चंदनक्यारी: चंदनक्यारी विधानसभा सीट इस बार एक पेचीदा गुत्थी बन चुकी है, जैसे कोई उलझा हुआ धागा जिसे सुलझाने की कोशिश में दोनों पक्ष जुटे हैं। एक तरफ हैं भाजपा के अमर बावरी, जो दिमाग और ताकत दोनों लगाकर अपनी जीत सुनिश्चित करने में लगे हैं। दूसरी ओर, उमाकांत रजक, जिन्होंने पाला बदलकर खुद को झामुमो के चक्रव्यूह में डाल लिया है। लगता है जैसे सियासत में धागे सुलझाने के बजाय और उलझते जा रहे हैं!
अमर बावरी की बात करें तो वे तो जैसे चंदनक्यारी के धागों को खुद से ही बुन रहे हैं। पहले दो चुनावों में उनकी जीत ने साबित कर दिया है कि वे इस सीट के चतुर बुनकर हैं। 2014 में जेवीएम के टिकट पर, और 2019 में भाजपा के निशान के साथ, वे हर बार अपनी काबिलियत दिखा चुके हैं। अमर की दिमागी चतुराई ही उन्हें इस चुनावी मेला में आगे बढ़ने में मदद कर रही है।
अब दूसरी ओर उमाकांत रजक हैं। उन्होंने झामुमो में शामिल होकर जैसे एक नई रणनीति अपनाई है। उनका कहना है, “जोड़ा गया पाला, सुलझाएगा गुत्थी,” लेकिन सवाल ये है कि क्या ये पाला सच में उनके लिए सहारा बनेगा, या फिर उलझन को और बढ़ाएगा? उमाकांत का 2009 का रिकॉर्ड तो इस बार के चुनाव में उनका मददगार नहीं साबित हो रहा।
चुनावी माहौल में जैसे ही दिन नजदीक आते जा रहे हैं, चंदनक्यारी की जनता अपने-अपने नेता के धागे को तानने में लगी है। आंकड़े बताते हैं कि अमर बावरी की पिछली जीतें उनके लिए एक मजबूत आधार हैं, जबकि उमाकांत रजक की बगावत और झामुमो का दामन थामना उन्हें केवल एक खतरे की तरह दिख रहा है।
क्या चंदनक्यारी के चुनावी धागों का गुच्छा इस बार भी अमर बावरी के हाथों में होगा, या फिर उमाकांत रजक अपने नए रंग में चमकने में सफल होंगे? यह तो केवल चुनाव के दिन ही पता चलेगा। लेकिन इतना तो साफ है कि दोनों ही नेता इस धागे को सुलझाने की कोशिश में जुटे हुए हैं, और जनता को भी यही देखना है कि कौन सा धागा किसकी जीत की ओर जाता है।
चलिए, उम्मीद करते हैं कि इस गुत्थी का अंत चुनाव के बाद ही होगा, और तब तक हम यही सोचते रहेंगे कि क्या धागा सुलझा या फिर और उलझा!