डिजीटल डेस्क : Jhansi अग्निकांड में तीन देवदूतों ने बचाई 40 से अधिक बच्चों की जान। यूपी के झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मेडिकल कॉलेज के एनआईसीयू (नवजात के आईसीयू) वार्ड में बीते शुक्रवार की रात हुए भीषण अग्निकांड में 10 बच्चों की मौत के सिहरा देने वाली घटना के दौरान तीन ऐसे देवदूत भी दिखे जिन्होंने 40 से अधिक नवजातों को काल के मुंह से जिंदा बचा लिया।
कृपाल सिंह राजपूत, कुलदीप और हरिशंकर ने अपनी जान पर खेलकर आग में धधकते एनआईसीयू में घुसकर नौनिहालों को सुरक्षित बाहर निकाला।
देवदूतों ने बताई आंखों-देखी – 18 बेड पर थे 54 से अधिक मासूम
मौके पर मौजूद लोगों के मुताबिक यदि ये तीनों देवदूत वहां नहीं होते या समय पर नहीं पहुंच जाते तो मौत का आंकड़ा 50 के पार जा सकता था। बताया जा रहा है कि इनमें से कृपाल सिंह राजपूत ने तो अकेले के दम पर ही 20 से अधिक बच्चों को बाहर निकाला। कुलदीप और हरिशंकर ने भी बच्चों की जान बचाने के लिए एनआईसीयू के अंदर छलांग लगा दी थी।
उन दोनों युवकों ने भी करीब 20 बच्चों को बाहर निकाला। कृपाल सिंह राजपूत की बेटी अपने नवजात बच्चे को लेकर अस्पताल में भर्ती थी। एनआईसीयू में लगे 18 बेड पर करीब 54 से भी अधिक बच्चों को भर्ती किया गया था। कई बेड तो ऐसे भी थे, जिनपर 4 से 5 बच्चे भर्ती थे।
झांसी अग्निकांड की सिहराने वाली कहानी के बारे में देवदूतों की जुबानी…
अपनी बेटी और उसके नवजात की मदद के लिए कृपाल सिंह भी अस्पताल में ही थे। बकौल कृपाल – रात के ठीक 10 बजे बच्चों को फीड कराने के लिए एनाउंसमेंट हुआ तो वह भी एनआईसीयू की ओर पहुंचे थे और तभी शॉर्ट सर्किट से आग लगने से भगदड़ मची।
जब एनआईसीयू में आग लगी तो अचानक से भभका उठा और आक्सीजन सिलेंडर ब्लास्ट के बाद आग ने पूरे वार्ड को गिरफ्त में ले लिया। उसके बाद वह खुद कुछ समझ नहीं पाए और अचानक से उस आग में घुसकर जो भी बच्चे हाथ लगे, उन्हें उठा-उठाकर बाहर डालने लगे।
इस प्रकार उन्होंने कम से कम 12 से 15 बार बच्चों को उठाकर बाहर निकला और इसी क्रम में कम से कम 20 बच्चों को तो वह बाहर ले ही आए।
कृपाल को ऐसा करते देख अस्पताल में मौजूद दो युवक कुलदीप और हरिशंकर भी आग में कूद पड़े थे। उन दोनों युवकों ने भी 20 से अधिक बच्चों को एनआईसीयू से बाहर निकाला।
अपना बच्चा हादसे में न मिला तो तड़पते दूसरे मासूम को बचाने में जुट गईं थीं कंचन…
इन तीन देवदूतों के अलावा भी झांसी में हुई सिहरा देने वाली इस घटना के दौरान कई और भी ने भी हादसे में बचे नवजातों के लिए देवदूत सरीखी भूमिका निभाई। इन्हीं से एक कंचन भी हैं।
झांसी मेडिकल कॉलेज में आग लगने के बाद एसएनसीयू वार्ड में मची अफरा-तफरी के दौरान लोग अपने बच्चों को उठा-उठाकर वार्ड से भागने में जुटे थे। उसी वार्ड में कंचन कपूर का बच्चा भी भर्ती था।
आग लगने के बाद कंचन को अपना बच्चा तो नहीं मिला, लेकिन वहां उन्होंने दूसरे बच्चे को तड़पता देखा। इस पर वह दूसरे बच्चे को उठाकर तुरंत धधकते वार्ड से बाहर को लपकीं और भागते हुए इमरजेंसी में पहुंच गई जहां तड़प रहे मासूम का इलाज शुरू किया गया।
इस बीच सरकारी तौर पर दावा किया जा रहा है कि वार्ड में आग लगने के बाद कर्मचारी तत्परता दिखाते हुए वहां भर्ती बच्चों को बचाने में जुट गए और हाथों में बच्चों को थामकर इमरजेंसी की ओर से भागे। उसमें कई कर्मचारी झुलस भी गए जिनमें नर्स मेघा जेम्स भी शामिल थीं।