डिजिटल डेस्क: Ex PM Manmohan Singh ने दुनिया में मनवाया लोहा…, इतिहास मेरा सही आकलन करेगा। Dr. Manmohan Singh ने बतौर PM कभी मीडिया से खुद को बचाने की कोशिश नहीं की। Dr. Manmohan Singh की आखिरी प्रेस कांफ्रेंस सबसे यादगार थी।
Dr. Manmohan Singh से पूछा गया कि वह PM के रूप में खुद को कैसे आंकते हैं? बिना हिचके Dr. Manmohan Singh का जवाब था – ‘इतिहास मेरा सही आकलन करेगा (दि हिस्ट्री विल राईटली जज मी)’।
और अब जब मनमोहन सिंह हमारे बीच नहीं रहे, तो वाकई इतिहास में उनको आंकने का वक्त आ गया है। जब इतिहास उन्हें आंकेगा, तो निश्चित रूप से याद करेगा कि बतौर वित्त मंत्री Dr. Manmohan Singh ने भारत की अर्थव्यवस्था को तब संकट से उबारा, जब उनकी पूर्ववर्ती सरकार देश का सोना तक विदेश में गिरवी रख चुकी थीं।
यूं तो आर्थिक सुधारों का जनक नरसिंह राव को माना जाता है, लेकिन उसके सूत्रधार और अमल में लाने वाले तत्कालीन वित्त मंत्री Dr. Manmohan Singh ही थे जिनका लोहा पूरी दुनिया ने माना था।
जी-20 शिखर सम्मेलन मैक्सिको में दिखा Dr. Manmohan Singh का जलवा
Ex PM Dr. Manmohan Singh के बीती रात दिवंगत होने के बाद से ही पूरे देश और दुनिया में उनके अवदानों और दिमागदारी की चर्चा हो रही है। उसी क्रम में चर्चा Dr. Manmohan Singh के उस जलवा का भी हो रहा है जो दुनिया के राजनयिकों और राष्ट्राध्यक्षों के बीच देखा गया। वाकया वर्ष 2012 का है जब जी-20 शिखर सम्मेलन मैक्सिको के लॉसकाबोस शहर में हुआ था।
तब वहां तय समय पर सारे पत्रकार शिखर सम्मेलन स्थल पर पहुंच गए। सबने देखा कि एक-एक कर सभी राष्ट्राध्यक्ष आ रहे हैं और मंडप के बाहर पोर्च में मैक्सिको के प्रोटोकॉल मंत्री उनका स्वागत कर रहे थे। उन अति विशिष्ट राष्ट्राध्यक्षों में अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, जर्मनी जैसे देशों के शीर्ष नेता थे। अचानक मैक्सिको के राष्ट्रपति बाहर पोर्च में आकर खड़े हो गए थे। सबकी उत्सुकता बढ़ गई कि राष्ट्रपति किसके लिए आए हैं।
तभी चीन के राष्ट्रपति आए और मैक्सिको के राष्ट्रपति उन्हें अपने साथ भीतर ले गए। लेकिन फिर सभी चौंके जब मेजबान राष्ट्रपति फिर से पोर्च में आ गए। लोग हैरत में रहे और तभी भारतीय प्रधानमंत्री की तिरंगा लगी कार आई और मेजबान राष्ट्रपति ने आगे बढ़कर भारतीय PM Dr. Manmohan Singh का स्वागत किया। उन्हें ससम्मान भीतर ले गए।

