राजनीति का नया समीकरण: ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे!

राजनीति का नया समीकरण: 'एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे!

रांची: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड की चुनावी रैली में एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे का नारा देकर एक बार फिर राजनीति के अखाड़े में हलचल मचा दी है। इस नारे के कई आयाम हैं—यह न सिर्फ भाजपा के हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाता है, बल्कि राज्य की सुरक्षा और सामाजिक एकता के मुद्दे पर भी केंद्रित है।

इस नारे को भाजपा की व्यापक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। झारखंड में भाजपा का मुख्य मुकाबला झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो), कांग्रेस और राजद जैसे गठबंधन दलों से है। झारखंड में आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्गों की बड़ी आबादी है, जिनके वोट चुनावी नतीजों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

भाजपा का यह नारा इन वर्गों को एकजुट करने का प्रयास है। पीएम मोदी ने कांग्रेस पर तोड़ो और राज करो की नीति अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि यह पार्टी हमेशा एससी, एसटी और ओबीसी को विभाजित कर सत्ता का लाभ उठाती रही है। प्रधानमंत्री का तर्क है कि जब भी ये समुदाय एकजुट हुए हैं, कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा है।

सुरक्षा का मुद्दा: बाहरी घुसपैठ बनाम आंतरिक एकता

इस नारे का दूसरा पहलू झारखंड में सुरक्षा से जुड़ा है। भाजपा लंबे समय से झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ को एक बड़ा मुद्दा बनाकर प्रचार कर रही है। पार्टी का आरोप है कि झामुमो-कांग्रेस सरकार इन घुसपैठियों को शरण देकर न सिर्फ राज्य की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रही है, बल्कि स्थानीय जनसंख्या का सामाजिक और आर्थिक संतुलन भी बिगाड़ रही है।

भाजपा के केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी इस नारे का समर्थन करते हुए कहा कि देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जनता को एकजुट होना होगा। इस प्रकार, ‘एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे’ का नारा सुरक्षा और एकता के एक मजबूत संदेश के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

भाजपा के लिए नारे हमेशा चुनावी सफलता का एक महत्वपूर्ण साधन रहे हैं। हरियाणा में योगी आदित्यनाथ का चर्चित नारा टेगें तो कटेंगे ने वहां की जनता को भाजपा के पक्ष में एकजुट किया था। भाजपा को विश्वास है कि झारखंड में भी एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे का जादू काम करेगा।

झारखंड के बाद भाजपा इस नारे को महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में भी आजमाने की योजना बना सकती है, जहां अगले साल चुनाव होने हैं। यह नारा सामाजिक एकता के साथ-साथ पार्टी की राष्ट्रवाद की छवि को भी मजबूत करता है।

झामुमो और कांग्रेस ने इस नारे को भाजपा का सांप्रदायिक हथियार बताया है। झामुमो नेता और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि भाजपा एकता के नाम पर डर और विभाजन की राजनीति कर रही है। उन्होंने कहा कि झारखंड की जनता इस बार भाजपा के भ्रमजाल में नहीं फंसेगी।

विपक्ष का दावा है कि भाजपा के लिए यह नारा सिर्फ एक चुनावी जुमला है, जो जमीन पर हकीकत से कोसों दूर है। झामुमो ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा ने पिछले पांच सालों में झारखंड के गरीबों और आदिवासियों के हित में कोई ठोस काम नहीं किया।

झारखंड की जनता इस नारे को लेकर मिलीजुली प्रतिक्रिया दे रही है। कुछ लोग इसे भाजपा का एक मजबूत संदेश मानते हैं, जो सामाजिक एकता और सुरक्षा को बढ़ावा देगा। वहीं, दूसरी ओर, कुछ लोग इसे एक राजनीतिक स्टंट मानते हैं, जो चुनावों के बाद हवा हो जाएगा।

झारखंड में 23 नवंबर को होने वाले चुनाव परिणाम यह तय करेंगे कि जनता भाजपा के इस नारे को सुरक्षा गारंटी मानती है या इसे केवल एक और चुनावी वादा समझकर नकार देती है।

भारतीय राजनीति में नारे हमेशा से मतदाताओं की भावनाओं को प्रभावित करने का एक अहम माध्यम रहे हैं। एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे भी भाजपा की ऐसी ही एक कोशिश है। यह नारा भाजपा की हिंदुत्व, सुरक्षा, और एकता की विचारधारा को मजबूत करने का प्रयास है।

अब देखना यह होगा कि यह नारा झारखंड में भाजपा के लिए सत्ता का सुरक्षित कवच बनता है या फिर यह सुरक्षा का सिरदर्द बनकर रह जाता है।
अंततः, झारखंड की जनता ही तय करेगी कि वह भाजपा के इस राजनीतिक समीकरण को किस रूप में देखती है—एकता की शक्ति या सियासत की चाल

 

Share with family and friends: