। इसके बाद वह माधव के साथ विक्रम गैंग में शामिल हो गई। यानि कुरौली गांव से अगुवा करके बीहड़ ले जाई गई कुसमा सबसे पहले माधव के माध्यम से विक्रम मल्लाह गिरोह से मिल गई।

इसके बाद वह करीब 8 वर्ष तक इस गिरोह में रही। विक्रम की मौत हो जाने के बाद वह लालाराम के संपर्क में आई और कुछ दिन के बाद वह रामआसरे उर्फ फक्कड़ के संपर्क में आ गई और 16 साल तक बीहड़ में राज करती रही। वह इटावा के साथ साथ कानपुर व अन्य जेलों में भी रही।

किस्सा यहीं खत्म नहीं होता। पुलिस रिकार्ड में आगे का भी रोचक किस्सा है। विक्रम और फूलन देवी एक ही गैंग में काम करते थे। उसी गिरोह में कुसुमा के भी होने से उनमें विवाद होने लगा।

दस्यु कुसुमा नाइन की पुरानी तस्वीर
दस्यु कुसुमा नाइन की पुरानी तस्वीर

इस पर कुसुमा को दस्यु लालाराम को मारने को कहा गया, लेकिन कुसुमा ने उसे नहीं मारा और वह लालाराम की गैंग में शामिल हो गई। इसके बाद तो कुसुमा नाई की दिलेरी और खूंखार कारनामे के किस्से गूंजने लगे।

चुर्खी थाना क्षेत्र के एक गांव में 1982 में लालाराम और कुसुमा का गैंग रूका था। पिथऊपुर के पीछे इस गांव में डकैत अक्सर रहा करते थे। इसकी जानकारी तत्कालीन चुर्खी थानाध्यक्ष केलीराम को हुई, तो वह दबिश देने गांव पहुंच गए।

उस समय कुसुमा शीशा लेकर मांग में सिंदूर भर रहीं थी। जैसे ही उसे शीशे में पुलिस दिखी तो उसने फिल्मी अंदाज में शीशे में देखते हुए पीछे पकड़ने को आहिस्ता कदमों से आ रही पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी।

दस्यु कुसुमा नाइन की पुरानी तस्वीर
दस्यु कुसुमा नाइन की पुरानी तस्वीर

उस घटना में थानाध्यक्ष केलीराम और सिपाही भूरेलाल की मौत हो गई थी। विभिन्न थानों की फोर्स के साथ एसपी जब तक पहुंचे लालाराम, कुसुमा बीहड़ों की ओर भाग गए थे। कुसुमा मौके से पुलिस की दो थ्री नाट थ्री राइफल लूट ले गई थी।

फिर वर्ष 1984 में कानपुर देहात के मई आस्ता गांव में 15 लोगों की हत्या की गई और एक महिला और उसके बच्चे को जिंदा जला दिया। इससे वह चंबल की सबसे खतरनाक डकैत बन गई।

इसके बाद वह डकैत रामआसरे उर्फ फक्कड़ बाबा के संपर्क में आ गई। साल 2004 में कुसुमा और उनके साथी फक्कड़ बाबा ने पुलिस के सामने समर्पण कर दिया।

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