Sawan 2022: सावन में हरी चूड़ियां और मेहंदी लगाने का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व है.
मान्यता है कि सावन में भोलेनाथ को प्रसन्न कर उनकी विशेष कृपा प्राप्त की जा सकती है.
सावन में भागवान शिव की पूजा करना शुभ होता है.
जो भी इस महीने में सोमवारी का व्रत करता है, उसी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है.
वहीं सावन शुरू होती ही महिलाएं हाथों में हरी चूड़ियां पहनती है और मेहंदी लगाती है.
इस मौसम में हर तरफ हरियाली देखने को मिलती है.
क्या आप जानते हैं कि सावन में मेहंदी क्यों लगाई जाती है? इसका क्या महत्व है.
धर्मग्रंथों के अनुसार महिलाओं को तीज और व्रत पर सौलह श्रृंगार करना जरूरी माना गया है.
मेहंदी भी महिलाओं की सौभाग्य में एक है.
सावन में कई त्योहार होते हैं और इस महीने से ही महिलाओं के
व्रत और पूजा-पाठ शुरू हो जाती हैं.
जिनको करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और घर में समृद्धि आती हैं.
सावन में मेहंदी लगाने की धार्मिक मान्यता
शादी हो या कोई तीज-त्योहार मेहंदी के बिना अधूरे हैं.
मेंहदी को हिंदू धर्म में सावन के महीने में मेहंदी लगाना बेहद शुभ माना जाता है.
यह परम्परा भी काफी पुरानी है. माना जाता है कि सावन में मेहंदी लगाने से पति-पत्नी का रिश्ता मजबूत होता है. कहते हैं कि महिला के हाथों में लगी मेहंदी का रंग जितना गहरा होता है, उतना ही पति का प्यार मिलता है. इसके साथ ही माता पार्वती भी प्रसन्न होती हैं.
ये है वैज्ञानिक महत्त्व
सावन में मेहंदी लगाने का वैज्ञानिक महत्व ये है कि खुशबू और ठंडक तनाव को कम करती है. मेहंदी की तासीर ठंडी होती है, इसलिए इसका उपयोग किया जाता है. वहीं शरीर में बढ़ती गर्मी को कम करने के लिये भी किया जाता है. हाथों और पेरों के तलवे में मेहंदी लगाने से शरीर की गर्मी कम होती है. तनाव, सिरदर्द और बुखार से राहत मिलती है. मेहंदी लगाने से त्वचा संबंधी कई रोग दूर होते हैं.
मेहंदी लगाने के स्वास्थ्य लाभ
- मेहंदी लगाने से शरीर को ठंडक मिलती है. इस वजह से भी सावन के महीने में मेहंदी लगाई जाती है. इससे हाथ भी खूबसूरत लगते हैं.
- मेहंदी में हीलिंग प्रॉपर्टीज होती है. अगर आपको कहीं पर चोट लगी है, तो आप उस जगह पर मेहंदी लगा सकते हैं. इससे चोट की जलन कम होती और यह घाव भरने में भी मददगार साबित होती है.
- मेहंदी लगाने से तनाव, सिरदर्द और बुखार से भी राहत मिलती है. इसे लगाने से त्वचा संबंधी कई रोग भी दूर होते हैं और साथ ही त्वचा की खुश्की भी दूर होती है.
भोलेनाथ पर क्यों किया जाता है जलाभिषेक
इस महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक भी किया जाता है. इसकी धार्मिक कथा भी है. शिवपुराण की कथा के अनुसार-जब समुद्र मंथन हुआ था, उसमें से सबसे पहले विष निकला था. उस विष के कारण पूरे संसार पर संकट छा गया क्योंकि वह देव, मनुष्य, पशु-पक्षी आदि सभी के जीवन के लिए हानिकारक था. अब समस्या यह थी कि उस विष का क्या होगा? इस संकट का क्या हल है? तब महादेव ने इस संकट से पूरी सृष्टि को बचाने का निर्णय लिया.
उन्होंने उस पूरे विष को पीना शुरू कर दिया. उसी समय माता पार्वती ने उस विष को भगवान शिव के कंठ में ही रोक दिया. वह विष शिव जी के कंठ में ही रह गया और शरीर में नहीं फैला. विष के कारण शिव जी का कंठ नीला हो गया. इसी कारण से शिव जी को नीलकंठ भी कहते हैं. विष का प्रभाव भगवान शिव पर न हो, इसके लिए सभी देवों ने उनका जलाभिषेक किया. यह घटना सावन माह में हुई थी. इस वजह से हर साल सावन माह में भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक किया जाता है, ताकि वे प्रसन्न हों और उनकी कृपा प्राप्त हो.