रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने खनन कंपनियों को बड़ी राहत देते हुए जिला खनन पदाधिकारियों द्वारा वसूली गई राशि को 7% ब्याज सहित लौटाने का आदेश दिया है।
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हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि बिना वैध दस्तावेज के निकाले गए खनिजों पर वसूली का अधिकार केवल राज्य सरकार के पास है, जिसे वह गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से किसी अधिकारी को सौंप सकती है। न्यायालय ने पाया कि राज्य सरकार ने जिला खनन पदाधिकारियों को इस संबंध में कोई विधिक अधिकार नहीं दिया था, इसलिए उनकी ओर से जारी किए गए डिमांड नोटिस को भी रद्द कर दिया गया है।
राज्य में संचालित खनन कंपनियों—मेसर्स राजहंस रिफ्रेक्ट्रीज, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, हिंडालको इंडस्ट्रीज लिमिटेड सहित अन्य कंपनियों—ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर जिला खनन पदाधिकारियों द्वारा की जा रही वसूली को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने अदालत में तर्क दिया कि माइंस एंड मिनरल्स डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन एक्ट (एमएमडीआर), 1957 की धारा 21(5) के तहत जिला खनन पदाधिकारियों को वसूली का कोई अधिकार नहीं है।
खनन कंपनियों का कहना था कि जिला खनन पदाधिकारी इस धारा का गलत इस्तेमाल कर अवैध रूप से भारी भरकम वसूली कर रहे थे, जबकि राज्य सरकार ने उन्हें इस संबंध में कोई अधिकार सौंपा ही नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश दीपक रौशन की खंडपीठ ने मामले की गहन सुनवाई के बाद स्पष्ट किया कि एमएमडीआर एक्ट की धारा 21(5) के तहत बिना वैध दस्तावेज के निकाले गए खनिजों की वसूली का अधिकार केवल राज्य सरकार के पास है। इस अधिकार को किसी अधिकारी को सौंपने के लिए सरकार को गजट नोटिफिकेशन जारी करना आवश्यक होता है।
राज्य सरकार ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए जुलाई 2005 में जारी एक आदेश प्रस्तुत किया, जिसमें राज्यपाल द्वारा जिला खनन पदाधिकारियों को खनिजों के रॉयल्टी के मूल्यांकन का अधिकार दिए जाने का जिक्र था। हालांकि, न्यायालय ने पाया कि यह आदेश एमएमडीआर की धारा 21(5) से संबंधित नहीं है और केवल रॉयल्टी के मूल्यांकन तक सीमित है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि चूंकि राज्य सरकार ने गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से धारा 21(5) के तहत वसूली का अधिकार जिला खनन पदाधिकारियों को नहीं सौंपा है, इसलिए उनके द्वारा की गई वसूली अवैध है।
अदालत ने आदेश दिया कि जिन कंपनियों से इस मद में राशि वसूली गई थी, उन्हें यह रकम 7% वार्षिक ब्याज सहित वापस की जाए।
इसके साथ ही, न्यायालय ने जिला खनन पदाधिकारियों द्वारा जारी किए गए सभी डिमांड नोटिस को भी रद्द कर दिया और भविष्य में ऐसी वसूली के प्रयासों पर भी रोक लगा दी।
एमएमडीआर एक्ट, 1957 की धारा 21(5) के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति बिना वैध अनुमति के खनिजों का उत्खनन करता है या उनका परिवहन करता है, तो राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह उस व्यक्ति से निकाले गए खनिजों के बाजार मूल्य की राशि वसूल कर सके।
हालांकि, इस धारा के तहत राज्य सरकार ही वसूली कर सकती है, या फिर वह गजट नोटिफिकेशन के जरिए किसी अधिकारी को यह अधिकार सौंप सकती है।
क्या होगा इस फैसले का असर?
- खनन कंपनियों को राहत – इस फैसले के बाद राज्य में काम कर रही खनन कंपनियों को बड़ा फायदा होगा। वे अब बिना किसी वैध गजट नोटिफिकेशन के किए गए वसूली के आदेशों को अदालत में चुनौती दे सकेंगी।
- राज्य सरकार को दोबारा विचार करना होगा – सरकार को अब तय करना होगा कि वह गजट नोटिफिकेशन जारी करके वसूली का अधिकार किसी अधिकारी को देती है या फिर इसे अपने स्तर पर रखती है।
- अवैध वसूली पर रोक – इस फैसले से अन्य विभागों में भी बिना वैध अधिकार की गई वसूली को चुनौती देने का रास्ता साफ होगा।
झारखंड हाईकोर्ट का यह फैसला खनन कंपनियों और उद्योग जगत के लिए बड़ी राहत लेकर आया है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि वसूली के अधिकार का प्रयोग केवल राज्य सरकार ही कर सकती है, न कि जिला खनन पदाधिकारी। इस फैसले से राज्य सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा और उद्योगों के लिए अधिक पारदर्शिता लाने की जरूरत होगी।