नीतीश का नौकरशाह प्रेम

एसके राजीव

पटना : सीएम नीतीश कुमार का नौकरशाह प्रेम जगजाहिर है। सरकार चलने से लेकर पार्टी को हांकने तक नेताओं से ज्यादा नौकरशाहों पर भरोसा करते हैं। चाहे उनके प्रधान सचिव दीपक कुमार हो या फिर उनके बेहद करीबी रहे आरसीपी सिंह। नीतीश कुमार अबतक कई नौकरशाहों को जनता दल यूनाइटेड (JDU) की सदस्यता दिला कर पार्टी की कमान उनके हाथों में सौपा है। नीतीश कुमार अब 2000 बैच के ओड़िसा कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी मनीष वर्मा को अब अपना उत्तराधिकारी चुनकर सियासी गलियारों में भूचाल ला दिया है।

एक दौर में नीतीश कुमार के बेहद करीबी रहे आरसीपी सिंह भारतीय प्रशानिक सेवा से वीआरएस लेने के बाद राजनीति में कदम रखा था और जदयू की सदस्यता ग्रहण करने के बाद नीतीश कुमार ने पार्टी की कमान उनके हाथों में सौपी थी। आरसीपी सिंह पार्टी में दूसरे नंबर के नेता थे और उन्हें नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था। लेकिन किसी खास कारणों से नीतीश कुअंर से मदभेद होने के बाद उन्हें पार्टी से बहार का रास्ता देखना पड़ा था।

ये कोई पहली दफा है जब नीतीश कुमार किसी आईएएस पर भरोसा किया है। ये इस पार्टी के सातवें आईएस है, जिस पर नीतीश कुमार ने भरोसा किया है। इसके पहले एनके सिंह, पवन वर्मा, केपी रमैया, गुप्तेस्वर पांडेय और आरसीपी सिंह इस तरह के कई नाम है। जिस पर नीतीश कुमार ने भरोसा किया है। इतना ही नहीं सुनील कुमार सिंह आईपीएस रह चुके हैं और वो जदयू कोटे से शिक्षा मंत्री है। अब जरा जदयू जॉइन करने के बाद पूरी तरह तेवर में मनीष वर्मा लौटे हैं।

नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को 2021 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया। पार्टी और संगठन दोनों को के कार्यो को सिद्दत से देखने लगे थे। नीतीश कुमार संगठनात्मक कार्यो में आरसीपी सिंह के अलावा किसी पर भरोसा नहीं करते थे। वजह थी की पार्टी और संगठन के कार्यो को जमीन पर उतारने वाले नेता की कमी थी लेकिन अब मनीष वर्मा के दल में आने से ये कमी पूरी हो सकती है। मनीष वर्मा पिछले 12 सालों से नीतीश कुमार के साथ उनके साये की तरह हर समय साथ रहते हैं। इसलिए उनकी कार्यशैली नीति और सिद्धांतो को बखूबी समझते हैं।

बिहार सहित देश में नीतीश सत्ता से लेकर सियासत तक में नए प्रयोग करने के लिए जाने जाते रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर एक स्वजातीय आईएएस पर विश्वास जता कर नीतीश ने बिहार की राजनीति को यह संदेश देने की कोशिश की है की चाहे कुछ भी हो जाए। उनके लिए अपनी जमीन अपनी जाति और नौकरशाही ही हमेशा से उनके विश्वास पर खरी उतरती रही है। जिसे छोड़कर वे सियासत की सियासी पारी के विषय में सोच भी नहीं सकते।

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