रांचीः चाय के लिए लोगों की दीवानगी किसी से छुपी नहीं है. सुबह की नींद से जगाने से लेकर मेहमान नवाजी करने तक सारा भार चाय के कंधे पर है. शायद ही कोई घर ऐसा हो जिसकी दिन की शुरुआत चाय से न होती हो. फिर भले ही वो दूध वाली चाय हो, ब्लैक टी हो, ग्रीन टी हो या फिर कोई और चाय ही क्यों न हो.
वैसे बहुत लोग चाय के शौकीन होते ही हैं. लेकिन अगर आप किसी वजह से चाय न पीते हों. तो आज चाय की एक चुस्की आपको जरूर लेनी चाहिए. अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों, तो आपको बता दें कि आज अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस है.
जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से हुई शुरुआत
अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस हर साल 21 मई को मनाया जाता है. यह दिन चाय के बग़ानों में काम रने वाले श्रमिकों की सुरक्षित कामकाजी परिस्थितियों, निष्पक्ष व्यापार और चाय के उत्पादन में सुधार के लिए एक स्थायी वातावरण के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए जाना जाता है.
भारतीय चाय बोर्ड ने इस दिन की योजना संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन के लिए एक आधिकारिक अवकाश बन जाने की उम्मीद के साथ बनाई थी . 2007 में टी बोर्ड ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में उत्पादित कुल चाय का लगभग 80 प्रतिशत घरेलू आबादी द्वारा उपभोग किया जाता है.
2005 में दिल्ली में मनाया गया था पहला अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस
पहला अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस 2005 में दिल्ली में आयोजित किया गया था. साल 2015 में भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संगठन को इस दिन को विश्व स्तर पर विस्तारित करने का प्रस्ताव दिया था. यह दिन मई के महीने में मनाया जाता है, क्योंकि यह साल को वह महीना है जिस समय अधिकांश देशों में चाय का उत्पादन शुरू होता है.
चाय का इतिहास
भारत में चाय का शुरुआत 18 वीं सदी से मानी जाती है. सबसे पहले बर्मा, म्यांमार और असम की सीमांत पहाड़ियों पर चाय के पौधे लगाने की शुरुआत हुई. अंग्रेजों के भारत आने के बाद चाय के उत्पादन में तेजी आई. पहले खेती के लिए चीन से बीज मंगवाए जाते थे. कुछ समय बाद असम की मशहूर चाय के बीजों का इस्तेमाल खेती के लिए किया जाने लगा और भारत में बड़े पैमाने पर चाय का उत्पादन शुरू हो गया.