Thursday, September 4, 2025

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100 साल बाद दुर्लभ संयोग: चंद्र और सूर्य ग्रहण के बीच आएगा पितृ पक्ष, जानिए श्राद्ध की महत्ता

इस बार का पितृ पक्ष 100 साल बाद अद्भुत संयोग में है। चंद्र ग्रहण से शुरू होकर सूर्य ग्रहण पर खत्म होगा। जानें श्राद्ध का महत्व और नियम।


रांची: हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार का पितृ पक्ष बेहद खास है। ज्योतिषीय गणना के मुताबिक लगभग 100 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है जब पितृ पक्ष की शुरुआत चंद्र ग्रहण से होगी और इसका समापन सूर्य ग्रहण के साथ होगा। यह अवसर धार्मिक दृष्टि से अत्यंत दुर्लभ माना जा रहा है। पंडितों और विद्वानों का कहना है कि इस विशेष काल में किया गया श्राद्ध और तर्पण न केवल पूर्वजों को तृप्त करता है बल्कि साधकों को भी कई गुना अधिक पुण्य प्रदान करता है।

पितृ पक्ष क्या है

पितृ पक्ष 16 दिनों की वह अवधि है जब हिंदू परिवार अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि इन दिनों पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने परिवार से अदृश्य रूप में जुड़ते हैं। इसलिए इसे केवल धार्मिक कर्मकांड न मानकर पूर्वजों से आत्मिक संवाद का अवसर माना जाता है।


Key Highlights

  • इस बार का पितृ पक्ष 100 साल बाद खास संयोग में आ रहा है।

  • इसकी शुरुआत चंद्र ग्रहण से और समापन सूर्य ग्रहण से होगा।

  • 16 दिन के इस काल में पूर्वजों को तर्पण और पिंडदान अर्पित किया जाता है।

  • गया, वाराणसी, हरिद्वार और प्रयागराज श्राद्ध के लिए प्रमुख स्थल हैं।

  • श्राद्ध को शास्त्रों और विज्ञान दोनों में विशेष महत्व दिया गया है।


हर दिन का अपना महत्व होता है। किसी दिन पिता को, किसी दिन माता को, किसी दिन अकाल मृत्यु को प्राप्त आत्माओं को और किसी दिन अन्य रिश्तेदारों को स्मरण किया जाता है। यहां तक कि बाल्यावस्था में गुज़र जाने वाले बच्चों के लिए भी श्राद्ध किया जाता है।

इस बार का पितृ पक्ष क्यों खास है

  • पितृ पक्ष की शुरुआत चंद्र ग्रहण से होगी।

  • समापन सूर्य ग्रहण से होगा।

  • ऐसा संयोग करीब 100 साल बाद आया है।

  • ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि यह हमारे जीवनकाल में दोबारा शायद ही संभव हो।

धर्मगुरुओं का कहना है कि ग्रहण काल के साथ जुड़े पितृ पक्ष में श्राद्ध करने से आत्माओं की मुक्ति का मार्ग और भी सुलभ होता है। इसे आत्मिक ऊर्जाओं का विशेष संयोग बताया जा रहा है।

आध्यात्मिक महत्व

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, पितृ पक्ष में देवगण योगनिद्रा में चले जाते हैं और इस दौरान पूर्वज परिवार की रक्षा करते हैं। मान्यता है कि अगर हम इस काल में श्राद्ध और तर्पण करें तो पितर प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। वहीं, उपेक्षा करने पर आत्माएं नाराज होकर परिवार में रुकावट और परेशानियां पैदा कर सकती हैं।

श्राद्ध को लेकर महाभारत का एक प्रसिद्ध प्रसंग भी है। दानवीर कर्ण जब स्वर्ग पहुंचे तो उन्हें भोजन नहीं मिला। देवताओं ने बताया कि उन्होंने जीवनभर दान तो किया, लेकिन कभी श्राद्ध नहीं किया। इसके बाद कर्ण ने पृथ्वी पर आकर श्राद्ध किया और तभी उन्हें वास्तविक सुख मिला।

वैज्ञानिक आधार: DNA से जुड़ा रिश्ता

आधुनिक विज्ञान भी इसे एक हद तक समर्थन देता है। शोधों के मुताबिक हमारे DNA में पूर्वजों की केवल शारीरिक विशेषताएं ही नहीं, बल्कि उनके अनुभव और भावनात्मक आघात (Trauma) भी दर्ज रहते हैं। यही कारण है कि कई बार लोग बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के आग, पानी, ऊंचाई या बिजली से डरते हैं। माना जाता है कि श्राद्ध के जरिए यह आत्मिक बोझ हल्का होता है और DNA का नकारात्मक पैटर्न मिटता है।

श्राद्ध की परंपरा और प्रक्रिया

पितृ पक्ष के दौरान तर्पण और पिंडदान किया जाता है।

  • तर्पण: जल अर्पित कर पूर्वजों की प्यास बुझाई जाती है।

  • पिंडदान: तिल और जौ से बने पिंड अर्पित किए जाते हैं, जो भोजन का प्रतीक हैं।

  • भोजन व्यवस्था: कौवा, गाय, कुत्ता, ब्राह्मण और चींटी को भोजन कराकर यह सुनिश्चित किया जाता है कि संदेश और अन्न सभी लोकों तक पहुंचे।

गया, वाराणसी, हरिद्वार, प्रयागराज और रामेश्वरम जैसे तीर्थस्थलों पर श्राद्ध करने का विशेष महत्व बताया गया है। गया को सर्वोत्तम स्थान माना जाता है क्योंकि यहीं भगवान राम ने अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था।

श्राद्ध में क्या न करें

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितृ पक्ष के दौरान नया काम शुरू करना, गृह प्रवेश, विवाह, मुंडन संस्कार और बाल कटवाना वर्जित है। मांस, प्याज, लहसुन और शराब का सेवन भी नहीं करना चाहिए।

श्राद्ध न करने के परिणाम

पंडितों के अनुसार, यदि पूर्वजों को तर्पण और श्राद्ध नहीं मिलता तो उनकी आत्माएं अशांत रहती हैं। इससे परिवार के जीवन में आर्थिक कठिनाई, मानसिक तनाव और अशांति जैसी समस्याएं आ सकती हैं। वहीं, श्राद्ध करने पर पूर्वज प्रसन्न होकर परिवार को समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देते हैं।

श्राद्ध और पितृ पक्ष केवल एक धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव है। यह हमें हमारे अस्तित्व की जड़ों से जोड़ता है। इस बार का पितृ पक्ष इसलिए भी खास है क्योंकि यह 100 साल बाद ग्रहणों के अद्भुत संयोग में आ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय किए गए श्राद्ध और तर्पण से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है और परिवार को विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।

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