रांची: हाईकोर्ट ने सोमवार को खनन रॉयल्टी से जुड़े एक अहम मामले में निर्णय सुनाते हुए राज्य सरकार के पक्ष को सही ठहराया और इससे संबंधित 120 याचिकाओं को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि खनन के बाद निकले खनिज की प्रकृति बदलने पर अलग-अलग रॉयल्टी चार्ज करने का अधिकार राज्य सरकार के पास है।
यह फैसला एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस एके राय की बेंच ने सुनाया, जिसमें राज्य सरकार के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा गया कि खनन के बाद स्टोन बोल्डर और उसकी प्रकृति बदलकर स्टोन चिप्स बनाने पर अलग-अलग रॉयल्टी ली जा सकती है। राज्य सरकार ने स्टोन बोल्डर पर 125 रुपये प्रति सीएफटी और स्टोन चिप्स पर 250 रुपये प्रति सीएफटी की रॉयल्टी निर्धारित की थी। याचिकाकर्ताओं ने इसे चुनौती देते हुए दलील दी थी कि खनिज के स्वरूप बदलने पर अलग रॉयल्टी वसूलना गैरकानूनी है और सरकार को इसका अधिकार नहीं है।
राज्य सरकार ने कोर्ट में तर्क दिया कि स्टोन बोल्डर एक माइनर मिनरल है, जिस पर राज्य सरकार का नियंत्रण होता है। सरकार ने कहा कि संसद ही इस पर प्रतिबंध लगा सकती है, जबकि राज्य सरकार को एमएमडीआर (माइनिंग एंड मिनरल्स डिवेलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट के तहत नियम बनाने का अधिकार है। केंद्र सरकार ने स्टोन बोल्डर को माइनर मिनरल के रूप में अधिसूचित किया है, जिससे राज्य सरकार इसे अलग-अलग वर्गों में बांटकर अलग रॉयल्टी दरें तय कर सकती है।
वहीं, याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि खनन से निकले खनिज पर एक बार रॉयल्टी ली जा सकती है, लेकिन उसकी प्रकृति या स्वरूप बदलने के बाद उस पर दोबारा रॉयल्टी लेना अनुचित है। बावजूद इसके, हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के तर्कों को स्वीकार करते हुए कहा कि खनिज की प्रकृति बदलने के बाद राज्य सरकार को उसकी अलग-अलग रॉयल्टी निर्धारित करने का पूरा अधिकार है।