Wednesday, July 9, 2025

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‘मुहर्रम’ शहादत को याद करने का दिन, जानिए क्यों है खास, इस दिन क्यों मनाते हैं मातम

नवादा : नवादा में आज शहर के बुंदेलखंड से ताजिया दरों ने ताजिया को उठाया और कर्बला में ले जाकर समापन कर दिया। बता दें कि जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन कड़ी सुरक्षा के बीच ताजिया को पहलम करवाया। बताते चलें कि मुहर्रम का पर्व शहादत और कुर्बानी को याद करने का दिन होता है। मुहर्रम से ही इस्लामिक कैलेंडर की शुरुआत होती है। मुहर्रम अधर्म पर धर्म की विजय का संदेश देता है।

'मुहर्रम' शहादत को याद करने का दिन, जानिए क्यों है खास, इस दिन क्यों मनाते हैं मातम

मुहर्रम शहादत और कुर्बानी को याद करने का दिन है

मुहर्रम शहादत और कुर्बानी को याद करने का दिन है। आज ही इस्‍लामी कैलेंडर का पहला महीना है और इसी से इस्‍लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है। लेकिन इस महीने की एक से 10वें मुहर्रम तक हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम मातम मनाते हैं। यह दिन पूरी दुनिया को मानवता का संदेश देने के साथ ही हर बुराई से बचने और अच्छाई को अपनाने का संदेश देता है। मान्‍यता है कि इस महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, जिसके चलते इस दिन को रोज-ए-आशुरा कहते हैं। मुहर्रम का यह सबसे अहम दिन माना गया है। इस दिन जुलूस निकालकर हुसैन की शहादत को याद किया जाता है। 10वें मुहर्रम पर रोज़ा रखने की भी परंपरा है।

इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था

इस्‍लामी मान्‍यताओं के अनुसार, इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था। यजीद खुद को खलीफा मानता था, लेकिन अल्‍लाह पर उसका कोई विश्‍वास नहीं था। वह चाहता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामिल हो जाएं। लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था और उन्‍होंने यजीद के विरुद्ध जंग का ऐलान कर दिया था। भूख-प्यास के बीच जारी युद्ध में हजरत इमाम हुसैन ने प्राणों की बलि देना बेहतर समझा, लेकिन यजीद के आगे समर्पण करने से मना कर दिया। महीने की 10 वीं तारीख को पूरा काफिला शहीद हो जाता है। चलन में जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था।

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अनिल कुमार की रिपोर्ट