जनार्दन सिंह की रिपोर्ट
रांची: कोल्हान टाईगर – चंपाई को चुभ गई आत्मसम्मान पर चोट, भरे मन से छोड़ा जेएमएम। जिस संताल और कोल्हान में झारखंड के मूलवासी आदिवासी बसते हैं, उसी कोल्हान के टाईगर के रूप में झारखंड की सियासत में अपनी अलग पहचान और रसूख रखने वाले वरिष्ठ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) संस्थापक सदस्य रहे पूर्व मुख्यमंत्री ने रविवार को अपने हाथों से सींचे गए संगठन को छोड़ दिया।
ऐसे में स्वाभाविक है कि आखिर कुछ तो बड़ी वजहें रही होंगी जिसने इस बुजुर्ग हो चले कोल्हान टाईगर को सूबे की सियासत में अलग राह पर चलने को मजबूर किया। इसका खुलासा खुद चंपाई सोरेन ने दिल्ली पहुंचने के बाद सोशल मीडिया पर जारी अपने बयान में कर दिया है।
उसका लब्बोलुवाब यही है कि संगठन और सरकार में वह इतने बेतरतीबी से अपमानित कर हाशिए पर डाल दिए गए कि न तो रोते बन रहा था ना ही हंसते। शिबू सोरेन का स्वास्थ्य ठीक रहता और वह राजनीति में सक्रिय रहते तो टाईगर उनसे अपनी पीड़ा साझा करता और हो रहे अपने तिरस्कार की वजहों को खुलकर पूछ लेता।
लेकिन यहां तो संगठन से लेकर सरकार में सभी जूनियर ही हावी हैं और ऐसे में रिमोट बनकर रहना गंवारा नहीं हुआ तो काफी मंथन के बाद अपने पुराने संगठन को छोड़ने का विकल्प चुना।
‘जोहार साथियों’ के संबोधन से चंपाई ने लिखा – ‘आखिर ऐसा क्या हुआ…’
रविवार की सुबह से झारखंड की सियासत में कोल्हान टाईगर चंपाई सोरेन ही सुर्खियों में छाए रहे। कोलकाता के रास्ते दिल्ली पहुंचने के दौरान मीडिया भी लगातार इनके पीछे लगी रही कि क्या कुछ नया होने वाला है।
झारखंड की सियासत के पुराने चावल कहे जाने वाले चंपाई सोरेन ने दिल्ली पहुंचने के बाद भी कैमरे पर आकर कुछ नहीं नहीं कहा लेकिन अपनी पूरी पीड़ा सोशल मीडिया पर जारी पाती में खुलकर कह दी।
लिखा कि – ‘जोहार साथियों, आज समाचार देखने के बाद, आप सभी के मन में कई सवाल उमड़ रहे होंगे। आखिर ऐसा क्या हुआ, जिसने कोल्हान के एक छोटे से गांव में रहने वाले एक गरीब किसान के बेटे को इस मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया।
अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत में औद्योगिक घरानों के खिलाफ मजदूरों की आवाज उठाने से लेकर झारखंड आंदोलन तक, मैंने हमेशा जन-सरोकार की राजनीति की है। राज्य के आदिवासियों, मूलवासियों, गरीबों, मजदूरों, छात्रों एवं पिछड़े तबके के लोगों को उनका अधिकार दिलवाने का प्रयास करता रहा हूं।
किसी भी पद पर रहा अथवा नहीं, लेकिन हर पल जनता के लिए उपलब्ध रहा, उन लोगों के मुद्दे उठाता रहा, जिन्होंने झारखंड राज्य के साथ, अपने बेहतर भविष्य के सपने देखे थे।
इसी बीच, 31 जनवरी को, एक अभूतपूर्व घटनाक्रम के बाद, इंडिया गठबंधन ने मुझे झारखंड के 12वें मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की सेवा करने के लिए चुना। अपने कार्यकाल के पहले दिन से लेकर आखिरी दिन (3 जुलाई) तक, मैंने पूरी निष्ठा एवं समर्पण के साथ राज्य के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया।
इस दौरान हमने जनहित में कई फैसले लिए और हमेशा की तरह, हर किसी के लिए सदैव उपलब्ध रहा। बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों एवं समाज के हर तबके तथा राज्य के हर व्यक्ति को ध्यान में रखते हुए हमने जो निर्णय लिए, उसका मूल्यांकन राज्य की जनता करेगी।
जब सत्ता मिली, तब बाबा तिलका मांझी, भगवान बिरसा मुंडा और सिदो-कान्हू जैसे वीरों को नमन कर राज्य की सेवा करने का संकल्प लिया था।’
टाईगर ने विस्तार से लिखा कि सीएम रहकर भी कैसे पीया अपमान का घूंट…
इसी क्रम में चंपाई सोरेन ने आगे वह घटनाक्रम भी लिखा है कि कब और कैसे उन्हें सरेआम अपमानित होना पड़ा। लिखा कि, – ‘झारखंड का बच्चा- बच्चा जनता है कि अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने कभी भी, किसी के साथ ना गलत किया, ना होने दिया।
इसी बीच, हूल दिवस के अगले दिन, मुझे पता चला कि अगले दो दिनों के मेरे सभी कार्यक्रमों को पार्टी नेतृत्व द्वारा स्थगित करवा दिया गया है। इसमें एक सार्वजनिक कार्यक्रम दुमका में था, जबकि दूसरा कार्यक्रम पीजीटी शिक्षकों को नियुक्ति पत्र वितरण करने का था।
पूछने पर पता चला कि गठबंधन द्वारा 3 जुलाई को विधायक दल की एक बैठक बुलाई गई है, तब तक आप सीएम के तौर पर किसी कार्यक्रम में नहीं जा सकते।
क्या लोकतंत्र में इस से अपमानजनक कुछ हो सकता है कि एक मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों को कोई अन्य व्यक्ति रद्द करवा दे?
