कल्पना नहीं इसे कहते है मन की आंख

कुमार अमित की रिपोर्ट

कोडरमा: आज हम आपको एक ऐसे कलाकार से मिलाएंगे, जिसकी आंखों में रोशनी नहीं है, लेकिन वह मिट्टी को हर आकार देने में सक्षम है। या यूं कहे कि कोडरमा के डोमचांच प्रखंड के रहने वाले सूरज पंडित मन की आंखों से मिट्टी के हर आकर दे सकते हैं।

कल्पना नहीं इसे कहते है मन की आंख

दरअसल 13 साल की उम्र में सूरज पंडित की आंखों की रोशनी चली गई, लेकिन इन्होंने अपने हिम्मत और जज्बे को कभी भी शारीरिक लाचारी के आडे नहीं आने दिया। पिछले 40 सालों से सूरज पंडित अपने पुश्तैनी धंधे को जीवित रखे हैं और मिट्टी के दीये समेत छठ और शादी विवाह में इस्तेमाल होने वाले बर्तन को तैयार करने में जुटे हैं।

कल्पना नहीं इसे कहते है मन की आंख

परिवार के सदस्यों की मदद से सूरज पंडित लगातार यह काम कर रहे हैं और जो भी इनके बारे में सुनता है इनसे मिलने जरूर पहुंचता है। चाक की तेज रफ्तार पर मिट्टी को हर आकार देने में जुटे सूरज पंडित का मानना है जो काम यह करते आ रहे हैं, वह उनके दादा परदादा ने इन्हें सिखाया था और अपने अनुभव के आधार पर मन की आंखों से यह मिट्टी के दिए और बर्तन बना लेते हैं।

परिवार के लोग बाजारों में जाकर इन बर्तनों को बेचते हैं जिससे परिवार का भरण पोषण होता है। इन्होंने बताया कि आंखों से दिखता नहीं है, ऐसे में बाहर जाकर कोई दूसरा काम कर नहीं सकते हैं। बहरहाल अनुभव के आधार पर बिना देखे सालों से अपने पुस्तैनी धंधे को जीवित रखा है। जिसमें मुनाफा भले ही कम होता है, लेकिन आत्म संतुष्टि बहुत मिलती है।

उपायुक्त मेघा भारद्वाज ने कहा कि पीएम विश्वकर्मा योजना के तहत सूरज पंडित को लाभान्वित किया जाएगा। इसके अलावे इस बार दीपावली और छठ को लेकर जो उत्पाद उन्होंने तैयार किए हैं, उसके अच्छे से बिक्री हो जाए इसके लिए भी प्रशासन के द्वारा प्रयास किए जाएंगे।

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