Axiom-4 Mission: भारत के लिए अंतरिक्ष क्षेत्र में यह दिन ऐतिहासिक बन गया जब वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला ने Axiom-4 मिशन के तहत अंतरिक्ष की ऐतिहासिक उड़ान भरी। 1984 में राकेश शर्मा के बाद यह पहला मौका है जब भारत से कोई नागरिक अंतरिक्ष की उस ऊंचाई तक पहुंचा है जहां से सिर्फ सपने देखे जाते हैं।
500 करोड़ रुपये से अधिक का खर्च और गगनयान की तैयारी में योगदान
इस मिशन में भारत की भागीदारी महज एक यात्री की नहीं, बल्कि तकनीकी, प्रशिक्षण और प्रयोगों की दृष्टि से बहुत अहम है। कुल मिलाकर भारत की ओर से इस मिशन पर लगभग 500 करोड़ रुपये का खर्च अनुमानित है। यह अनुभव गगनयान मिशन 2026 के लिए भी बेहद उपयोगी होगा, जिसके लिए शुभांशु को चुना गया है। इस मिशन में किए गए प्रयोग भविष्य के मानव मिशनों की नींव रखेंगे।
1984 से लेकर 2025: एक भावुक सफर
शुभांशु शुक्ला की यह उड़ान न केवल तकनीकी उपलब्धि है, बल्कि एक भावनात्मक अध्याय भी है। 1984 में राकेश शर्मा की ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा के बाद भारत ने आज फिर से अंतरिक्ष में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। शुभांशु के मां-बाप की आंखों में छलकते आंसू, टीवी स्क्रीन पर उनके बेटे को अंतरिक्ष में उड़ता देखना – यह क्षण हर भारतीय के दिल में बस गया है।
लॉन्चिंग में तकनीकी बाधाएं और ऐतिहासिक सफलता
24 जून की शाम 4:30 बजे निर्धारित लॉन्चिंग को लेकर थोड़ी देर तकनीकी अड़चनें आईं। लेकिन विशेषज्ञों ने त्वरित समाधान करते हुए महज 3 मिनट की देरी से सफलतापूर्वक लॉन्चिंग कर दी। यह लम्हा न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए गौरव का विषय बन गया।
भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं शुभांशु
2006 में वायुसेना में शामिल हुए शुभांशु ने मिग-21 से लेकर मिग-29 जैसे कई जंगी विमानों को उड़ाया है। Axiom-4 मिशन में उनके साथ अमेरिका, पोलैंड और हंगरी के अनुभवी अंतरिक्ष यात्री भी शामिल हैं। भारत के लिए यह मिशन इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे न केवल अनुभव मिलेगा, बल्कि भारतीय युवाओं को अंतरिक्ष अनुसंधान की प्रेरणा भी मिलेगी।
स्कूल से स्पेस तक – गर्व की यात्रा
जिस स्कूल से शुभांशु ने पढ़ाई की, वहां जश्न का माहौल है। बच्चों के हाथों में तिरंगा है, गर्व की भावना है और एक भरोसा है कि भारत का बेटा अब सितारों से बात कर रहा है। शुभांशु शुक्ला की उड़ान ने देश के युवाओं को यह संदेश दिया है कि अगर संकल्प हो, तो अंतरिक्ष भी दूर नहीं।