एसके राजीव
पटना : कबीर लिखते हैं कि जात न पूछो साधू की लेकिन बिहार की राजनीति कहती है जात ही पूछो जमात की। तभी तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बिहार के सभी नेता लोकसभा चुनाव में जाति पाति के सहारे ही अपनी चुनावी बैतरनी पार करने में लगे हैं। या फिर यूं कहें कि लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर में अब सारी लड़ाई जाती आरक्षण पर आकर केंद्रित हो गई है।
बिहार में लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण एक जून को होना है। लिहाजा हरेक पार्टियों के लिए इन आठ सीटों को जीतना किसी जंग जीतने से कम नहीं है। बिहार के 40 के 40 सीट पर कब्जा करने के लिए खुद देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार रोड शो कर रहे हैं ताकि भाजपा के पक्ष में वोटिंग के लिए लोगों का मन बना सके। इन सबके बीच आरोपों और प्रत्यारोपों का दौर भी जारी है। इन सबके बीच मोदी कोई भी दाव चूकना नहीं चाहते है। तभी तो प्रधानमंत्री अब हरेक जाति का नाम लेकर सार्वजनिक मंच से उनका आह्वाहन कर रहे हैं।
बिहार शुरू से ही जात-पात की राजनीति का गढ़ माना जाता रहा है। राजनीतिक पार्टियां समय-समय पर जाति कार्ड खेलती भी रही है तो भला लोकसभा चुनाव में मोदी के आरक्षण वाले बयान पर राजद चुप कैसे रह सकता है। मोदी के जाति कार्ड पर तेजस्वी यादव ने भी मोदी से चार सवाल कर डाले और कहा है कि जाति जनगणना, संविधान और निजी संस्थानों में आरक्षण के मुद्दे पर भी मोदी लोगों को सफाई दें।
बिहार में अब लोकसभा चुनाव का अंतिम चरण होना बाकी है। अंतिम चरण के लिए हर पार्टियां एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं ताकी अधिक से अधिक सीट जीता जा सके। ऐसे में नरेंद्र मोदी के इस जाति कार्ड को देखते हुए हिंदी फिल्म का एक गाना बरबस याद आ जाता है कि बड़ी देर से दर पे आंखें लगी थी हुजूर आते-आते बहुत देर कर दी।
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