वहां मौजूद दुनिया के नेताओं और राजनयिकों के बीच बड़ा सवाल था कि आखिर सिर्फ भारत और चीन के राष्ट्राध्यक्षों को ऐसा सम्मान क्यों मिला। उसका जवाब भी जल्दी ही मिल गया, जब सबने देखा कि मंच पर सबसे ज्यादा किसी की पूछ थी, तो वह भारत व चीन के राष्ट्राध्यक्षों की। उनमें भी PM Dr. Manmohan Singh को सारे विश्व नेता घेरे हुए थे।
बाद में भारतीय प्रोटोकॉल अधिकारियों ने भारतीय पत्रकारों से साझा किया कि आखिर क्या बात हो रही थी। बताया गया कि सारे वैश्विक नेता PM Dr. Manmohan Singh से जानना चाहते थे कि आखिर भारत ने 2008 की वैश्विक मंदी से खुद को कैसे बचाया। PM Dr. Manmohan Singh वहां अपने चिरपरिचित शैली में किसी शिक्षक की तरह दुनिया के नेताओं, राजनयिकों और अर्थविज्ञानियों को समझा रहे थे।
उसी शिखर सम्मेलन में चीन ने सबके सामने भारत के Dr. Manmohan Singh की खुलकर सराहना की थी। Dr. Manmohan Singh के वैश्विक पहचान और प्रतिष्ठा की एक बानगी और भी लोगों के जेहन में है।
ब्राजील के रियो डि जेनेरियो में रियो-20 पृथ्वी सम्मेलन में चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री Dr. Manmohan Singh की द्विपक्षीय भेंट थी। Dr. Manmohan Singh थोड़ी देर से पहुंचे और देरी के लिए खेद प्रकट किया, तो चीनी राष्ट्रपति ने गर्मजोशी से कहा था – दुनिया के नामी अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री का स्वागत करना मेरे लिए गौरव की बात है।

Dr. Manmohan Singh की सहजता, विनम्रता और धैर्य की कोई सानी नहीं…
Dr. Manmohan Singh की सहजता और विनम्रता के अनेक किस्से हैं। वित्त मंत्री बनने पर जो सहजता थी, पीएम बनने के बाद भी वैसी ही रही। जब केंद्र में एनडीए सरकार थी और Dr. Manmohan Singh राज्यसभा में कांग्रेस के नेता सदन थे, तब बेहद विनम्र और धीमे बोलने वाले Dr. Manmohan Singh पत्रकारों के सवालों का जवाब बेहद शालीनता से देते थे। कभी उन्हें नाराज या असहज होते नहीं देखा गया।
Dr. Manmohan Singh अपनी मारुति कार खुद चलाकर आते। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता उनकी सहजता को अक्सर उनकी कमजोरी कहते थे, क्योंकि वह कभी भी सदन में सरकार पर उस तरह हमलावर नही होते थे, जिसकी आदत आम विपक्षी नेताओं को होती है। संसदीय राजनीति में एक और यादगार वाकया राजनेताओं के जेहन अब भी जीवंत है। वह है राहुल गांधी से जुड़ा हुआ।

राहुल गांधी ने जब अपनी ही सरकार का वह अध्यादेश पत्रकारों के बीच फाड़ा, जिसे कैबिनेट ने मंजूरी दे दी थी, उस समय Dr. Manmohan Singh अमेरिका की यात्रा पर थे। Dr. Manmohan Singh को जब पता चला, तो उन्हें इसकी तकलीफ तो हुई, लेकिन Dr. Manmohan Singh ने इसे सार्वजनिक नहीं होने दिया और खुद को संभाल लिया।
इस मौके का फायदा भी कुछ दरबारियों ने उठाना चाहा, लेकिन Dr. Manmohan Singh ने उन सबको निराश कर दिया और सोनिया परिवार से अपने रिश्ते नहीं बिगाड़े। भ्रष्टाचार विरोधी अन्ना आंदोलन ने यूपीए-2 की सरकार के लिए काफी मुश्किलें खड़ी कीं। किसी भी सरकार के लिए उसका दूसरा कार्यकाल और उसका भी आखिरी हिस्सा काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इस समय तक जनता का धैर्य जवाब देने लगता है।
अन्ना आंदोलन ने असंतोष की आंच और तेज की। खुद Dr. Manmohan Singh की ईमानदारी पर कोई सवाल नहीं था लेकिन जिस सरकार की वे अगुवाई कर रहे थे , वो आरोपों से घिरी हुई थी। सवाल सिर्फ मंत्रियों पर उनके कमजोर नियंत्रण का नहीं था। ज्यादा जोर इस बात पर था कि वे संविधानेतर सत्ता से नियंत्रित हैं। इस दौरान विरोधियों से भी ज्यादा बड़ी चोट उन्हें राहुल गांधी से मिली। उम्मीद की जा रही थी कि इसके बाद Dr. Manmohan Singh इस्तीफा दे देंगे लेकिन उन्होंने अपमान के इस घूंट को भी पी लिया था।

