डिजिटल डेस्क। Tata Sons ने अपनी नई कंपनियों को अपना कर्जा और देनदारी खुद ही देखने को कहा। सोमवार को एक बड़ी उद्योग -कारोबार जगत से सामने आई है। इसमें अग्रणी कारोबारी – औद्योगिक कंपनी समूह Tata Sons की ओर से अपनी नई कंपनियों को विशेष तौर पर अपने स्तर पर ही अपनी देनदारी और कर्जों को प्रबंध करने को कहा गया है।
बताया जा रहा है कि Tata Sons ने अपनी नई अप्रोच के बारे में बैंकों को जानकारी देते हुए कहा है कि नए उपक्रमों को भविष्य में पूंजी का आवंटन इक्विटी निवेश और आंतरिक स्रोतों के जरिए किया जाएगा।
नए साल में टाटा ग्रुप केे लिए Tata Sons ने लिया अहम फैसला…
कुल मिलाकर निचोड़ यह है कि देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने टाटा ग्रुप की होल्डिंग कंपनी Tata Sons ने नए साल पर एक बड़ा फैसला लिया है। इसके तहत Tata Sons ने ग्रुप की कंपनियों खासकर टाटा डिजिटल, टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स और एयर इंडिया जैसी नई कंपनियों को अपने कर्ज और देनदारियों का स्वतंत्र रूप से प्रबंधन करने को कहा है।
इसके साथ ही टाटा संस में बैंकों को लेटर ऑफ कंफर्ट और क्रॉस-डिफॉल्ट क्लॉज देने की परंपरा बंद कर दी है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक, Tata Sons ने बैंकों से कहा है कि प्रत्येक कैटगरी में लीडिंग लिस्टेड कंपनी ही होल्डिंग एंटिटी के रूप में कार्य करेगी। इस बारे में Tata Sons ने टिप्पणी के लिए ईटी की ओर से किए गए अनुरोधों का जवाब नहीं दिया है।

पिछले साल मोटा कर्ज चुकाकर रिजर्व बैंक को अपना पंजीकरण प्रमाणपत्र Tata Sons ने सौंपा
इसी क्रम में आगे पता चला है कि Tata Sons ने पिछले साल आरबीआई के साथ अपने पंजीकरण प्रमाणपत्र को स्वेच्छा से सरेंडर कर दिया था। इससे पहले उसने अनलिस्टेड बने रहने के लिए 20 हजार करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज चुकाया था। नए बिजनस के लिए फंडिंग मुख्य रूप से लाभांश और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (TCS) से की जाएगी।
TCS मार्केट कैप के हिसाब से टाटा ग्रुप की सबसे बड़ी और देश की दूसरी बड़ी कंपनी है। बैंकरों की मानेंं तो होल्डिंग कंपनी Tata Sons की वित्तीय स्थिरता और उसकी सहायक कंपनियों में बड़ी इक्विटी हिस्सेदारी स्पष्ट गारंटी के बिना भी बैंकों को आश्वासन प्रदान करती है। यह वजह है कि अधिकांश बड़े बैंक टाटा की कंपनियों को ज्यादा से ज्यादा कर्ज देते हैं।

Tata Sons के फैसले से समूह की पुरानी कंपनियों की सेहत पर नहीं पड़ेगा खास असर
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, परंपरागत रूप से अधिकांश पुरानी लिस्टेड ग्रुप कंपनियां जैसे टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा पावर और टाटा कंज्यूमर खुद ही अपने डेट को मैनेज करती हैं। इसलिए Tata Sons के रुख में बदलाव से उन पर कोई खास असर पड़ने की संभावना नहीं है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में Tata Sons द्वारा शुरू किए गए बिजनस पूंजी आवंटन के लिए होल्डिंग कंपनी पर निर्भर रहे हैं।
महत्वपूर्ण स्केल पर पहुंचने के बाद ये कंपनियां भी अपनी पूंजी आवश्यकताओं का प्रबंधन खुद ही करेंगी। Tata Sons इन कंपनियों को कुछ वर्षों में अपने टॉप बिजनस में शामिल करने के लिए तैयार कर रहा है और इनमें महत्वपूर्ण फंडिंग हुई है। हालांकि बैंकों को टाटा की ऑपरेटिंग कंपनियों को कर्ज देने में कोई दिक्कत नहीं है। इसकी वजह यह है कि इन कंपनियों में Tata Sons की अहम हिस्सेदारी है।
सितंबर 2022 में, RBI ने Tata Sons को अपर लेयर एनबीएफसी के रूप में वर्गीकृत किया था। इस कैटगरी में आने वाली कंपनियों के लिए तीन साल के भीतर लिस्ट होना आवश्यक है। Tata Sons ने इससे छूट मांगी है। मार्च 2023 और मार्च 2024 के बीच टाटा संस की वित्तीय स्थिति में बड़ा बदलाव देखने को मिला है।
कंपनी पर 20,642 करोड़ रुपये के कर्ज था और अब उसके पास 2,670 करोड़ रुपये की नकदी है। मार्च 2024 में Tata Sons ने TCS में 23.4 मिलियन शेयर बेचकर लगभग 9,300 करोड़ रुपये जुटाए गए।
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