कोलंबो : आर्थिक और राजनीतिक संकट की सुनामी का सामना कर रहे श्रीलंका को
एक सप्ताह के भीतर नया राष्ट्रपति मिलने जा रहा है.
225 सदस्यीय श्रीलंकाई संसद 20 जुलाई को गुप्त मतदान के जरिये देश के नये राष्ट्रपति का चयन करेगी.
देश से फरार हुए राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के इस्तीफे के बाद शुक्रवार को
प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने श्रीलंका के कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली.
श्रीलंका के सांसद चुनेंगे राष्ट्रपति
श्रीलंका में 1978 के बाद यह पहला मौका है जब श्रीलंका के सांसद, देश के राष्ट्रपति का चुनाव करेंगे.
20 जुलाई को सांसद गुप्त मतदान के जरिये नये राष्ट्रपति का चुनाव करेंगे.
नये राष्ट्रपति गोटाबाया के बाकी बचे कार्यकाल नवंबर 2024 तक इस पद पर बने रहेंगे.
गोपनीय मतदान करेंगे सांसद
पिछले करीब 40 साल बाद ऐसा हो रहा है कि देश के सांसद गोपनीय मतदान से राष्ट्रपति का चयन करेंगे. पिछले चार दशकों के दौरान 1982, 1988, 1994, 1999, 2005, 2010, 2015 और 2019 में जनता के मतों से देश का राष्ट्रपति चुना गया. इस दौरान सिर्फ एकबार 1993 तत्कालीन राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की हत्या के बाद विजेतुंगा को संसद में सर्वसम्मति से समर्थन दिया गया था. इस बार भी देश असामान्य परिस्थितियों से गुजर रहा है. खासतौर पर देश के राजनीतिक ढांचे के खिलाफ जनता के गुस्से को देखते हुए राष्ट्रपति चुनाव के लिए पुरानी व्यवस्था को लाया जाना बेहतर माना गया.
कांटों भरे ताज के दावेदार
देश का आर्थिक संकट जब दुनिया के समक्ष आ गया तो तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के स्थान पर इसी साल मई में 73 वर्षीय रानिल विक्रमसिंघे को उनकी जगह देश का नया प्रधानमंत्री बनाया गया. वे चार बार देश के प्रधानमंत्री रहे हैं. अब असामान्य राजनीतिक परिस्थिति में देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति बनाए गए युनाइटेड नेशनल पार्टी के रानिल विक्रमसिंघे, राष्ट्रपति पद की दौड़ में सबसे आगे बताए जा रहे हैं. हालांकि उन्हें समर्थन देने वाले सांसदों की संख्या इतनी नहीं है, जो उनकी जीत सुनिश्चित करे. उन्हें अपनी जीत के लिए सत्तारूढ़ एसएलपीपी के सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी लेकिन यह समर्थन उन्हें मिलेगा, इसमें संदेह की पर्याप्त गुंजाइश है.
ये हैं राष्ट्रपति पद के दावेदार
राष्ट्रपति पद की दौड़ के तीन प्रमुख नामों में रानिल विक्रमसिंघे के बाद पूर्व कैबिनेट मंत्री दुलास अल्हाप्परुमा इस पद के लिए दावेदारी की घोषणा कर चुके हैं. वे दूसरे प्रतिद्वंद्वियों को कठिन चुनौती देने की ताकत रखते हैं. जबकि विपक्षी दल न्यूज डेमोक्रेटिक फ्रंट नेता सजित प्रेमदासा भी राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल हैं. हालांकि रानिल विक्रमसिंघे के अलावा जो दो दावेदार हैं, उनके साथ अनुभव का संकट है. साथ ही यह भरोसा करना भी मुश्किल है कि वे देश को मौजूदा संकट से निकलने का रास्ता बना सकते हैं.
नये राष्ट्रपति के सामने चुनौतियों का पहाड़
श्रीलंका के नये राष्ट्रपति को चुनौतियों की आग से होकर गुजरना होगा. एक तरफ देश को संभालने की बेशुमार चुनौतियां सामने होंगी तो दूसरी तरफ जनता की उम्मीदें. खासकर देश जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है, उसमें दुनिया भर की निगाहें भी देश के नये राष्ट्रपति के कामकाज पर होंगी. क्योंकि 1948 में आजादी के बाद श्रीलंका में पहली बार ऐसी स्थिति आई है. एक दशक से अधिक समय तक गृहयुद्ध से जूझने वाले इस देश में उस समय भी ऐसी खराब स्थिति नहीं थी.