रांची: चुनावी महाकवि की बेमिसाल कविताई में आज हम बात करेंगे उन अद्भुत रंगों की जो ‘इंडिया’ और ‘एनडीए’ के गठबंधनों की टिकटों की लॉटरी में देखने को मिल रही है।
सुरुआत करते हैं उन दो दर्जन सीटों से, जहां गठबंधन की गांठें ऐसी उलझी हैं कि सुलझाने की कोशिशें भी गले में अटक गई हैं। मानो गठबंधन के नेता चुटकुले सुनाने वाले हों, जो हर बार हंसते-हंसते खुद ही एक नए मज़ाक में उलझ जाते हैं।
राजनीतिक रेस में ‘इंडिया’ का हाल तो ऐसा है कि जैसे पेंटिंग में रंग बिखरे हों। कांग्रेस और राजद के बागी तो समाजवादी पार्टी की साइकिल पर चढ़कर चुनावी जंग में कूद पड़े हैं, जैसे ‘इंडिया’ में सबसे ज्यादा जनसंख्या समाजवादी पार्टी के नए सिपाहियों की है।
राजनीति की गली में झारखंड के चुनावी रंगमंच पर ‘हम-से.’ भी अपनी अदाकारी दिखाने को तैयार है। कहीं आजसू पार्टी और भाजपा के बीच टुंडी की सीट पर खींचतान चल रही है, तो कहीं झामुमो और कांग्रेस के बीच गर्मागर्म बहसें।
इन हालातों में हर एक दल ऐसा लग रहा है जैसे वे अलग-अलग भाषाओं में गा रहे हों। कोई धुन पर तो कोई राग पर, लेकिन एक बात साफ है – ‘इंडिया’ और ‘एनडीए’ दोनों के बीच कोई साझा मंच नहीं।
लिट्टीपाड़ा के दिनेश विलियम तो ऐसे भड़क गए हैं जैसे किसी ने उनकी पसंदीदा बिरयानी में मटर डाल दी हो। वह पार्टी के अधिकृत उम्मीदवार को चुनौती देने की सोच रहे हैं।
अब बात करते हैं उन पांच सीटों की, जहां प्रत्याशी तय करने की प्रक्रिया ऐसी लग रही है जैसे चुनावी पंडितों ने ताश के पत्तों की एक नई जुगलबंदी शुरू कर दी हो। बरहेट से सीएम हेमंत सोरेन को लेकर भाजपा की दुविधा तो ऐसी है कि मानो वो ताश के पत्तों में सिंगल या डबल का खेल खेल रहे हों।
तो भाइयों और बहनों, इस चुनावी महाकवि की दास्तान यहीं खत्म नहीं होती। देखना होगा कि ये गठबंधन की गुत्थियां कब सुलझेंगी या फिर चुनावी दंगल में कब तक ये महाकवि अपने राग अलापते रहेंगे। चुनावी बुखार में सभी को अपना-अपना टिकट चाहिए, लेकिन एक बात तो तय है – मजा तो तब आएगा जब ‘इंडिया’ और ‘एनडीए’ दोनों एक साथ मंच पर नजर आएंगे, लेकिन फिलहाल तो ये तो बस टिकटों की लॉटरी है!