एस के राजीव
Lalu Birthday Special: बिहार के गोपालगंज की धूसर मिट्टी से निकल बिहार की सियासत के डीएनए को बदल देने वाले लालू प्रसाद यादव का आज 77वां जन्मदिन है। ये बात अलग है कि लालू चारा घोटाला और नौकरी के बदले जमीन देने के मामले में सजायाफ्ता होने के वावजूद जेल से निकल पटना आवास पर अपने अतीत को याद कर ठंडी आहें भर रहें हों लेकिन बिहार की सियासत और एक खास वर्ग के लोगों में आज भी लालू वहीं हैं जहां वे 1990 के दशक में हुआ करते थे।
Lalu Birthday Special:
लालू प्रसाद यादव उर्फ़ लालू, बिहार ही नहीं देश की राजनीति का वो चेहरा जिसने 1990 के दशक में सियासत की एक नई पटकथा लिख दी। लालू मूल रुप से गोपालगंज के रहनेवाले हैं और उन्होंने गरीबी इतनी करीब से देखी कि गरीबों को राज दिलाने के लिये राजनीति का सहारा लिया। राजनीति में जाति पाति की पटकथा लिखने वाले लालू एक ऐसे नेता बने जिसने बिहार के एक खास वर्ग को उसकी अलग पहचान दिलाई तो दूसरी तरफ शोषितों और वंचितों को यह समझाने में भी सफल रहे कि जिसकी जितनी हिस्सेदारी होगी उसकी उतनी ही भागेदारी भी होगी।
1990 के पहले कांग्रेस सत्ता में रहती थी, और पार्टी नेतृत्व मुख्यमंत्री का चयन करता था। लालू ने इस तिलस्म को तोड़ा और संघर्ष से निकल मुख्यमंत्री बने। साथ ही इस तिलस्म को भी तोड़ा कि कोई संघर्षशील व्यक्ति भी सत्ता के सर्वोच्च शिखर पर बैठ सकता है। जब कांग्रेस की सरकार को बिहार में सत्ता से हटाने के लिये लालू मैदान में आये तो उन्होंने सबसे पहले सवर्णों के विरोध को ही मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया और पिछड़ों अतिपिछड़ों को यह बताने की कोशिश की कि सवर्ण सत्ता से लेकर सरकारी नौकरी तक उनके अधिकार की हकमारी कर बैठे हैं।
फिर क्या था लालू ने बिहार में ऐसी बादशाहत कायम की जिसका सिक्का आज भी चलता आ रहा है और राजद सुप्रीमो सहित बेटे तेजस्वी भी उसकी रोटी आज भी खा रहे हैं। 1990 में ही तात्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह से आरक्षण बिल पास करवाकर लालू ने देश में गरीबों के लिये एक ऐसा पौध लगा दिया जिसकी फसल आज भी पिछड़े काट कर खा रहे हैं।
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लालू देश के इतिहास में पहले ऐसे मुख्यमंत्री बने जो रिक्शे पर चलकर तो कभी खुद साईकिल पर सवार होकर बिहार विधानसभा पहुंचते तो कभी एक अणे मार्ग के सीएम हाउस में बैगन तोड़ते हुये आईएएस और आईपीएस की मीटींग करते। चुनावी दौर में लालू कभी दियारा में हेलीकॉप्टर उतार चरवाहों को हेलीकॉप्टर पर बिठा तो कभी खुद भैस की पीठ पर बैठकर एक खास जाति के लोगों को अपने वोट बैंक में कन्वर्ट किया तो कभी आईएएस को नौकर कहकर जनता को यह संदेश देने की कोशिश की लोकतंत्र में जनता ही मालिक है।
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लालू ने राजनीति में वो किया जो शायद कभी किसी ने सोचा भी नहीं होगा। लालू बिहार की राजनीति के वो न्यूटन रहे जिसने पॉलिटिक्स के नियमों को खुद बनाया और खुद ही तोड़ा भी। आज देश में नीतीश से लेकर मोदी तक महिला सशक्तिकरण की बात कर रहे हों लेकिन लालू ने आज से 25 साल पहले अचानक पत्थर तोड़ने वाली भगवतिया देवी को संसद भेज महिला सशक्तिकरण की नींव रख दी थी।
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2022 में कपड़ा धोने वाली मुन्नी रजक को विधान परिषद भेज दिया। बिहार में जब 2015 का विधानसभा चुनाव हुआ तो लालू ने नीतीश के साथ गठबंधन होने के बावजूद नीतीश और भाजपा दोनों से ज्यादा सीटें जीतकर यह बता दिया कि बिहार की सियासत लालू की उपेक्षा कर नहीं चल सकती। हालांकि 2024 के लोकसभा चुनाव में राजद ने महज 4 सीटें जीतीं तो लालू पर कम और बेटे तेजस्वी ज्यादा सवालों के घेरे में हैं।
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सारण से मनोरंजन पाठक की रिपोर्टcial