डिजीटल डेस्क: Supreme Decision से बिहार की सियासत में फिर सुर्खियों में लालू यादव लेकिन बढ़ी उनकी सियासी चिंताएं। वर्ष 1998 में बिहार की राजधानी पटना में 13 की शाम 5 बजे तत्कालीन कैबिनेट मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या के मामले में गुरूवार को Supreme कोर्ट के फैसले के बाद फिर से राजद सुप्रीमो लालू यादव सुर्खियों के केंद्र में हैं।
इसके पीछे एक बड़ी वजह यह है कि घटना के तत्कालीन और मौजूदा पहलू सीधे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को ही सियासी तौर पर प्रभावित करने वाले रहे हैं।
26 साल में लालू यादव के लिए एकदम से बदल गई तस्वीर
मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की की जब 26 साल पहले हत्या हुई थी और अब जब फैसला आया है, दोनों के दौरान के सियासी नफा-नुकसान के लिहाज से राजद सुप्रीमो लालू यादव के लिए पूरी तस्वीर ही बदल गई है।
वर्ष 1998 में यानी 26 साल पहले जब तत्कालीन कैबिनेट मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की हत्या हुई, तब लालू यादव के लिए वह बड़ा सियासी झटका था। कारण कि तत्कालीन राबड़ी देवी मंत्रिमंडल के पावरफुर मंत्री बृजबिहारी प्रसाद लालू यादव के ने केवल करीबी माने जाते थे।
साथ ही वह प्रतिपक्षी बाहुबली खेमेबंदी के खिलाफ तुरूप का इक्का थे। अब Supreme कोर्ट का इस केस पर फैसला आने पर उम्रकैद की सजा पाए मु्न्ना शुक्ला बदले सियासी समीकरणों में लालू यादव के भरोसेमंद हैं एवं उनसे लालू यादव ने सियासी लिहाज से काफी उम्मीदें लगा रखीं थीं।
मंत्री बृजबिहारी की हत्या के बाद से ही चंपारण से सियासी तौर पर सिमट गए लालू यादव
बिहार का चंपारण दो भागों में बंटा है – पूर्वी और पश्चिमी। पश्चिमी वाले भाग को बेतिया भी कहते हैं और पूर्वी वाले भाग को मोतिहारी।
वर्ष 1995 के विधानसभा चुनाव में इन दोनों ही जिलों की 20 में से 12 विधानसभा सीटों पर लालू यादव ने जीत हासिल की थी। और वह भी तब, जब सवर्ण समुदाय का इन इलाकों में जोर हुआ करता था। उस जीत की वजह तब के मंत्री बृजबिहारी की कुश रणनीति थी।
बृजबिहारी खुद मोतिहारी का आदापुर से विधायक चुने गए थे। बिहार की सियासत में तब लालू यादव के लिए वर्ष 1995 के चुनाव के बाद बृजबिहारी आंख और कान बन गए थे।
आज भी पुराने लोग बताते हैं और याद करते हैं कि तब तो उत्तर बिहार का फैसला लालू यादव बिना बृजबिहारी से पूछे लालू लेते भी नहीं थे। उसकी 2 वजहें थी। पहला कि – बृजबिहारी लालू यादव के पिछड़ों की गोलबंदी में फिट थे और दूसरा कि – आनंद मोहन की तरह ही मुजफ्फरपुर में उनकी सियासी किलेबंदी मजबूत थी।
बता दें कि बृजबिहारी ने बिहार की राजनीति में एंट्री मुजफ्फपुर से ही की थी। लेकिन वर्ष 1998 में बृजबिहारी की हत्या होते ही लालू यादव चंपारण की राजनीति में सिमट गए।
नतीजा यह हुआ कि वर्ष 2000 के चुनाव में मोतिहारी और बेतिया की 20 में से राजद सिर्फ 5 सीटों पर जीत सकी। यही नहीं, बृजबिहारी प्रसाद की आदापुर सीट भी तब राजद नहीं जीत पाई थी।
वर्ष 2000 के बाद से ही चंपारण में राजद का प्रदर्शन लगातार खराब रहा। वर्ष 2005, 2010, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में भी राजद चंपारण में कोई करिश्मा नहीं कर पाई।
Supreme Decision ने विधानसभा चुनाव की तैयारी में बढ़ा दी है राजद सुप्रीमो की सियासी टेंशन…
बृजबिहारी प्रसाद हत्या के मामले में पर Supreme कोर्ट के फैसले ने राजद सुप्रीमो लालू यादव की टेंशन बढ़ा दी है। इस हत्याकांड के मामले में विजय शुक्ला उर्फ मुन्ना शुक्ला को दोषी ठहराया गया है जो कि अभी राजद (राष्ट्रीय जनता दल) में ही हैं।
पार्टी के सिंबल पर 2024 का चुनाव वैशाली से लड़ चुके हैं और भले ही वह चुनाव नहीं जीत पाए थे , लेकिन राजद के खाते में 4 लाख 50 हजार से ज्यादा वोट हासिल करने में सफल रहे थे। यही कारण रहा कि राजद सुप्रीमो ने मुन्ना शुक्ला के सहारे विधानसभा चुनाव में वैशाली और हाजीपुर में सियासी मोर्चेबंदी की तैयारी कर रही थी।
बता दें कि हाजीपुर और वैशाली के अधीन विधानसभा की 12 सीटें हैं। वर्ष 2020 में इन 12 में आरजेडी को सिर्फ 5 पर जीत मिली थी। राजद मुन्ना शुक्ला के जरिए वैशाली और हाजीपुर की भूमिहार बाहुल्य सीटों को जीतने की रणनीति बना रही थी।
लेकिन बदले हालात में अब Supreme कोर्ट के फैसले से सरसरी तौर पर राजद की रणनीति पर पानी फिरने की आशंका गहरा गई है। बता दें कि बिहार में अब से एक साल बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं।