रांची : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ आदिवासी नेता चंपई सोरेन ने नगड़ी प्रखंड में खेती की जमीन के अधिग्रहण को लेकर सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। रांची में आयोजित प्रेस वार्ता के दौरान उन्होंने कहा कि नगड़ी के किसानों को बिना किसी नोटिस और प्रक्रिया के उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि किसानों की उपजाऊ जमीन को अचानक बाउंड्री लगाकर कब्जे में ले लिया गया है, जबकि वहां वर्षों से खेती होती रही है।
चंपई सोरेन ने कहा कि जमीन अधिग्रहण कानून और सीएनटी एक्ट के नियमों की अनदेखी की गई है। ग्रामसभा से भी कोई अनुमति नहीं ली गई। उन्होंने सवाल उठाया कि जब रांची जिले में स्मार्ट सिटी और अन्य इलाकों में हजारों एकड़ खाली जमीन पड़ी है, तो फिर किसानों की उपजाऊ जमीन क्यों छीनी जा रही है। उन्होंने साफ कहा कि खेती रोकने से किसान भूमिहीन हो रहे हैं और उनके जीवन पर संकट खड़ा हो गया है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी दावा किया कि इस मुद्दे पर नगड़ी के ग्रामीण गहरे संकट में हैं। किसानों का चूल्हा जलना बंद हो गया है और आजीविका पर गहरा असर पड़ा है। उन्होंने कहा कि सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिए कि आखिर कितनी जमीन ली गई है और किन नियमों के तहत अधिग्रहण किया गया है।
चंपई सोरेन ने चेतावनी दी कि 24 अगस्त को बड़ी संख्या में ग्रामीण नगड़ी पहुंचकर हल जोतेंगे और सरकार से अधिग्रहण की प्रक्रिया का सबूत मांगेंगे। उन्होंने कहा कि यह लड़ाई सिर्फ नगड़ी के किसानों की नहीं, बल्कि झारखंड के आदिवासी और मूलवासी समाज की अस्मिता की लड़ाई है।
उन्होंने ऐतिहासिक आंदोलनों का जिक्र करते हुए कहा कि जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए आदिवासियों ने सैकड़ों वर्षों से बलिदान दिए हैं, लेकिन आज भी उनकी जमीन छिनी जा रही है। उन्होंने इसे अंग्रेज साम्राज्यवाद से तुलना करते हुए कहा कि किसानों को बिना नोटिस और जबरन जमीन से बेदखल करना लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि वे रिम्स-2 जैसे विकास कार्यों का विरोध नहीं कर रहे, लेकिन इसके लिए उपजाऊ कृषि भूमि का अधिग्रहण किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होगा। उन्होंने भाजपा से जुड़ने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इस मंच से उन्हें किसानों और आदिवासियों की आवाज बुलंद करने का अवसर मिला है।