मुफ्त की रेवड़ी और झारखंड की चुनावी मिठास

मुफ्त की रेवड़ी और झारखंड की चुनावी मिठास

रांची: कहते हैं कि राजनीति में ‘मुफ्त की रेवड़ी’ एक ऐसी मिठाई बन गई है, जिसे खाकर नेता चुनावी बुखार से राहत पाने का सपना देखते हैं। झारखंड की चुनावी जंग में भी इसी रेवड़ी के सहारे जनता को रिझाने का खेल जमकर चल रहा है। एनडीए और इंडिया—दोनों गठबंधन, जो खुद को सत्ता का प्रबल दावेदार मान रहे हैं, अपने-अपने घोषणा पत्रों में मुफ्त की योजनाओं के सुनहरे सपनों का पिटारा खोले बैठे हैं। अब चुनावी घोषणा पत्र में बुनियादी विकास की बात करना पुराना फैशन हो गया है, इसलिए मुफ्त में बांटिए और वोट बटोरिए’ की नई रणनीति के साथ मैदान में उतरे हैं।

हेमंत सरकार तो पहले से ही 200 यूनिट बिजली मुफ्त देकर जनता का दिल जीतने की कवायद में लगी हुई है, जिससे 39.44 लाख उपभोक्ताओं को राहत मिली। इसमें भी तकरीबन 3584 करोड़ रुपये का बकाया माफ किया गया है। अब खबर है कि 300 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की योजना आई तो यह बोझ 7700 करोड़ तक जा पहुंचेगा। 2024-25 का राज्य बजट कुल 1.28 लाख करोड़ रुपए का है, जिसमें से लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ मुफ्त की योजनाओं पर खर्च होगा।

सत्ताधारी गठबंधन हो या विपक्षी, दोनों का एजेंडा लगभग समान है—जैसे जनता को मुफ्त का सुख दे दिया तो सत्ता पक्की समझिए। भाजपा, कांग्रेस, और झामुमो के नेता रैलियों में बकायदा मंच से ‘मुफ्त माफी’ का पाठ पढ़ रहे हैं। असल में, झारखंड की जनता का वोट अब विकास कार्यों पर नहीं, बल्कि किस पार्टी ने कितनी बिजली माफ की, कौन कितने पैसे खाते में डालेगा, इसी पर तय होगा।

राजनीति का यह नया फॉर्मूला बताता है कि अब घोषणा-पत्र में योजना की कम और सपनों की पोटली अधिक होती है। आखिर, जब वोट ‘मुफ्त’ में मिल सकते हैं तो मेहनत क्यों करना!

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