Dr. Manmohan Singh ने सत्ता के शीर्ष पर रहकर भी सोनिया गांधी से टकराहट की नहीं आने दी नौबत…
यूपीए सरकार के दस साल में सोनिया गांधी और Dr. Manmohan Singh के बीच झगड़ा कराने की काफी कोशिशें हुईं। लेकिन दोनों की समझदारी थी कि ऐसे तत्व सफल नहीं हो सके। कई बार दोनों के बीच किसी मुद्दे पर सहमति नहीं बन पा रही थी, पर कभी सोनिया तो कभी मनमोहन ने पीछे हटकर टकराव की नौबत नहीं आने दी।
अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौते को लेकर वामपंथी नेताओं के प्रभाव में सोनिया शुरू में असहज थीं, लेकिन जब Dr. Manmohan Singh ने उन्हें इस समझौते से भारत को होने वाले फायदे समझाए और बताया कि वह भारत के हितों से कभी समझौता नहीं करेंगे, तो सोनिया ने कुछ सुझाव दिए, जिन्हें मनमोहन ने अमेरिका पर दबाव डालकर समझौते में शामिल कराया।
अमेरिका के साथ रक्षा सौदों को लेकर भी सोनिया के सवालों को Dr. Manmohan Singh ने सुलझाया। तमाम नियुक्तियों में Dr. Manmohan Singh को पूरी छूट थी, तो Dr. Manmohan Singh ने भी कई बार सोनिया की राय का सम्मान किया। एक किस्सा है सीबीआई निदेशक पद पर नियुक्ति का।

Dr. Manmohan Singh एक नाम तय कर चुके थे, लेकिन सोनिया के तत्कालीन राजनीतिक सचिव अहमद पटेल ने प्रधानमंत्री को बताया कि मैडम किसी और नाम के पक्ष में हैं, पर आपके फैसले में दखल नहीं देना चाहतीं। तब Dr. Manmohan Singh ने सोनिया से फोन पर बात की और एक ऐसे नाम पर सहमति बनाई जो वरिष्ठता में पैनल में सबसे ऊपर थे। राव सरकार के अनुभवों से सोनिया गांधी चौकन्नी थी।
Dr. Manmohan Singh की सरकार बनने से छह साल पहले से वे कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। कांग्रेस की एक बार फिर सत्ता में में वापसी का उन्हें श्रेय प्राप्त हुआ। अध्यक्ष के रूप में पार्टी को मजबूत करने की सोनिया की स्वाभाविक जिम्मेदारी और चाहत थी। उन्हें ऐसे प्रधानमंत्री की जरूरत थी जो उनके तय कार्यक्रमों और योजनाओं को अमली जामा पहना सके। प्रधानमंत्री पर यह एक किस्म का परोक्ष नियंत्रण था।

इसे संवैधानिक स्वरूप देने के लिए नेशनल एडवाइजरी काउंसिल बनाई गई। सोनिया उसकी अध्यक्ष थीं। सरकार के लिए कार्यक्रम और लक्ष्य तय करना काउंसिल का काम था। Dr. Manmohan Singh के दोनों कार्यकाल के दौरान यह काउंसिल सलाहकार की भूमिका की जगह कैबिनेट से ऊपर निर्णायक संस्था के तौर पर चर्चा में रही.बेहद शिष्ट, सौम्य और शालीन Dr. Manmohan Singh अपने कैबिनेट सहयोगियों के साथ कितने स्वतंत्र निर्णय ले सके , यह विवाद का विषय रहा।
दरअसल, नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में जाहिर तौर पर सोनिया गांधी राजनीति में सक्रिय नहीं थीं लेकिन जल्द ही राव की सोनिया से दूरियों की चर्चा शुरू हो गई। साल 1996 की पराजय के बाद वे पूरी तौर पर हाशिए पर चले गए।
दूसरी तरफ Dr. Manmohan Singh में गांधी परिवार के प्रति भरोसा बढ़ता गया। कांग्रेस के सत्ता से बाहर रहते हुए Dr. Manmohan Singh गांधी परिवार के काफी नजदीक पहुंच गए। इस नजदीकी ने साल 2004 में Dr. Manmohan Singh को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पहुंचा दिया।
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