Ranchi- स्वतंत्रता के करीबन 75 वर्षों के बाद आखिरकार देश को महिला आदिवासी राष्ट्रपति मिल गया
. इस प्रकार बापू का चिर प्रतीक्षित सपना पूरा हो गया. लेकिन यह संघर्ष इतना आसान भी नहीं रहा,
हमारे प्रजातंंत्र को इस मुकाम तक पहुंचने के लिए 75 वर्षों का लम्बा इंतजार करना पड़ा.
स्वयं द्रौपदी मुर्मू के लिए भी यह सफर काफी ‘चुनौतियों से भरा रहा.
उड़ीसा के मयूरभंज इलाके में 20 जून, 1958 को एक बेहद सामान्य आदिवासी संताल परिवार में द्रौपदी मुर्मू का जन्म हुआ.
प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही स्कूल में हुई. जबकि स्नातक की पढ़ाई रामा देवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर का रुख किया.
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद विद्युत विभाग में जूनियर असिस्टेंट के तौर पर अपनी जीवन की शुरुआत की.
लेकिन बाद में अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर, रायरंगपुर में बतौर शिक्षिका करने लगीं.
पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति का राजनीतिक जीवन
इनके राजनीतिक जीवन की शुरुआत वर्ष 1997 में जिला पार्षद के रुप में हुई. जब इन्होने रायरंगपुर जिले
जिला परिषद का चुनाव जीता था. साथ ही यह रायरंगपुर की उपाध्यक्ष भी बनी थी.
साल 2004 में रायरंगपुर विधानसभा से विधायक बनने में कामयाब हुई.
2000 में ओडिसा सरकार में बतौर राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार बनायी गयी.
वर्ष 2000 से 2004 तक ट्रांसपोर्ट और वाणिज्य डिपार्टमेंट का पदभार संभाला.
वर्ष 2015 में इन्हें झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य का राज्यपाल का बनने का
मौका मिला और वर्ष 2021 तक वह राज्यपाल रही.
इस प्रकार पूरे पांच वर्ष तक झारखंड राज्यपाल रहने वाली पहली महिला राज्यपाल बनी.
पारिवारिक जीवन
इनकी शादी कॉलेज जीवन के साथी रहे श्याम चरण मुर्मू के साथ हुई थी.
इन्हे तीन बच्चे हुए, इसमें दो बेटे और एक बेटी थी.
हालांकि व्यक्तिगत जीवन ज्यादा सुखमय नहीं रहा.
इनके पति श्याम चरण मुर्मू और दोनों बेटे अब इस दुनिया में नहीं है.
बेटी इतिश्री की शादी गणेश हेम्ब्रम के साथ हुई है.
इनका पूरा परिवार आम संताली परिवार की तरह बेहद साधारण जीवन जीता है.
शुरु हुआ जश्न का दौर
इसके साथ ही पूरे देश मे जश्न का दौर शुरु हो चुका है, लोग ढोल नगाड़ों के साथ इस जश्न को सेलेब्रेट करते नजर आ रहे हैं.
वैसे तो यह पूरे देश में जश्न का माहौल है, लेकिन देश के आदिवासी समुदाय में यह जश्न और भी व्यापक है.