Tuesday, July 15, 2025

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चंपई सोरेन का जेएमएम से अलगाव: क्या झारखंड में सत्ता संतुलन बदलेगा?

रांची: झारखंड की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर चंपई सोरेन के झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) से अलग होने के बाद कई सवाल उठ खड़े हुए हैं। चंपई सोरेन ने जेएमएम का साथ छोड़कर एक नई राजनीतिक पहचान बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया है। उनकी इस नई राह पर उनके समर्थकों और विरोधियों के बीच चर्चा जारी है कि क्या वह अपनी नई पहचान बना पाएंगे और क्या वह जेएमएम को कोई खास नुकसान पहुंचा सकते हैं।

झारखंड की राजनीति में आदिवासी नेता हमेशा एक प्रमुख भूमिका में रहे हैं, चाहे वह बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, या हेमंत सोरेन हों। इनमें से सबसे प्रभावशाली नाम शिबू सरेन का रहा है, जिनकी राजनीतिक विरासत उनके बेटे हेमंत सोरेन द्वारा संभाली जा रही है। हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन पर भरोसा किया और उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया, लेकिन चंपई के जेएमएम छोड़ने से यह भरोसा टूट गया।

चंपई सोरेन का जेएमएम से अलग होना बिहार के जीतन राम मांझी की स्थिति से मिलते-जुलते हालात उत्पन्न करता है। जीतन राम मांझी को नीतीश कुमार द्वारा मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद जब दोबारा नीतीश कुमार जीतन राम मांझी को हटा कर मुख्यमंत्री बने तब जीतन राम मांझी ने भी जदयू का साथ छोड़ कर अलग राह पकड़ लिया था।
चंपई सोरेन को कोल्हान का ‘टाइगर’ कहा जाता है और उनका राजनीतिक कद बढ़ा है, लेकिन अभी भी उनके पास हेमंत सोरेन के मुकाबले उतना प्रभावशाली और आदिवासी समुदाय में उतना गहरा असर नहीं है। हेमंत सोरेन ने लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में अपनी पहचान बनाई है।

जेएमएम से चंपई सोरेन के जाने से भले ही वोटिंग में सीधा इजाफा न हो, लेकिन एक राजनीतिक माहौल जरूर पैदा होगा। भाजपा और एनडीए इसका इस्तेमाल चंपई को एक विक्टिम के रूप में पेश करने के लिए कर सकती है, जिससे यह दर्शाया जा सके कि कैसे सत्ता एक परिवार के हाथों में संकेंद्रित है।

झारखंड में आगामी चुनावों में चंपई सोरेन की भूमिका और प्रभाव का वास्तविक मापदंड यही होगा कि वह कितने सफल होते हैं और क्या वे आदिवासी समुदाय में अपनी जगह बना पाते हैं। फिलहाल, जानकार मानते हैं कि चंपई सोरेन की राजनीतिक साख और उनका आदिवासी नेतृत्व के रूप में स्थान हेमंत सोरेन के मुकाबले कमजोर है, और आगामी चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है।