Saturday, May 31, 2025

तमंचे पर डिस्को: Dhanbad में झाड़ियों के पीछे चल रही थी गन फैक्ट्री, मुंगेर से सप्लाई और बंगाल में सबसे ज्यादा डिमांड

Dhanbad: “बोलियों में बारूद था, कीमत में कैश – तमंचे पर डिस्को का असली अड्डा निकला महुदा का सिंगड़ा गांव!” Dhanbad जिले के महुदा थाना क्षेत्र स्थित सिंगड़ा गांव में 28 मई को उस वक्त हड़कंप मच गया, जब पुलिस ने झाड़ियों के पीछे एस्बेस्टस से बने एक छोटे से मकान से अवैध मिनी गन फैक्ट्री का भंडाफोड़ किया। यह कार्रवाई बंगाल एटीएस की सूचना पर की गई, जिसमें गिरोह के मास्टरमाइंड मुर्शीद अंसारी समेत पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
मौके से पुलिस ने जो जखीरा बरामद किया, वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था —
• 4 तैयार देसी पिस्टल
• 28 अर्द्धनिर्मित पिस्टल
• 8 बैरल
• 28 अधबने मैगजीन
• 9 जिंदा कारतूस
हथियार बनाने के उपकरण: ड्रिल मशीन, एंगल ग्राइंडर, स्प्रिंग्स, हथौड़े, छेनी, आरी, हैक्सा ब्लेड
• और एक पुराना कीपैड मोबाइल फोन – शायद नेटवर्क के ‘ट्रिगर’ का काम करता था।

मुंगेर से ‘मैकेनिक’, बंगाल में ‘डिस्को’

पूछताछ में चौंकाने वाला खुलासा हुआ कि इस फायरआर्म फैक्ट्री का ढांचा अत्यंत सुनियोजित था। हथियारों का कच्चा माल, खासकर पिस्टल के बैरल और फ्रेम, बिहार के कुख्यात हथियार हब मुंगेर से आता था। वहीं से आए कारीगर इन्हें तैयार करते थे, जिनमें से कई ने सरकारी गन फैक्ट्रियों में काम किया था या वहां से ‘तकनीक उधार’ ली थी।
इन हथियारों की सबसे ज्यादा मांग पश्चिम बंगाल में थी। गिरोह का सीधा संपर्क कुल्टी (आसनसोल) के आस मोहम्मद उर्फ बबलू से था, जो सप्लाई चैन का ‘लाइसेंसी डिस्ट्रिब्यूटर’ बना हुआ था – गैरकानूनी ढंग से।

Dhanbad:  ‘बंदूकें बोलती थीं, और कीमतें गूंगी नहीं थीं’

गिरफ्तार मुस्तफा उर्फ मुस्सू ने पुलिस को बताया कि झाड़ियों के बीच बने इस टीन शेड के मकान में उन्हें महीने में करीब 7–8 दिन काम मिलता था। दो दिन में औसतन 4 पिस्टल बनाई जाती थीं। हर पिस्टल की कीमत ₹30,000 से ₹40,000 के बीच तय होती थी। यानी बंदूक की नाल जितनी छोटी, उतना ही भारी उसका बाजार!
कौन-कौन चढ़ा शिकंजे में?
• मुर्शीद अंसारी – सिंगड़ा, धनबाद (मुख्य सरगना)
• शब्बीर – चुरबा, मुंगेर
• मुस्तफा – बनहौदा, मुंगेर
• परवेज – बरधा, मुंगेर
• मिस्टर – मुबारकचक, मुंगेर

अब पुलिस खंगाल रही है ‘फायरिंग रेंज’

बाघमारा के एसडीपीओ पुरुषोत्तम सिंह के अनुसार, यह नेटवर्क सिर्फ धनबाद या बंगाल तक सीमित नहीं था। ये हथियार झारखंड, बिहार और बंगाल के कई आपराधिक गिरोहों तक पहुंचाए जाते थे। अब पुलिस इस ‘तमंचा ट्रैफिकिंग’ के पूरे नेटवर्क की परतें उधेड़ रही है- खरीदार कौन थे, डिलीवरी कैसे होती थी और अगला शिकार कौन हो सकता था।

मुहावरे जो सच्चाई बन गए

Dhanbad की इस कहानी ने यह साबित कर दिया कि “जहां तमंचा चलता है, वहां कानून की आवाज कमजोर पड़ जाती है।” और “बंदूक की घोड़ी पर सवार होकर जब जुर्म का बाजार सजता है, तब इंसाफ बुलेटप्रूफ जैकेट पहनता है।”

 

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