कुड़मी समुदाय पर लागू नहीं होता हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, जनजाति समुदाय का हिस्सा है कुड़मी – कुड़मालि कुंबा

कुड़मी समुदाय पर लागू नहीं होता हिंदू उत्तराधिकार अधिनिय

Godda– कुड़मी समुदाय पर लागू नहीं होता हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, यह आदिम जनजाति समुदाय का हिस्सा है.

यह विचार दो दिवसीय कुड़मालि बाछट कमिया सिखनात कुंबा से निकल कर सामने आया है. अब इसको आधार बना कर पीआईएल करने की तैयारी की जा रही है.

सभा के अंतिम सत्र  में अंतिम सत्र में कुड़मालि भाखि चारि बइसि के संरक्षण संवर्धन के लिए माहा देसमड़ल जाड़पा के प्रतिनिधियों के निगरानी में संथाल परगना प्रमंडल के सभी जिलों में शीघ्र मड़ल जाड़पा का गठन करने का निर्णय लिया गया है.

कुंबा के दूसरे दिन समापन सत्र को संबोधित करते हुए तालेबर (सभा अध्यक्ष) संजीव कुमार महतो ने कहा कि कुड़मि समुदाय भारत का एक आदिम जनजाति समुदाय है.

इसलिए ही भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (हिंदू मुस्लिम दोनों उत्तराधिकार अधिनियम) व विवाह अधिनियम से आज भी बाहर हैं.

यह अधिनियम प्रमाणित करता है कि कुड़मि अपने परंपरागत “महतो-परगनेत (बइसि)” से ग्रामसभा द्वारा स्वशासी हैं.

अन्य सभी जनजातीय समुदाय की तरह कुड़मियों की भी अपनी भाषा और संस्कृति  रही है जो आज भी मौजूद है.

मौके पर देवेंद्र कुमार महतो ने कहा कि भाषा संस्कृति बइसि जागरण का जिम्मेदारी को आगे बढ़ाने का संकल्प लेकर गांव-गांव में शिविर लगाया जाएगा और समुदाय को हक-अधिकार के लिए एकजुट किया जायेगा.

वर्तमान पीढ़ी अपनी जिम्मेदारी से चुकेगी तब आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय होगा- डॉ भुतनाथ महतो

डॉ भुतनाथ महतो ने कहा कि युवाओं का जज्बा और बुजुर्गों का अनुभव का मिलकर समाजिक बुराइयों के खिलाफ सामुहिक जंग आरंभ करें.

अगर वर्तमान पीढ़ी जिम्मेदारी से चुकते हैं तो आने वाली पीढ़ी का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा.

विष्णु चरण महतो ने प्रशिक्षुओं को कहा कि कुड़मि प्रकृति के प्राकृतिक स्वरूप का आराधना करते हैं.

हमारी जीवनशैली प्रकृति को संरक्षित करने वाली होनी चाहिए ना कि तथाकथित विकास के पक्षधर संस्कृति की तरह प्रकृति को क्षति करने वाली.

अपने पूरखों के आदि संस्कृति को शान से प्रदर्शन करें,  अब  वह वक्त आ गया है कि तथाकथित आधुनिक विकासवादी समाज को हमारी संस्कृति के तरफ आना होगा, वरना मानव जीवन का अंत निश्चित है.

भाषा सिर्फ अभिव्यक्ति का साधन नहीं 

आनंद बानुआर ने कहा कि भाषा अब सिर्फ अभिव्यक्ति का साधन मात्र नहीं रहा,

आज के समय में एक भाषा के माध्यम से नौकरी और रोजगार के अवसर बन रहा है.

कुड़मि समुदाय को गौरवान्वित होना चाहिए कि हमलोग के पास पूर्वजों से कुड़मालि के रूप में एक समृद्ध भाषा मौजूद है जो झारखंड समेत आस पास के राज्यों में द्वितीय राजभाषा का दर्जा भी प्राप्त है.

कुड़मालि के महत्व को समझते हुए संरक्षण संवर्धन देते हुए साहित्यिक गतिविधियों से युवा पीढ़ी जुड़ें.

सांस्कृतिक गुलामी के मुक्ति के लिए हमारे पूर्वजों ने बनाया नेगाचार 

महादेव डुंगरिआर ने मौके पर बइसि व्यवस्था और नेगाचारि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कुड़मि को सांस्कृतिक गुलामी से आजाद रखने के लिए ही हमारे पूर्वजों ने जन्म और जीवन से लेकर मृत्यु तक का संस्कार के लिए नेगाचार बनाया है,

इसका अनुसरण और आत्मसात करें, बइसि व्यवस्था कुड़मि समुदाय अपने कानूनी अधिकारों को परंपरागत तरीके से संरक्षित कर सकता है.

दिनेश कुमार महतो ने कहा कि कुड़मि समुदाय के युवाओं को बुजुर्गों के मार्गदर्शन में अपने भाषा संस्कृति और बइसि व्यवस्था को संरक्षित और संवर्धित करने में लगकर समुदाय के भविष्य को संवारने का जिम्मा लेना होगा.

रिपोर्ट-प्रिन्स यादव  

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