झारखंड चुनाव: हल्दीघाटी की चुनावी जंग और रणनीति का अचूक खेल

झारखंड चुनाव: हल्दीघाटी की चुनावी जंग और रणनीति का अचूक खेल

रांची: झारखंड की चुनावी बिसात पर, हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध की छवि हर जगह बिखरी नजर आ रही है। जैसे महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर ने अपनी-अपनी सेनाओं के मोहरे मैदान में उतारे थे, वैसा ही दृश्य एनडीए और ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच राज्य की विधानसभा सीटों पर दिखाई दे रहा है। झारखंड में चुनावी घात-प्रतिघात की ये रणनीति दीपावली बाद और भी आक्रामक रूप लेगी, मानो दोनों ओर से घोड़ों की टापें सुनाई देंगी, तलवारें चमकेंगी और दोनों पक्ष अपने संसाधनों और रणनीतियों की तलवारें चमका कर लड़ाई की तैयारी में होंगे।

इस बार, एनडीए ने हल्दीघाटी के किलेबंदी के अंदाज में चुनावी मैदान को अपने संसाधनों से भर दिया है। जैसे अकबर के पास एक विशाल सेना और अत्याधुनिक हथियार थे, वैसे ही एनडीए अपने संसाधनों के दम पर भारी पड़ने की तैयारी में है। दूसरी तरफ, ‘इंडिया’ गठबंधन ने भी महाराणा प्रताप के जैसे अपने क्षेत्रीय मुद्दों और केंद्र की ‘बेरुखी’ को ढाल बनाकर जनता के बीच पहुंचने का मन बना लिया है। एनडीए के संसाधनों के मुकाबले ‘इंडिया’ जनता के मुद्दों को हथियार बना कर खेल में अपने मोहरे चला रहा है।

चुनाव की इस जंग में 14 सीटों पर त्रिकोणीय और 2 सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। यह स्थिति हल्दीघाटी की तरह ही कठिन है, जहां लड़ाई का नतीजा अनिश्चित था। बाकी 65 सीटों पर सीधा सामना एनडीए और ‘इंडिया’ गठबंधन के बीच है, मानो दो सेनाएं आमने-सामने खड़ी हैं। सुरक्षित सीटों पर झामुमो का किला मजबूत दिख रहा है, जैसे महाराणा प्रताप की मजबूत किलेबंदी ने हल्दीघाटी में अकबर के सामने मुश्किल खड़ी की थी। 2019 के चुनाव परिणाम इसका स्पष्ट संकेत देते हैं, जहां झामुमो और कांग्रेस ने अधिकतर सीटें जीती थीं।

एनडीए के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि भाजपा और आजसू, जैसे हल्दीघाटी में राणा के सहयोगियों में मतभेद हुआ था, वैसा ही कुछ एनडीए के भीतर भी देखने को मिल सकता है। जब भाजपा और आजसू साथ होते हैं, तो उन्हें फायदा होता है, लेकिन अलग-अलग लड़ते हैं तो दोनों को नुकसान उठाना पड़ता है। दूसरी तरफ, कांग्रेस और झामुमो के बीच भी कुछ वैसी ही स्थिति है।

जैसे हल्दीघाटी के युद्ध में प्रताप की बहादुरी की कहानियां जन-जन में गूंजती हैं, वैसे ही झारखंड के इस चुनावी जंग में पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू पूर्णिमा दास साहु, मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा, और अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा जैसे नामों पर लोगों की नजरें टिकी हैं। इनके भाग्य का फैसला पहले चरण में होगा, मानो हल्दीघाटी में महाराणा की सेना के साथ वह अदृश्य बंधन था जो आखिरी दम तक जूझने का साहस देता था।

राजनीतिक हल्दीघाटी की इस आधुनिक कड़ी में झारखंड में एनडीए और ‘इंडिया’ के मोहरे हर चाल के साथ एक नयी परत बुन रहे हैं।

Share with family and friends: