झारखंड में परिवारवादी सियासत की विरासत संभालने को चुनावी मैदान में उतरीं बहुएं

कल्पना सोरेन, सीता सोरेन और पूर्णिमा दास की फाइल फोटो

जनार्दन सिंह की रिपोर्ट

रांची : झारखंड में परिवारवादी सियासत की विरासत संभालने को चुनावी मैदान में उतरीं बहुएं। भारतीय सियासत में परिवारवाद का मुद्दा गाहे-बगाहे सुर्खियों में रहा करता है। झारखंड भी इससे अछूता नहीं है। हां, झारखंड में इसका स्वरूप पारंपरिक परिवारवादी सियासत की छवि में तनिक बदलाव लाता हुआ जरूर परिलक्षित हो रहा है।

साल 2024 में हो रहे विधानसभा चुनाव के दौरान झारखंड में यह बदलाव खुलकर सामने आया है और परिवारवादी सियासत में बदलाव का पुट देते हुए इस बार बेटा-बेटे-बेटी अथवा पत्नी नहीं बल्कि की बहुएं आगे आई हैं। झारखंडी सियासत में इन बहुओँ का दबदबा भी दिखने लगा है, जिसे राजनीतिक फिजां का नया ट्रेंड भी कहा जा रहा है।

झारखंड के आधा दर्जन सीटों पर चुनावी मैदान में उतरी बहुएं

भारतीय राजनीति में स्वतंत्रता के बाद से अभी तक बहुओं के चुनावी मैदान में उतरने या उतारे जाने का चलन देखा गया है। अब तक चुनाव के समय आमतौर पर नेता अपने बेटे या बेटी अथवा पत्नी को विरासत सौंप देते हुए दिखे हैं, लेकिन झारखंड में ने इस परिपाटी को बदल दिया है। यहां बहुएं सियासी विरासत संभालने वर्ष 2024 के विधानसभा चुनाव के दंगल में उतर चुकी हैं।

हालांकि, इस बार के चुनावी दंगल में भी नेताओं के बेटे, बेटियां और पत्नी भी उतरी हैं लेकिन संख्या में उनसे ज्यादा बहुओं की मौजूदगी ने फिजां बदल दी है। राज्य की करीब आधा दर्जन सीटों पर सियासी परिवार की बहुएं परिवारवादी राजनीति की विरासत संभालने उतरी हैं।

इनमें शिबू सोरेन परिवार की बहुओं पर सबकी निगाहें हैं क्योंकि दोनों अलग-अलग सियासी दलों और गठबंधन की ओर से चुनावी मैदान में हैं।

अपने ससुर शिबू सोरेन और सास के साथ कल्पना सोरेन
अपने ससुर शिबू सोरेन और सास के साथ कल्पना सोरेन

छोटी बहू कल्पना सोरेन दिखा रहीं अपना राजनीतिक कौशल…

मौजूदा सत्ताधारी गठबंधन की लीडिंग राजनीतिक पार्टी जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन की छोटी बहू कल्पना सोरेन हाल के दिनों में तमाम सियासी उठापटक के बीच अपने राजनीतिक कौशल का लोहा मनवाने में पीछे नहीं रहीं। अपने पति सीएम हेमंत सोरेन के साथ वह राजनीति में सक्रिय भागीदारी कर रही हैं। गिरिडिह की गांडेय सीट से दोबारा कल्पना सोरेन चुनाव मैदान में हैं। इसी साल, चंद माह पहले हुए विधानसभा उपचुनाव में कल्पना सोरेन ने गांडेय सीट से जेएमएम का परचम फहराया था। वह अपने पति हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद राजनीति में दाखिल हुईं और अपनी सक्रियता से संगठन से लेकर सरकार में अपनी अलग अहमियत बना ली है। एमबीए तक की पढ़ाई करने वाली कल्पना की शादी 7 फरवरी 2006 को हेमंत सोरेन से हुई थी। इनके दो बच्चे हैं। कल्पना सोरेन राजनीति में आने से पहले शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हुए सामाजिक जीवन में सक्रिय रहीं।

अपनी बेटियों संग सीता सोरेन।
अपनी बेटियों संग सीता सोरेन।

शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरन पति के निधन के बाद राजनीति में उतरीं…

शिबू सोरेन की बड़ी बहू सीता सोरेन भी राजनीति में हैं। सीता सोरेन की कहानी तनिक हटकर है। वह भी अपने पति दुर्गा सोरेन के निधन के बाद राजनीति में आईं। वह जामा सीट से विधायक भी रह चुकी हैं।

हालांकि, निजी सियासी कारणों के चलते इसी साल 2024 में लोकसभा से पहले उन्होंने भाजपा का साथ पकड़ा। बाकायदा भाजपा में शामिल हुईं और इस चुनाव में वह भाजपा की एक प्रमुख कद्दावर प्रत्याशी भी हैं। हाल के दिनों में अपने खिलाफ कांग्रेस प्रत्याशी और मंत्री डॉ. इरफान अंसारी के विवादित बयानों के बाद लगातार सुर्खियों में हैं।

