पटना : नई पीढ़ी की नई सियासत- ये घरानों की सियासत है.. लेकिन ये सियासत है इसलिए यहां कुछ भी स्थाई नहीं है, न तो पीढ़ियों से चली आने वाली दोस्ती और न ही दुश्मनी. इसलिए पटना एयरपोर्ट से निकल कर आदित्य ठाकरे की गाड़ियों का काफिला जब राबड़ी आवास पहुंचा तो उनका स्वागत करने के लिए खुद तेजस्वी यादव मौजूद थे. आज से कुछ साल पहले तक इस दृश्य की कल्पना भी मुश्किल थी, लेकिन ये नये दौर में नई पीढ़ी की नई सियासत है. इसलिए तेजस्वी यादव और आदित्य ठाकरे की ये तस्वीर ऐतिहासिक है.
दोनों नेताओं ने बांधे एक-दूसरे की तारीफों के पुल
पटना पहुंचकर आदित्य ठाकरे ने तेजस्वी के साथ-साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से भी मुलाकात की. उन्होंने कहा कि नीतीश अच्छा काम कर रहे हैं. उन्होंने तेजस्वी यादव की भी जमकर तारीफ की. आदित्य ठाकरे ने कहा कि तेजस्वी यादव युवा नेता हैं, अच्छा काम कर रहे हैं और लंबी रेस का घोड़ा हैं. उन्होंने कहा कि मुलाकात भले ही अब हुई हो, लेकिन बातचीत पहले भी होती रही है. वहीं तेजस्वी यादव ने कहा कि आदित्य ठाकरे भी युवा हैं और जब युवा राजनीति में आते हैं तो देश की दशा और दिशा बदलती है.
नई पीढ़ी की नई सियासत: मिलकर बीजेपी से लड़ेंगे- तेजस्वी
तेजस्वी ने कहा कि इस वक्त चुनौती देश में लोकतंत्र और संवैधानिक संस्थाओं को बचाने की है. इसके लिए वो आदित्य ठाकरे के साथ मिलकर काम करेंगे. तेजस्वी ने इस दौरान बीजेपी पर भी सीधा हमला बोला, उन्होंने कहा कि जांच एजेंसियों और पैसे के बल पर बीजेपी में महाराष्ट्र की महाअघारी सरकार को गिराया. लेकिन जिस तरह से हमने बिहार में सबक सिखाया उसी तरह से आगे भी सबक सिखाएंगे.
जारी रहेगा बातों-मुलाकातों का सिलसिला
आदित्य ठाकरे से जब ये पूछा गया कि क्या अब मुंबई और महाराष्ट्र में बिहारियों के साथ अच्छा सलूक होगा तो उन्होंने कहा कि दो साल तक महाअघारी की सरकार के दौरान सभी लोग मिलजुल कर रहे. वहीं तेजस्वी यादव ने सवाल टालने की कोशिश की. उन्होंने कहा कि वक्त बदल चुका है और अब गड़ा मुर्दा उखाड़ने की जरूरत नहीं है. दोनों नेताओं ने कहा कि बातों-मुलाकातों का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा.
नई पीढ़ी की नई सियासत: खटास कैसे बनी मिठास ?
करीब दो दशक पहले की बात है. तब बिहार के सत्ता केंद्र में लालू प्रसाद यादव थे और महाराष्ट्र में बाला साहब ठाकरे की अगुआई में शिवसेना का दबदबा था. बाल ठाकरे हिंदू हृदय सम्राट कहे जाते थे और भगवा पताका के नीचे मराठी मानुष का नारा भी बुलंद कर रहे थे. ये वो दौर था जब मुंबई से बिहारियों को मारपीट कर शिवसैनिक खदेड़ रहे थे. तब लालू यादव को बाल ठाकरे फूटी आंख नहीं सुहाते थे. तब कोई ये सोच भी नहीं सकता था कि विचारधारा के दो ध्रुवों पर खड़ी ये दो पार्टियां और उनके रहनुमा ये दो घराने कभी एक राजनीतिक मंच पर आएंगे, लेकिन अब ऐसा हो चुका है क्योंकि सवाल सियासत का है और सवाल राजनीतिक विरासत को बचाए रखने का भी है.