बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की पहल, जैविक खेती का हब बनेगा झारखंड

Ranchi– झारखण्ड में जैविक खेती के प्रति किसानों की बढती रुचि और जैविक कृषि को अधिक लाभकारी बनाने की दिशा में बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के उद्यान वैज्ञानिकों ने एक अनोखी पहल की है.

दरअसल कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह की पहल से वैज्ञानिकों ने सब्जियों की जैविक खेती का मॉडल को तैयार किया है. करीबन सात महीने से संस्थान के वैज्ञानिक जैविक खेती के मॉडल को तैयार करने में जुटे है.

उद्यान वैज्ञानिक डॉ अब्दुल माजिद अंसारी ने बताया कि इस मॉडल के अधीन राज्य में सब्जियों की खेती के उपयुक्त लगभग सभी सब्जियों को समाहित करते हुए करीब 3 एकड़ भूमि में अनुसंधान किया जा रहा है. जिसमें खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली सब्जियों जैसे – भिंडी, बोदी, फ्रेंचबीन, लौकी, खीरा, नेनवा, मूली एवं गांधारी साग शामिल है.

खरीफ मौसम की सब्जियों की तोड़ाई के बाद रबी मौसम में उगाई जाने वाली सब्जियों जैसे- फुलगोभी, बंधागोभी, ब्रोकोली, मटर,  मेथी साग, पालक,  धनिया, मुली, प्याज, लहसुन, टमाटर एवं मिर्च आदि पर भी प्रयोग जारी है. वर्त्तमान में रबी मौसम की सब्जियां खेतों में लहलहा रही हैं.

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फसल प्रणाली के इस मॉडल में कोई भी रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता, बल्कि रासायनिक उर्वरकों के बदले कम्पोस्ट और वर्मी कम्पोस्ट का ही प्रयोग किया जाता है. इसके साथ ही कीट एवं रोग प्रबंधन में जैविक विधि वाली नीम आधरित दवाओं का प्रयोग किया जाता है.

विगत खरीफ मौसम में जैविक विधि से सब्जियों के उत्पादन में समुचित मात्रा में कम्पोस्ट एवं वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करने और समुचित वैज्ञानिक प्रबंधन से काफी बेहतर परिणाम मिला है. इस शोध में वैज्ञानिकों ने पाया कि जैविक विधि से सब्जियों की खेती से उसकी क्षमता का 75 प्रतिशत तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है. साथ ही मौसमवार उपयुक्त सब्जियों की जैविक खेती से सालों भर साग वाली सब्जियों का भरपूर उत्पादन लिया जा सकता है. साथ ही गुणवत्तायुक्त एवं स्वास्थ्य वर्धक सब्जियों के उत्पादन से बाजार में बढ़िया मूल्य में बेचने से अधिक लाभ भी होगा.

डॉ अंसारी बताते है कि सब्जियों की जैविक खेती में सही समय पर बुवाई और अनुकूल प्रभेद के चयन का विशेष स्थान है. इसलिए इस मॉडल में अगात या पिछात सब्जी फसल को शामिल नहीं किया गया. क्योंकि बेमौसमी सब्जी फसल की खेती में कीट एवं व्याधि का अधिक प्रकोप होता है. जिससे उत्पादन एवं गुणवत्ता में कमी होने से आर्थिक नुकसान होता है. इसलिए बेमौसमी सब्जी फसलों की जैविक कृषि से परहेज रखने की आवश्यकता है. इस मॉडल का विकास विश्वविद्यालय एवं आईसीएआर – नाहेप कास्ट परियोजना के वित्तीय सहयोग से किया जा रहा है.

इस कार्य में नाहेप परियोजना के कंसलटेंट एवं पूर्व इसरो वैज्ञानिक डॉ अंगदी रब्बानी का भी उल्लेखनीय सहयोग मिल रहा है. हाल ही में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर),नई दिल्ली के उप महानिदेशक (शिक्षा) डॉ आरसी अग्रवाल ने इस मॉडल के फार्म का विधिवत उद्घाटन करते हुए किसानों के हित में विश्वविद्यालय के इस अनूठी पहल की सराहना की. किसानों के लिए इस मॉडल को काफी लाभप्रद बताया.

परियोजना अन्वेंषक, नाहेप – कास्ट परियोजना डॉ एमएस मल्लिक ने बताया कि फसल प्रणाली आधारित सब्जियों की जैविक कृषि मॉडल से किसानों की आय में बढ़ोतरी तथा उपभोक्ता को सालोंभर स्वास्थ्यवर्धक सब्जी उत्पाद मिलने में सुगमता होगी.

कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने बताया कि सब्जी उत्पादन के मामले में झारखण्ड सरप्लस राज्य है. स्वास्थ्य के प्रति लोगों की जागरूकता से बाजार में जैविक सब्जियों की मांग बढ़ रही है. आने वाले समय में जैविक कृषि के इस उपयुक्त मॉडल को समेकित कृषि प्रणाली मॉडल में शामिल कर शोध को बढ़ावा दिया जायेगा. ताकि जैविक कृषि तकनीक किसानों के लिए अधिक उपयोगी साबित हों. इस मॉडल के शोध कार्यक्रमों से पीजी एवं पीएचडी छात्रों को भी लाभ होगा. उन्हें सब्जियों की जैविक कृषि में राष्ट्रीय स्तर पर शोध करने का अवसर मिलेगा.

रिपोर्ट : शाहनवाज

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