मलेशिया : मलेशिया में हाल ही में आयोजित सुब्रमण्यम एस्ट्रोलॉजिकल एंड स्पिरिचुअल कन्वोकेशन-2025 में भारत के प्रख्यात ज्योतिषाचार्य एवं ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान पटना के निदेशक डॉ. राजनाथ झा ने अपनी विद्वतापूर्ण प्रस्तुति से अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की वैदिक परंपरा का परचम लहराया। इस गरिमामय अवसर पर उन्हें ‘ग्लोबल एस्ट्रोलॉजिकल अवार्ड-मलेशिया 2025’ एवं ‘लाइफटाइम अचीवमेंट सम्मान’ से नवाजा गया। यह सम्मान उन्हें वैदिक ज्योतिष, विशेषकर कुर्मचक्र आधारित आपदा पूर्वानुमान प्रणाली पर उनके शोध एवं योगदान के लिए प्रदान किया गया।
भविष्यवाणी नहीं, जीवन की चेतना है ज्योतिष
डॉ. झा ने सम्मेलन में बताया कि वैदिक ज्योतिष केवल भविष्यवाणी तक सीमित नहीं, बल्कि यह जीवन, प्रकृति और ब्रह्मांड की सामूहिक चेतना को समझने का विज्ञान है। उन्होंने सूर्य, चंद्र, नक्षत्रों और ग्रहों की गतियों के आधार पर प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूकंप और सुनामी के संभावित पूर्वानुमान को ‘कुर्मचक्र सिद्धांत’ के माध्यम से प्रस्तुत किया। ज्योतिष कोई रहस्यमयी विद्या नहीं, बल्कि समय और प्रकृति की वैज्ञानिक व्याख्या है। यह मनुष्य के कर्म और प्रकृति के संकेतों के बीच संवाद की भाषा है।
वैदिक विज्ञान के लिए संस्थागत सोच की आवश्यकता
डॉ. झा ने अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि यदि भारत को वैश्विक स्तर पर ज्ञान नेतृत्व निभाना है, तो हमें अपने वैदिक विज्ञानों, विशेषकर ज्योतिष जैसे अनुशासन को संरचना, शोध एवं शिक्षण के स्तर पर मजबूत करना होगा। इसके लिए देश में वैज्ञानिक दृष्टिकोण आधारित एक समर्पित संस्थागत ढांचे की आवश्यकता है, जो विद्वानों, शोधकर्ताओं और नीति-निर्माताओं के बीच संवाद स्थापित कर सके। उन्होंने किसी प्रत्यक्ष मांग की बजाय, वैचारिक आवश्यकता के रूप में एक राष्ट्रीय ज्योतिष परिषद जैसे मंच की बात कही, जिससे यह विचार और गरिमामय लगे और नीतिगत प्रस्ताव का रूप ले सके।
सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व
मलेशिया टूरिज्म के प्रतिनिधि जो मरीनस और अध्यात्माचार्य स्वामी ध्यान रहस्यजी की अध्यक्षता में सम्मेलन प्रारंभ हुआ। कार्यक्रम का संयोजन आईवीएएफ की डायरेक्टर दिव्या पिल्लई हरीश ने किया। डॉ. झा की प्रस्तुति ने अंतरराष्ट्रीय विद्वतजनों को विशेष रूप से प्रभावित किया। ज्योतिष आत्मबोध की प्रणाली है। यह बताता है कि हमारे भीतर का ब्रह्मांड किस गति से चल रहा है और हम उसमें कितने सजग हैं।
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भारतीय ज्ञान परंपरा को मिला वैश्विक मंच
डॉ. झा का सम्मान केवल उनकी विद्वता का नहीं, बल्कि यह भारत की वैदिक सांस्कृतिक परंपरा को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलने का संकेत है। उन्होंने अंत में कहा कि भारत के वेद, उपनिषद और ज्योतिष ही उसकी पहचान हैं और यही वो नींव है जिस पर ‘विश्वगुरु भारत’ की पुनः स्थापना हो सकती है।
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अंशु झा की रिपोर्ट
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