खरीफ शोध की तैयारी शुरू

 

कृषि वैज्ञानिकों के दल ने किया कार्यों का आकलन

रांची:डॉ. ओंकार नाथ सिंह, बिरसा कृषि विश्वविद्यालय (बीएयू) के कुलपति, ने कृषि वैज्ञानिकों को से अनुरोध किया है कि वे खरीफ फसलों के शोध कार्यक्रमों की तैयारी शुरू करें.

इसके तहत, निदेशक अनुसंधान डॉ. पीके सिंह और डीन एग्रीकल्चर डॉ. डीके शाही के नेतृत्व में कृषि वैज्ञानिक दल ने वेस्टर्न सेक्शन फार्म के खेतों में खरीफ शोध कार्यों का मूल्यांकन किया है.

पौधा प्रजनन वैज्ञानिक दल ने मौसम की बारिश को देखते हुए अगले एक-दो दिनों में खरीफ फसलों की बोई शुरू करने की योजना बनाई है. मौके पर निदेशक अनुसंधान डॉ. पीके सिंह ने वैज्ञानिकों को बताया कि इस शोध फार्म में खरीफ शोध से जुड़ी फसलों में मदुआ, मकई, अरहर, उरद, मूंग, सरगुजा, मूंगफली और सोयाबीन की बोई कार्यों को एक सप्ताह में पूरा करें.

मौके पर निदेशक अनुसंधान डॉ पीके सिंह ने वैज्ञानिकों को करीब 55 एकड़ में फैले इस शोध फार्म में खरीफ शोध से जुड़ी फसलों में मड़ुआ, मकई, अरहर, उरद, मूंग, सरगुजा, मूंगफली एवं सोयाबीन आदि का बोवाई कार्य को एक सप्ताह में पूरी करने को कहा.

शोध कार्य में बीएयू द्वारा विकसित एवं हाल में विकसित किस्मों के गुणात्मक बढ़ोतरी को प्राथमिकता देने को कहा. उन्होंने पौधा प्रजनक वैज्ञानिकों को राज्य के तीन कृषि पारिस्थितिकी में अवस्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केन्द्रों, दुमका, चियांकी (पलामू) एवं दारीसाई (पुर्वी सिंहभूम) का दौरा करने और विकसित किस्मों तथा शोध कार्यक्रमों को बढ़ावा देने का निर्देश दिया.

डॉ सिंह ने वैज्ञानिकों को विभिन्न आईसीएआर परियोजना के अधीन संचालित अनुसंधान कार्यक्रमों के तहत किसानों के खेतों में खरीफ फसलों का अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण (एफएलडी) ससमय शुरू करने का निर्देश दिया.

साथ ही बीजोत्पादन एवं अन्य कार्यक्रमों में राज्य के कृषि विज्ञान केन्द्रों की सहभागिता एवं सहयोग पर बल दिया. मौके पर डीन एग्रीकल्चर डॉ डीके शाही ने बोवाई से पूर्व खेतों में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन तथा दलहनी एवं तेलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर (जैव उर्वरक) के उपयोग पर प्रकाश डाला.

आनुवांशिकी एवं पौध प्रजनन विभाग की अध्यक्षा डॉ मणिगोप्पा चक्रवर्ती ने बताया कि वेस्टर्न सेक्शन फार्म में 8 आईसीएआर – अखिल भारतीय समन्वित परियोजनाओं एवं 12 राज्य योजनाओं से सबंधित खरीफ शोध कार्यक्रम होंगे. फार्म के 55 एकड़ भूमि में मिल्लेट्स फसलों (मड़ुआ,गुन्दली, कंगनी एवं कोदो), मकई, अरहर, उरद, मूंग, सरगुजा, सोयाबीन, मूंगफली तथा धान आदि फसलों से सबंधित शोध कार्यक्रम होंगे. इन शोध कार्यक्रमों का राज्य हित एवं राष्ट्रीय स्तर पर विशेष महत्त्व निहित होगा.

शस्य वैज्ञानिक डॉ एकलाख अहमद ने फार्म के करीब 17 एकड़ भूमि में धान की करीब 480 उन्नत किस्मों पर शोध कार्यक्रम की बात कही. टांड़ भूमि में धान की सीधी बोवाई जल्द शुरू किये जाने की बात कही. उन्होंने धान की सीधी बोवाई में अनुशंसित प्रभेदों में सहभागी, बिरसा धान -108, बिरसा विकास धान -109, बिरसा विकास धान -110, बिरसा विकास धान -111 एवं वंदना को उपयुक्त बताया.

वैज्ञानिक दल ने फार्म ‘सनई’ की खड़ी फसल को देखा और फसल प्रदर्शन पर संतोष जताया. शस्य वैज्ञानिक डॉ अशोक कुमार सिंह ने सनई फसल का धान के खेत में हरी खाद के रूप में उपयोग करने की बात कहीं. उन्होंने बताया कि इसे धान रोपाई/सीधी बोवाई से पहले खेतों में डालकर मिलाया जायेगा. बुआई के 36 – 40 दिनों के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से 15 से 20 सेमी की गहराई पर पलट दिया जायेगा.

इससे खेतों में नमी बनी रहती है, मिट्टी की भौतिक संरचना में सुधार के साथ-साथ यह खड़ी धान फसल को 20-25 किलो प्रति हेक्टेयर नत्रजन भी प्रदान करता है. वैज्ञानिकों के दल में डॉ नीरज कुमार, डॉ सीएस महतो, डॉ एकलाख अहमद, डॉ अरुण कुमार, डॉ अशोक कुमार सिंह, डॉ एके सिंह, डॉ नूतन वर्मा आदि शामिल थे.

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