रांची: झारखंड की राजनीतिक स्थिति इस समय भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि पार्टी के भीतर विद्रोह की लहर ने उनके सत्ता पर काबिज होने के प्रयासों को प्रभावित किया है। टिकट बंटवारे के बाद कई भाजपा नेता और कार्यकर्ता नाराज होकर चुनावी मैदान में बागी बनकर उतर आए हैं, जिससे पार्टी को चुनावी समीकरणों में नुकसान हो सकता है। इस बार, कई प्रमुख नेता जैसे हेमंत सोरेन, शिवराज सिंह चौहान और संजय सेठ ने नाराज खेमा को मनाने के प्रयास किए हैं, लेकिन उनकी कोशिशें नाकाम साबित हो रही हैं।
भाजपा के लिए संकट का सबब बन रही प्रमुख सीटों में राज धनवार शामिल है, जहां पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी को खतरा है। उनके करीबी निरंजन राय ने निर्दलीय खड़े होने का निर्णय लिया है, जिससे भाजपा के लिए फॉरवर्ड वोटों का नुकसान होना तय है। वहीं, रांची सीट पर सीपी सिंह की स्थिति भी खतरे में है, क्योंकि उत्तम यादव जैसे बागी नेता उनके लिए चुनौती बन सकते हैं। मधुपुर में राज पलवाल की विद्रोह की संभावना भी भाजपा के लिए एक नया संकट उत्पन्न कर सकती है।
भाजपा की अन्य हाई-प्रोफाइल सीटों पर भी स्थिति गंभीर है। खरसावां में मीरा मुंडा को टिकट और जमशेदपुर पूर्वी में रघुवर दास की बहू को टिकट मिलने से नाराजगी बढ़ रही है। इससे स्पष्ट होता है कि भाजपा को अपने ही वफादारों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जो अंततः चुनाव परिणामों पर असर डाल सकता है।
इतिहास गवाह है कि जब-जब अपने विद्रोही हुए हैं, तब-तब सत्ता को सीधी चुनौती मिली है। झारखंड में भाजपा के बागियों का सामना करना पड़ रहा है, जो पार्टी की चुनावी संभावनाओं को खतरे में डाल सकता है। एक-एक वोट की कीमत को समझते हुए, भाजपा नेतृत्व को अब तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए ताकि वे अपनी अंदरूनी दरारों को सुलझा सकें। अगर पार्टी अपने बागी नेताओं को मनाने में नाकाम रहती है, तो इसका सीधा असर उनकी चुनावी संभावनाओं पर पड़ेगा।
भाजपा को अपनी रणनीतियों में तेजी लानी होगी और चुनावी समीकरणों को संभालना होगा, ताकि वे अपनी सीटों पर जीत की संभावनाओं को मजबूत कर सकें। झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस की रणनीतियों पर भी भाजपा की सफलता निर्भर करेगी। इस स्थिति में, भाजपा को अपने नेताओं की नाराजगी को दूर करने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, अन्यथा परिणाम गंभीर हो सकते हैं।