Tuesday, October 28, 2025
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प्रशांत का बिहार के अलावा इस राज्य की वोटर लिस्ट में भी नाम

पटना : जन सुराज संस्थापक व चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का नाम बिहार और पश्चिम बंगाल दोनों राज्यों की मतदाता सूची में दर्ज है। सूत्रों के हवाले से ये जानकारी सामने आई है। ये जानकारी सामने आने के बाद बीजेपी नेता अमित मालवीय ने प्रशांत पर निशाना साधा है। हालांकि, अभी पीके ने इन आरोपों पर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी है।प्रशांत पश्चिम बंगाल और बिहार दोनों राज्यों के मतदाता हैं उन्होंने कहा कि जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर पश्चिम बंगाल और बिहार दोनों राज्यों के मतदाता हैं। आमतौर पर अगर उनकी पार्टी की बिहार में कोई वास्तविक उपस्थिति...

किन्नर की छठ भक्ति, छठ घाट पर दिखा अनोखा दृश्य..

Hazaribagh: लोक आस्था के महापर्व छठ पर जिले से इस बार एक प्रेरणादायक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण पहल देखने को मिली है। यहां की रहने वाली किन्नर अंजली ने पूरे विधि-विधान और श्रद्धा के साथ छठ व्रत संपन्न किया।जिससे समाज को आस्था और समानता का गहरा संदेश मिला। समानता और आस्था का अद्भुत संदेशः किन्नर समुदाय, जिसे आज भी समाज में बराबरी का दर्जा नहीं मिल पाया है, अब अपनी भक्ति और सामाजिक स्वीकृति के लिए इस पर्व के माध्यम से नया उदाहरण पेश कर रहा है। अंजली ने न केवल निर्जला व्रत रखा, बल्कि घाट पर दीप जलाकर और...

चुनाव में प्रचार को धार देंगे अखिलेश और डिंपल, महागठबंधन प्रत्याशी के लिए मांगेगे वोट

पटना : बिहार विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) बनाम इंडिया गठबंधन की चुनावी लड़ाई अब बेहद दिलचस्प होने जा रही हैं। जहां एक तरफ उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ चुनाव प्रचार में कूद पड़े हैं। वहीं समाजवादी पार्टी (SP) के मुखिया व पूर्व सीएम अखिलेश यादव और उनकी पत्नी व सांसद डिंपल यादव भी बिहार चुनाव प्रचार को धार देने बिहार पहुंच रहे हैं।अखिलेश यादव पहले चरण के चुनाव प्रचार के लिए 1 नवंबर को बिहार पहुंच रहे हैं समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले चरण के चुनाव प्रचार के लिए एक नवंबर को बिहार पहुंच रहे...

झारखंड में SIR का धमाका : डेमोग्राफी बदलेगी या लोकतंत्र?

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झारखंड की राजनीति में सर्दियों की शुरुआत से पहले ही “सियासी तापमान” बढ़ गया है।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने जैसे ही Special Intensive Revision (SIR) की तारीखें तय करने का संकेत दिया, वैसे ही सत्ता पक्ष और विपक्ष के बयान बाज़ार में “हॉट सेल” शुरू हो गई।

BJP ने घोषणा की – “अब वोटर लिस्ट की सफाई होगी, अवैध मतदाताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा।”
JMM-कांग्रेस गठबंधन बोला – “ये सफाई नहीं, राजनीतिक सफ़ाया है।”

अब जनता सोच रही है कि जब भी “सफाई” शब्द आता है, नेता खुद को सैनिटाइज़र समझने लगते हैं — और जनता को वायरस

 पहचान का संकट या राजनीति का अवसर

चुनाव आयोग कह रहा है – “मृत, पलायन कर चुके और फर्जी मतदाताओं को सूची से हटाना जरूरी है।”
लेकिन नेता लोग इसे “लोकतंत्र की हत्या” बताने में जुटे हैं।
सवाल ये नहीं कि कौन वैध है, सवाल ये है कि किसके पास वैध वोट बैंक है।

संथाल परगना में तो मामला और दिलचस्प है। वहां लोग डर के साथ हास्य में पूछ रहे हैं —
“कहीं ऐसा ना हो कि कल मतदान के दिन पता चले कि वोट देने गए थे, लेकिन लिस्ट में नाम बंगाल चला गया!”

 नेताजी की बेचैनी

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को इस S.I.R. से खास परेशानी है। विधानसभा में उन्होंने प्रस्ताव लाकर कहा कि “ये दलितों, अल्पसंख्यकों और गरीबों का अधिकार छीनने की साजिश है।”
विपक्ष के बाबूलाल मरांडी बोले – “अरे भाई, जब मतदाता ही असली नहीं हैं तो लोकतंत्र किसके नाम पर चलेगा?”

अब जनता समझ नहीं पा रही कि लोकतंत्र बचाने की चिंता किसे ज्यादा है — उसे जो सरकार में है, या उसे जो कुर्सी में आना चाहता है।

 SIR : वोटर लिस्ट या राजनीतिक चार्ट

झारखंड के हर जिले में अब बीएलओ से लेकर ईआरओ तक “मतदाता खोज अभियान” चलाने को तैयार हैं।
कुछ जगहों पर बीएलओ को डर है कि “नाम काटने से पहले ही नेताजी उन्हें लिस्ट से बाहर कर देंगे।”
वहीं कई ग्रामीण इलाकों में लोग सोच रहे हैं — “अगर जन्म प्रमाण पत्र से ही पहचान तय होगी, तो जिन्होंने वोट डालने के लिए जन्म नहीं लिया था, वो क्या करेंगे?”

 सियासी गणित और भूगोल

संपूर्ण बिहार में पहले S.I.R. के दौरान 35 लाख मतदाताओं के नाम कटने की खबर आई थी।
अब झारखंड में भी विपक्ष को डर है कि “नाम कटेंगे और वोटर गिनती घटेगी।”
लेकिन जनता जानती है — जब भी किसी नाम पर खतरा होता है, वही नाम अगले चुनाव में “भावनात्मक पूंजी” बन जाता है।

 जनता की समझदारी

चंपाई सोरेन और बाबूलाल मरांडी दोनों कह रहे हैं कि “डेमोग्राफी बदली है, कार्रवाई जरूरी है।”
जनता कह रही है — “ठीक है, पहले नेताजी की भी डेमोग्राफी देखिए — पांच साल में किस दल से किस दल में घुसे हैं!”

सियासत का आलम यह है कि अब S.I.R. सिर्फ मतदाता सूची का सुधार नहीं, बल्कि पार्टियों की “सियासी रिपेयरिंग” का मौका बन गया है।
हर पार्टी चाहती है कि सूची में नाम वही रहे, जो “वोट देने से पहले उनका नाम ले।”

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