अपमान का यह कड़वा घूंट पीने के बावजूद मैंने कहा कि नियुक्ति पत्र वितरण सुबह है, जबकि दोपहर में विधायक दल की बैठक होगी, तो वहां से होते हुए मैं उसमें शामिल हो जाऊंगा।
लेकिन, उधर से साफ इंकार कर दिया गया। पिछले चार दशकों के अपने बेदाग राजनैतिक सफर में, मैं पहली बार, भीतर से टूट गया’।
चंपाई ने लिखा – इस्तीफा मांगे जाने पर रह गए थे चकित लेकिन दे दिया…
अपनी व्यथा-कथा को लिखते हुए पूर्व सीएम चंपाई सोरेन ने कुर्सी के मोह की ओर भी खुलकर संकेतों में बयान किया है। लिखा कि- ‘कहने को तो विधायक दल की बैठक बुलाने का अधिकार मुख्यमंत्री का होता है, लेकिन मुझे बैठक का एजेंडा तक नहीं बताया गया था।
बैठक के दौरान मुझसे इस्तीफा मांगा गया। मैं आश्चर्यचकित था, लेकिन मुझे सत्ता का मोह नहीं था, इसलिए मैंने तुरंत इस्तीफा दे दिया, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी चोट से दिल भावुक था।
पिछले तीन दिनों से हो रहे अपमानजनक व्यवहार से भावुक होकर मैं आंसुओं को संभालने में लगा था, लेकिन उन्हें सिर्फ कुर्सी से मतलब था। मुझे ऐसा लगा, मानो उस पार्टी में मेरा कोई वजूद ही नहीं है, कोई अस्तित्व ही नहीं है, जिस पार्टी के लिए हम ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया’।
बकौल चंपाई – आत्मसम्मान पर लगी चोट किसे दिखाता, क्या विकल्प था ?
इसी कड़ी में सोशल मीडिया पर जारी अपनी पाती में सीएम चंपाई ने लिखा है कि – ‘समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं। दो दिन तक, चुपचाप बैठ कर आत्म-मंथन करता रहा, पूरे घटनाक्रम में अपनी गलती तलाशता रहा। सत्ता का लोभ रत्ती भर भी नहीं था, लेकिन आत्म-सम्मान पर लगी इस चोट को मैं किसे दिखाता?
अपनों द्वारा दिए गए दर्द को कहां जाहिर करता? जब वर्षों से पार्टी के केन्द्रीय कार्यकारिणी की बैठक नहीं हो रही है, और एकतरफा आदेश पारित किए जाते हैं, तो फिर किस से पास जाकर अपनी तकलीफ बताता?
इस पार्टी में मेरी गिनती वरिष्ठ सदस्यों में होती है, बाकी लोग जूनियर हैं, और मुझ से सीनियर सुप्रीमो जो हैं, वे अब स्वास्थ्य की वजह से राजनीति में सक्रिय नहीं हैं, फिर मेरे पास क्या विकल्प था? अगर वे सक्रिय होते, तो शायद अलग हालात होते।
इस बीच कई ऐसी अपमानजनक घटनाएं हुईं, जिसका जिक्र फिलहाल नहीं करना चाहता। इतने अपमान एवं तिरस्कार के बाद मैं वैकल्पिक राह तलाशने हेतु मजबूर हो गया।
मैंने भारी मन से विधायक दल की उसी बैठक में कहा कि – “आज से मेरे जीवन का नया अध्याय शुरू होने जा रहा है।” इसमें मेरे पास तीन विकल्प थे- पहला, राजनीति से सन्यास लेना, दूसरा, अपना अलग संगठन खड़ा करना और तीसरा, इस राह में अगर कोई साथी मिले, तो उसके साथ आगे का सफर तय करना।
उस दिन से लेकर आज तक, तथा आगामी झारखंड विधानसभा चुनावों तक, इस सफर में मेरे लिए सभी विकल्प खुले हुए हैं’।
कम रोचक नहीं रहा है कोल्हान टाईगर चंपाई का सियासी करियर
कोल्हान टाईगर चंपाई सोरेन का सियासी करियर भी कम रोचक नहीं है। दसवीं तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद से युवा चंपाई ने जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन के आह्वान पर उनके साथ एक बार जुड़े तो फिर उन्हीं के होकर रह गए।
विचार और सिद्धांत को ऐसा आत्मसात किया कि अभी तक वही इनकी रगों में है। अविभाजित विभाग से अलग झारखंड राज्य गठित करने के लिए शुरू हुए आंदोलन में शिबू सोरेन के साथ चंपाई सोरेन पूरे समय कंधे से कंधा मिलाकर संघर्षरत रहे।
पूरे कोल्हान इलाके में उसी आंदोलन के दौरान सबसे प्रभावी सियासी शख्सियत बनकर उभरे। वर्ष 1991 में पहली बार सरायकेला सीट से उपचुनाव में जीतकर विधायक बने और सत्ता की सियासत में सीधे तौर पर उतरे तो फिऱ पीछे मुड़कर नहीं देखा। अर्जुन मुंडा की सरकार बनी तो उसमें भी मंत्री रहे और बाद में कांग्रेस के साथ बनी जेएमएम की सरकार में ये कैबिनेट मंत्री भी बने।