150 साल पुरानी ग्राम काली की खास पूजा

धनबाद: मलमास खत्म होने के बाद झारखंड में हर जगह वहां की स्थानीय मान्यताओं के अनुसार लोग पूजा-पाठ एवं शुभकार्य शुरू करते हैं लेकिन इससे पूर्व पूर्वजो द्वारा स्थापित मान्यताओं को नहीं भुलतें। इसी क्रम में धनबाद के गोविंदपुर क्षेत्र के सबरपुर ग्राम में अनोखे आस्था के साथ ग्राम काली की पूजा अर्चना की गई।

यह ग्राम काली बांग्ला मान्यता के साथ माघ के तीसरे दिन या पूजा अर्चना रखी जाती है। लगभग 150 साल से चलती आ रही यह मां काली की पूजा बलि प्रथा के साथ मनाई जाती है जिसमें बकरे के साथ-साथ कबूतर की भी बली पड़ती है।

पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है प्रथा

लोग यहां पर आकर अपनी मन्नत को रखते हैं जिसके बाद मन्नत पूरी होने पर यह बलि पूर्ण की जाती है। इसमें मुख्य रूप से मिट्टी का घोड़ा बनाकर उसकी पूजा की जाती है और कई प्रकार के फल मूल और श्रृंगार के सामान भी चढ़ाए जाते हैं।

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यह पर्व गोप समुदाय के द्वारा स्थापित की गई है। लगभग 150 साल पूर्व गोप समुदाय के द्वारा सर्वप्रथम बली के साथ यह पूजा को मनाया गया जिसके बाद से यह पूर्वजों में एक के बाद एक चला आ रहा है जिससे पीढ़ी दर पीढ़ी मनाने की भी प्रथा है। इस खास मौके पर भव्य मेले का भी आयोजन किया जाता है।

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