अपने खिलाफ विवादित बयान से आहत सीता सोरेन सार्वजनिक तौर पर रो पड़ीं। सीता सोरेन के उस स्वाभाविक नारी-सुलभ क्रंदन ने सत्तारूढ़ गठबंधन को एकबारगी अंदर से डिगाने वाला भी माना जाने लगा है।

इन्हीं सीता सोरेन को भाजपा ने जामताड़ा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है जो कि भाजपा के लिए आसान नहीं मानी जाती। वजह यह कि इस जामताड़ा विधानसभा क्षेत्र में आदिवासी और मुस्लिम मतदाताओं का गठजोड़ काफी मजबूत माना जाता है। सोमवार को सीता सोरेन ने अपना नामांकन भी कर दिया है।

राज्यपाल रघुबर दास के साथ उनकी बहू पूर्णिमा दास।
राज्यपाल रघुबर दास के साथ उनकी बहू पूर्णिमा दास।

जमशेदपुर पूर्वी से राज्यपाल रघुबर दास की बहू पूर्णिमा पर विरासत का दारोमदार

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में ओडिशा के राज्यपाल रघुबर दास के पारिवारिक सियासी विरासत की कड़ी में यही बदलाव दिख रहा है। राज्यपाल के परिवार से बहू पूर्णिमा दास जमशेदपूर पूर्वी सीट से चुनावी मैदान में उतरी हैं।

मजेदार तथ्य यह है कि वर्ष 2019 में रघुबर दास इस सीट से चुनाव हार गए थे और उसके बाद से ही झारखंड की सियासत से विदाई मान ली गई थी। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में मिले उनके बहू को भाजपा के टिकट से उनकी भी पारिवारिक सियासी विरासत की गाड़ी चल निकली है।

छत्तीसगढ़ की मूल निवासी पूर्णिमा ने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की है। पूर्णिमा की शादी 2019 में रघुबर के इकलौते बेटे ललित दास से हुई। यही ललित दास हाल ही में तब सुर्खियों में आए थे, जब ओडिशा राजभवन के एक कर्मचारी ने उन पर मारपीट का आरोप लगाया था। वह मामला विधानसभा में भी उछला था।

रश्मि प्रकाश, दीपिका पांडेय और सविता महतो की फाइल फोटो
रश्मि प्रकाश, दीपिका पांडेय और सविता महतो की फाइल फोटो

निर्मल महतो, अवध बिहारी और मंत्री सत्यानंद भोगता की बहुओं ने भी संभाल ली है चुनावी कमान…

इसी कड़ी में कुछ अन्य सियासी परिवार की बहुओँ ने भी इस बार के चुनाव में राजनीतिक मोर्चा संभाला है। झारखंड आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले शहीद निर्मल महतो की बहू सविता महतो भी चुनाव मैदान में हैं। सविता सत्तारूढ़ जेएमएम के सिंबल पर सरायकेला की इचागढ़ सीट से लड़ रही हैं।

वर्ष 2019 में सविता इस सीट से जीत भी चुकी हैं। वर्ष 2014 में पति सुधीर महतो के निधन के बाद सविता महतो राजनीति में आईं। इस बार इचागढ़ सीट पर सविता का मुकाबला आजसू उम्मीदवार से है और उन्होंने नौंवी तक की पढ़ाई की हुई है।

इसी क़ड़ी में अगला नाम संयुक्त बिहार-झारखंड के कद्दावर नेता रहे अवध बिहारी सिंह की बहू दीपिका पांडे का है। वह फिर से चुनाव मैदान में हैं। दीपिका महगामा सीट से 2019 में जीती थी। उसके बाद उन्हें हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री बनाया गया था। दीपिका के पति प्रोफेशनल सेक्टर में काम करते हैं और खुद दीपिका राजनीति में आने से पहले पत्रकारिता में सक्रिय रही थीं।

यूथ कांग्रेस के जरिए राजनीति में आने वाली दीपिका को वर्ष 2014 में गोड्डा का जिलाध्यक्ष बनाया गया था। इस बार के चुनाव में दीपिका का मुकाबला अपने पुराने प्रतिद्वंद्वी अशोक भगत से है।

पारिवारिक विरासत वाली कड़ी के झारखंड में सबसे आखिर में रोचक नाम सत्यानंद भोगता का है। सत्यानंद भोगता हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री हैं। वर्ष 2019 में वे चतरा (सुरक्षित) सीट से जीतकर विधायक बने थे।

वर्ष 2022 में उनकी जाति को केंद्र सरकार ने आदिवासी वर्ग में आरक्षित कर दिया जिसके चलते भोगता और उनके बेटे चतरा सीट से चुनाव लड़ने से वंचित रह गए। लेकिन मंत्री भोगता ने सियासी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी बहू रश्मि प्रकाश को यहां से मैदान में उतार दिया है।

रश्मि प्रकाश अनुसूचित जाति वर्ग से हैं और इस वजह से चतरा सीट से चुनाव लड़ने योग्य हैं। रश्मि प्रकाश के पति मोहित भोगता स्थानीय कोर्ट में चपरासी के पद पर कार्यरत हैं। रश्मि का मुकाबला चतरा सीट पर चिराग पासवान के उम्मीदवार जनार्दन पासवान से है और जनार्दन पासवान पहले भी सत्यानंद भोगता के सामने चुनाव लड़ चुके हैं।

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