झारखंड की राजनीति में सर्दियों की शुरुआत से पहले ही “सियासी तापमान” बढ़ गया है।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने जैसे ही Special Intensive Revision (SIR) की तारीखें तय करने का संकेत दिया, वैसे ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के बयान बाज़ार में “हॉट सेल” शुरू हो गई।
BJP ने घोषणा की – “अब वोटर लिस्ट की सफाई होगी, अवैध मतदाताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।”
JMM-कांग्रेस गठबंधन बोला – “ये सफाई नहीं, राजनीतिक सफ़ाया है।”
अब जनता सोच रही है कि जब भी “सफाई” शब्द आता है, नेता खुद को सैनिटाइज़र समझने लगते हैं — और जनता को वायरस।
पहचान का संकट या राजनीति का अवसर
चुनाव आयोग कह रहा है – “मृत, पलायन कर चुके और फर्जी मतदाताओं को सूची से हटाना जरूरी है।”
लेकिन नेता लोग इसे “लोकतंत्र की हत्या” बताने में जुटे हैं।
सवाल ये नहीं कि कौन वैध है, सवाल ये है कि किसके पास वैध वोट बैंक है।
संथाल परगना में तो मामला और दिलचस्प है। वहां लोग डर के साथ हास्य में पूछ रहे हैं —
“कहीं ऐसा ना हो कि कल मतदान के दिन पता चले कि वोट देने गए थे, लेकिन लिस्ट में नाम बंगाल चला गया!”
नेताजी की बेचैनी
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इस S.I.R. से खास परेशानी है। विधानसभा में उन्होंने प्रस्ताव लाकर कहा कि “ये दलितों, अल्पसंख्यकों और गरीबों का अधिकार छीनने की साजिश है।”
विपक्ष के बाबूलाल मरांडी बोले – “अरे भाई, जब मतदाता ही असली नहीं हैं तो लोकतंत्र किसके नाम पर चलेगा?”
अब जनता समझ नहीं पा रही कि लोकतंत्र बचाने की चिंता किसे ज्यादा है — उसे जो सरकार में है, या उसे जो कुर्सी में आना चाहता है।
SIR : वोटर लिस्ट या राजनीतिक चार्ट
झारखंड के हर जिले में अब बीएलओ से लेकर ईआरओ तक “मतदाता खोज अभियान” चलाने को तैयार हैं।
कुछ जगहों पर बीएलओ को डर है कि “नाम काटने से पहले ही नेताजी उन्हें लिस्ट से बाहर कर देंगे।”
वहीं कई ग्रामीण इलाकों में लोग सोच रहे हैं — “अगर जन्म प्रमाण पत्र से ही पहचान तय होगी, तो जिन्होंने वोट डालने के लिए जन्म नहीं लिया था, वो क्या करेंगे?”
सियासी गणित और भूगोल
संपूर्ण बिहार में पहले S.I.R. के दौरान 35 लाख मतदाताओं के नाम कटने की खबर आई थी।
अब झारखंड में भी विपक्ष को डर है कि “नाम कटेंगे और वोटर गिनती घटेगी।”
लेकिन जनता जानती है — जब भी किसी नाम पर खतरा होता है, वही नाम अगले चुनाव में “भावनात्मक पूंजी” बन जाता है।
जनता की समझदारी
चंपाई सोरेन और बाबूलाल मरांडी दोनों कह रहे हैं कि “डेमोग्राफी बदली है, कार्रवाई जरूरी है।”
जनता कह रही है — “ठीक है, पहले नेताजी की भी डेमोग्राफी देखिए — पांच साल में किस दल से किस दल में घुसे हैं!”
सियासत का आलम यह है कि अब S.I.R. सिर्फ मतदाता सूची का सुधार नहीं, बल्कि पार्टियों की “सियासी रिपेयरिंग” का मौका बन गया है।
हर पार्टी चाहती है कि सूची में नाम वही रहे, जो “वोट देने से पहले उनका नाम ले।”
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