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रांची। झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति से संबंधित 2016, 2017, 2018 और 2024 में जारी वरीयता सूची को अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया है। जस्टिस दीपक रोशन की एकल पीठ ने यह फैसला कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुनाया है। अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह जेपीएससी द्वारा वर्ष 2010 में आयोजित डीएसपी भर्ती परीक्षा के अंकों के आधार पर 16 सप्ताह के भीतर नई वरीयता सूची जारी करे।
अदालत ने 2012 के नियमों को बताया अप्रभावी
फैसले में हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि भर्ती प्रक्रिया की शुरुआत के समय जो नियम प्रभावी थे, वरीयता का निर्धारण केवल उन्हीं के आधार पर किया जा सकता है। चूंकि राज्य सरकार ने 2012 के नए नियमों को भर्ती शुरू होने के बाद लागू किया, इसलिए उसे प्रत्याशियों पर लागू नहीं किया जा सकता।
अदालत ने यह भी कहा कि सरकार द्वारा नियमों को आंशिक रूप से लागू किया गया, जिसमें जिला प्रशिक्षण के अंक शामिल नहीं किए गए, जो कि मनमानी और अवैध है।
याचिकाकर्ताओं की दलील और अदालत का रुख
याचिकाकर्ताओं—नजीर अख्तर, मनीष कुमार, राजा कुमार मित्रा, विकास चंद्र श्रीवास्तव व अन्य—का कहना था कि वरीयता सूची का निर्धारण केवल जेपीएससी की मेरिट लिस्ट के अंकों पर आधारित होना चाहिए। लेकिन सरकार ने प्रशिक्षण अंकों को भी जोड़कर वरीयता सूची जारी कर दी, जो नियमविरुद्ध था।
वहीं राज्य सरकार की ओर से दलील दी गई थी कि 2012 के नियमों के अनुसार प्रशिक्षण अंकों को वरीयता में शामिल करना उचित है। जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरावाल ने पैरवी की।
क्या है अगला कदम?
अब झारखंड सरकार को अदालत के आदेश के अनुसार 2010 की मेरिट लिस्ट के आधार पर डीएसपी वरीयता सूची दोबारा बनानी होगी। इस फैसले का असर पुलिस सेवा में चयनित कई अधिकारियों की स्थिति पर पड़ सकता है, जिससे प्रशासनिक हलकों में हलचल तेज हो गई है।