Bihar के बृजबिहारी हत्याकांड की रोचक है कहानी : 11 साल चली सुनवाई, घटना के 26 साल बाद आया फैसला

चित्र में बीच में बृजबिहारी प्रसाद और एक ओर मुन्ना शुक्ला व दूसरी ओर मिंटू तिवारी।

डिजीटल डेस्क : Bihar के बृजबिहारी हत्याकांड की रोचक है कहानी – 11 साल चली सुनवाई, घटना के 26 साल बाद आया फैसला। वर्ष 1998 के 13 जून की शाम बिहार में तत्कालीन कैबिनेट मंत्री बृजबिहारी प्रसाद की सनसनीखेज हत्याकांड के कई पहलू रहे।

बृजबिहारी प्रसाद हत्याकांड में विजय उर्फ मुन्ना शुक्ला, सूरजभान, राजन तिवारी समेत 8 लोग आरोपी बनाए गए थे।  सीबीआई को इस केस की जांच सौंपी गई थी। सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की थी, उसमें बाहुबल वाले सियासी वर्चस्व को इस हत्याकांड की वजह बताया गया।

करीब 11 साल की लंबी सुनवाई के बाद 2009 में ट्रायल कोर्ट ने सभी 8 लोगों को हत्या का दोषी माना। फिर ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ सभी 8 लोग हाई कोर्ट पहुंचे तो 2014 में हाई कोर्ट ने सबूत के अभाव में सभी को बरी कर दिया।

अब सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को फैसला सुनाया जिसमें विजय उर्फ मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है। दोनों को 15 दिनों में सरेंडर करने को कहा गया है।

बिहार में ही रची गई थी मंत्री बृजबिहारी की हत्या की साजिश

लालू और राबड़ी सरकार में मंत्री रहे बृजबिहारी प्रसाद एक घोटाले में आरोपी होने के बाद बीमार पड़ गए। बृजबिहारी को उसके बाद पटना के आईजीआईएमएस हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। वहीं 13 जून 1998 को उनकी हत्या कर दी गई।

बताया जाता है कि उनकी हत्या की साजिश बिहार में ही रची गई। हत्या की जिम्मेदारी यूपी के मोस्ट वांटेड श्रीप्रकाश शुक्ला को दी गई थी।

सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक बृजबिहारी जब अस्पताल के लॉन में टहल रहे थे तभी एक कार उनके पास आकर रूकी और जब तक बृजबिहारी कुछ समझ पाते, तब तक कार से फायरिंग शुरू हो गई थी। बृजबिहारी ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था।

घटना के बाद पहले मामले की जांच बिहार पुलिस को दी गई, लेकिन इंटर स्टेट और हाई प्रोफाइल केस होने की वजह से जांच सीबीआई को दे दी गई।

चित्र में बाएं से श्रीप्रकाश शुक्ला, मिंटू तिवारी और मुन्ना शुक्ला
चित्र में बाएं से श्रीप्रकाश शुक्ला, मिंटू तिवारी और मुन्ना शुक्ला

गुरू दक्षिणा चुकाने को यूपी से बिहार आकर श्रीप्रकाश ने की थी मंत्री की हत्या…

बात वर्ष 1995 के बाद की है। तब बिहार की राजनीति में अपराध का दाखिला हो चुका था। उस समय देवेंद्र दुबे की हत्या के बाद लालू यादव के आंख-कान बने बृजबिहारी प्रसाद पूरे बिहार के अंडरवर्ल्ड पर वर्चस्व हासिल करना चाहते थे। इसमें बाधा बन रहे थे – मोकामा गैंग और उसके सरगना सूरजभान सिंह।

चूंकि बृजबिहारी सरकार में मंत्री थे, इसलिए उन्होंने सूरजभान को जेल भेजवा दिया और योजना बनी कि जेल में ही सूरजभान का किस्सा खत्म हो जाए।

उसी समय यूपी के गोरखपुर में बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी की गैंग में शूटर श्रीप्रकाश शुक्ला उड़ान भरने की कोशिश में था और वह सूरजभान सिंह के ना केवल संपर्क में आ चुका था, बल्कि अपराध की दुनिया में बादशाहत हासिल करने के गुर भी सीख लिए थे।

बताया जाता है कि जेल में सूरजभान को जैसे ही बृजबिहारी के द्वारा रची जा रही साजिश की भनक लगी तो उन्होंने तत्काल श्रीप्रकाश शुक्ला को संदेशा भेजवाया। कहलवाया कि अब गुरू दक्षिणा का समय आ गया है।

उस समय तक श्रीप्रकाश शुक्ला के पास देशी पिस्टल होता था। उसने सूरजभान से पूछा कि इससे कैसे काम होगा। बताया जाता है कि तब सूरजभान ने कहा कि पटना पहुंचते ही उसे इतने हथियार मिलेंगे, जितना वह आज तक देखा भी नहीं होगा।

साथ ही गोरखपुर से सीधा पटना आने के बजाय श्रीप्रकाश शुक्ला को ट्रेन से दिल्ली और फिर दिल्ली से हवाई जहाज से पटना पहुंचने को कहा गया।

Flash Back : मंत्री बृजबिहारी प्रसाद और डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला
मंत्री बृजबिहारी प्रसाद और डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला

बृजबिहारी प्रसाद की हत्या से पहले मौका-ए-वारदात की खुद डॉन श्रीप्रकाश ने जाकर की  थी रैकी…

इसी क्रम में बताया जाता है कि वर्ष 1998 के जून माह के पहले पखवाड़े श्रीप्रकाश शुक्ला तय रूट से ट्रेन और हवाई मार्ग से होकर बिहार की राजधानी पहुंचा। पटना पहुंचते ही सूरजभान के लोगों ने श्रीप्रकाश शुक्ला को 11 जून की दोपहर एके 47 उपलब्ध कराया।

एके 47 हाथ में आते ही श्रीप्रकाश ने बृजबिहारी के खात्मे का ऐलान कर दिया। फिर 11 और 12 जून 1998 को श्रीप्रकाश शुक्ला, अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी ने खुद अस्पताल पहुंचकर रैकी की। उस दौरान देखा कि कमांडो की सुरक्षा घेरे में बृजबिहारी प्रसाद पर कैसे हमला किया जा सकता है।

वहीं पर पूरी योजना बनाने के बाद वारदात में मंटू तिवारी और मुन्ना शुक्ला को साथ लेकर 13 जून को वारदात को अंजाम दिया गया।

जानकार तो यहां तक बताते हैं कि श्रीप्रकाश शुक्ला ने पहली बार बृजबिहारी प्रसाद की हत्या की कोशिश उनके आवास पर ही की थी। वारदात के लिए वह पहुंच भी गया था, लेकिन वारदात के बाद वहां से निकलना मुश्किल था, इसलिए वहां छोड़ दिया। फिर प्लान-बी के तहत दूसरे प्रयास में वारदात को अंजाम दिया था।

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