आखिर क्या है Creamy Layer जिसे लेकर मचा है बवाल, पढ़ें…

मंजेश कुमारCreamy Layer

पटना: बीते दिनों एससी एसटी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद देश भर में विरोध हो रहा है। देश भर में विभिन्न संगठनों ने बुधवार को भारत बंद भी किया। विभिन्न संगठनों के भारत बंद को कई विपक्षी दलों ने भी अपना समर्थन दिया है। भारत बंद का असर बिहार के कई जिलों में देखने को मिला तो कई जिलों में बंद का असर बिल्कुल नहीं दिखा। एससी एसटी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इन कैटेगरी के वंचित वर्गों के उत्थान के लिए अलग से वर्गीकरण किया जा सकता है।

फैसला सुनाते हुए जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि राज्यों को एससी और एसटी क्रीमी लेयर की पहचान कर उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर करना चाहिए। सुनवाई कर रहे सात जजों में से 6 ने इसका समर्थन किया जबकि एक जज ने विरोध भी किया था। तो आइये जानते हैं क्या है क्रीमी लेयर और नॉन क्रीमी लेयर।

क्या है क्रीमी लेयर
क्रीमी लेयर का शाब्दिक अर्थ है मलाईदार तबका। इस लेयर के माध्यम से पिछड़े वर्गों में आर्थिक आधार पर बंटवारा कर सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाता है। क्रीमी लेयर की शुरुआत वर्ष 1993 में शुरू की गई थी जिसके बाद पिछड़े वर्गों में आर्थिक आधार पर वर्गीकरण लोगों को आरक्षण दिया जाता है।

वर्तमान में क्रीमी लेयर के लिए आर्थिक आधार पर 8 लाख रूपये सालाना आय निर्धारित की गई है। इसका मतलब है कि जिस परिवार की आया सभी स्रोतों से हर वर्ष 8 लाख रूपये या इससे अधिक है उसे ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाएगा। इससे कम आरक्षण वाले लोगों को ही सिर्फ आरक्षण का लाभ दिया जाता है।

क्रीमी लेयर की शुरुआत
क्रीमी लेयर पहचान वर्ष 1971 में सत्तानाथन समिति ने की। उस दौरान आयोग ने निर्देश देते हुए कहा था कि क्रीमी लेयर के तहत आने वाले लोगों को सिविल सेवा परीक्षा में आरक्षण के दायरे से बाहर रखना चाहिए। उस वक्त यह व्यवस्था सिर्फ ओबीसी आरक्षण में रखा गया था।

क्रीमी लेयर का निर्धारण
वर्ष 1992 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण आरक्षण जारी रखने के लिए ओबीसी वर्ग में आरक्षण जारी रखने के लिए क्रीमी लेयर की पहचान के लिए मापदंड निर्धारित करने के लिए एक समिति बनाई गई। समिति का नेतृत्व सेवा निवृत जज आरएन प्रसाद कर रहे थे। समिति ने सितंबर 1993 में सुझाव देते हुए कहा कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने कुछ आय रैंक और स्थिति वालों की अलग अलग श्रेणी में निर्धारण किया है, जिनके बच्चे ओबीसी वर्ग के आरक्षण के पात्र नहीं होंगे।

कैसे होता है निर्धारण
वर्ष 1971 में सत्तानाथन आयोग ने आय के आधार पर ओबीसी वर्ग में क्रीमी लेयर की पहचान की थी। इस वक्त पिछड़े वर्ग के क्रीमी लेयर की पहचान एक लाख रूपये प्रतिवर्ष निर्धारित की गई थी। वर्ष 2004 में इसमें संशोधन कर ढाई लाख रुपया किया गया था, 2008 में 4.5 लाख और 2013 में 6 लाख रूपये और 2017 में 8 लाख रूपये प्रतिवर्ष किया गया था। कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग ने निर्धारित किया है कि हर 3 वर्ष में आय की सीमा में संशोधन किया जायेगा।

कौन होंगे क्रीमी लेयर
जिनके माता पिता सरकारी नौकरी नहीं करते बावजूद इसके उनके परिवार की आय 8 रूपये प्रतिवर्ष से अधिक हो। जिनके माता पिता सरकारी नौकरी करते हैं और उनका रैंक पहली श्रेणी का हो। क्रीमी लेयर में आने वाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं जाता है जबकि नॉन क्रीमी लेयर के लोगों को सभी आरक्षण का लाभ मिलता है।

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