एसके राजीव
पटना : कहते हैं राजनीति में न तो दोस्ती अच्छी होती है और न ही दुश्मनी। एनडीए ने आज जैसे ही दिल्ली में सीटों की घोषणा की तो ये तो तय हो गया कि पांच साल तक मोदी संग कैबिनेट में बैठने वाले राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (RLJP) के राष्ट्रीय अध्यक्ष व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस अब एनडीए से बाहर हो गए और उनकी जगह उनके भतीजे चिराग पासवान को दे दी गई। पिछले कुछ दिनों से इसकी स्क्रीप्ट लिखी जा रही थी जिसका अंदजा परस को हो गया था लेकिन पारस अंतिम समय तक इंतजार कर रहे थे जो इंतजार ही रह गया।
दरअसल, मोदी कुनबे को यह पता है कि बिहार में अगर पासवान जाती को वोट चाहिए तो चिराग को साधना ठीक होगा। मोदी ने वैसा ही किया और चिराग को पांच सीटें दे दी गई। जीतनराम मांझी संग उपेंद्र कुशवाहा को भी साथ रख गया तो वहीं पिछले कुछ दिनों से दिल्ली दरबार का दौड़ लगा रहे वीआईपी प्रमुख व पूर्व मंत्री मुकेश सहनी को भी एनडीए में इंट्री नहीं दी गई। यानी भाजपा ने एक तीर से दो निशाना साधा। एक तो पशुपति पारस को सीट न देकर चारो खाने चित्त कर दिया तो वहीं सीट की आश में बैठे मुकेश सहनी को भी निराश कर दिया।
बता दें कि सीट तय करने में देश के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले बिहार में चल रही हवा के रुख को भांप लिया। लेकिन अब घर से बेघर हो चुके पारस और सहनी के लिए चुनौतियां शुरू हो गई हैं कि आखिर अपने तीन सांसदों को वे टिकट कहां से देंगे। क्या मोदी को सबक सिखाने के लिए महागठबंधन के साथ जाएंगे या फिर भतीजे चिराग को हराने के लिए उनकी पांच सीटों पर अपनी पार्टी के उम्मीदवार को उतारेंगे। पारस के अगले कदम का फिलहाल इंतजार किजीए।
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