Wednesday, July 2, 2025

Latest News

Related Posts

झारखंड की सियासत में नए तुरुप का इक्का बने चंपाई सोरेन, कोल्हान टाईगर को चुनावी ब्रह्मास्त्र बना सकती है भाजपा

जनार्दन सिंह की रिपोर्ट

रांची : झारखंड की सियासत में नए तुरुप का इक्का बने चंपाई सोरेन, कोल्हान टाईगर को चुनावी ब्रह्मास्त्र बना सकती है भाजपा। झारखंड में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं और उसकी अधिसूचना भी अभी जारी होनी बाकी है लेकिन उससे पहले राज्य की सियासत में दलों की गोटियां चली जानी तेज हो गई हैं।

बीते कुछ घंटों में सीधे तौर पर झारखंड में चंपाई सोरेन तेजी से नए सियासी तुरूप का इक्का के रूप में उभरे हैं। राज्य का सत्तारूढ़ खेमा कोल्हान टाईगर के रूप में मशहूर चंपाई सोरेन के रुख पर ठिठका और सहमा हुआ है तो दूसरी ओर प्रतिपक्षी भाजपा खेमे को अपने लिए नई संभावनाएं दिखने लगीं हैं।

झारखंड में भाजपा खेमे लिए कोल्हान टाईगर अहम चुनावी ब्रह्मास्त्र होने की हर काबिलयत रखते हैं लेकिन भाजपा नेतृत्व उन्हें सीधे अपनी पार्टी में शामिल कराने के बजाय सहयोगी के तौर पर साथ लेकर सियासी समर में कूदने की पक्षधर है।

अभी तमाम विकल्पों पर तेजी से मंथन जारी है और राज्य के चुनाव प्रभारियों से मिल रहे फीडबैक के आधार पर अंतिम फैसला अमित शाह के स्तर पर लिया जाना है। यानी भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व ही इसे अंतिम रूप देगा और यही कारण है कि पूर्व सीएम चंपाई सोरेन अचानक 3 दिनों के निजी दौरे पर दिल्ली में ही दूसरे दिन टिके हुए हैं।

कोल्हान टाईगर के लिए झारखंड में महाराष्ट्र फार्मूला चल सकती है भाजपा

झारखंड में भारतीय जनता पार्टी इस समय नंबर दो की सियासी पार्टी है। राज्य में होने वाले विधानसभा में इसका लक्ष्य सत्ता परिवर्तन का है। उसके लिए बीते काफी समय से बांग्लादेशी मुसलमानों के घुसपैठ के चलते आदिवासी इलाकों में बदली डेमोग्राफी को मुद्दा बनाकर आवाज भी भाजपा लगातार बुलंद कर रही है।

अब उसी आदिवासी समाज से गहरे जुड़े कोल्हान टाईगर यानी चंपई सोरेन खुद ही अपने हाथों से पुष्पित-पल्लवित जेएमएम में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष होकर पर दरकिनार कर दिए जाने पर खासे अपमानित महसूस कर रहे हैं एवं असहज हैं।

उन्हें भाजपा अपने पाले में लाने के पक्ष में गंभीरता से है लेकिन बेसब्र नहीं है। वह इस बारे में काफी कुछ तोलमोल के फैसला लेने के पक्ष में है। मिली जानकारी के मुताबिक, भाजपा थिंक टैंक चंपई सोरेन संग तमाम सियासी विकल्पों पर विमर्श कर रहा है।

पहला तो है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के नाराज नेताओं के साथ मिलकर चंपई सोरेन खुद की पार्टी बना लें जिसका संभावित नाम बिरसा कांग्रेस, झामुमो (सोरेन) आदि कुछ भी हो सकता है। इस विकल्प के तहत अगर चुनाव बाद कोल्हान टाईगर किंगमेकर की भूमिका में आते हैं तो भाजपा महाराष्ट्र के शिंदे वाले फॉर्मूले पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाने से नहीं हिचकेगी।

इसी के साथ दूसरा विकल्प है कि तमाम गुणा-गणित के बाद भी अगर चंपाई सोरेन भाजपा के खांचे में फिट नहीं बैठते हैं तो उन्हें एनडीए के किसी दल की पतवार दी जा सकती है जिनमें जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) और चिराग पासवान की लोजपा-आर के नामों की चर्चा तेज है।

बता दें कि जेडीयू पहले भी कोल्हान में एक-दो सीटों पर चुनाव जीतती रही है और  हाल ही में झारखंड के बड़े नेता सरयू राय जेडीयू में शामिल भी हो चुके हैं।

पूर्व सीएम चंपाई सोरेन की पुरानी फोटो
पूर्व सीएम चंपाई सोरेन की पुरानी फोटो

कोल्हान टाईगर को सीधे भाजपा में एंट्री कराने से हिचक रहा नेतृत्व

कोल्हान टाईगर को लेकर भाजपा नेतृत्व के स्तर पर जो शुरूआती बात सामने आई थी, वह थी कि भाजपा चंपाई सोरेन को सीधे अपने संगठन में लेकर झारखंड चुनाव के बाद उन्हें केंद्र में कोई बड़ा पद देगी या फिर राज्यपाल बनाएगी अथवा किसी आयोग का चेयरमैन भी बनाएगी।

लेकिन इस विकल्प को अभी पेंडिंग में डाल दिया गया है। बताया जा रहा है कि कोल्हान टाईगर को भाजपा यहां सीधे एंट्री कराने मे दो वजहों से हिचक रही है।

पहला तो यह है कि पार्टी में पहले से ही 3 ऐसे नेता (बाबू लाल मरांडी, रघुबर दास और अर्जुन मुंडा) हैं, जो पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं। ऐसे में नए आने वाले पूर्व सीएम चंपई सोरेन की भूमिका क्या होगी? क्या पार्टी उन्हें सीएम के रूप में प्रोजेक्ट कर सकने की स्थिति में सहज रहेगी ?

अगर पार्टी ऐसा करती है तो भी और नहीं करती है तो भी सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) चुनाव में इसे मुद्दा बनाने से नहीं चूकेगी।

दूसरी वजह यह है कि ⁠लंबे वक्त से हेमंत सोरेन भाजपा पर पार्टी तोड़ने का आरोप लगा रहे हैं और बीते रविवार को पाकुड़ और गोड्डा में  इस बारे में मंच से कहा भी था। अब चंपई सोरेन के भाजपा में सीधे आने से हेमंत सोरेन के उसी आरोप को बल मिलेगा जिसका सियासी फायदा झारखंड में चुनावी साल में सत्तारूढ़ गठबंधन को ही मिलेगा।

आदिवासी सियासत के लिए भाजपा के लिए मुफीद हैं चंपाई सोरेन

पूर्व सीएम और जेएमएम के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चंपाई सोरेन आदिवासी समुदाय के बड़े नेता माने जाते हैं। वह 7 बार के विधायक और मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह झारखंड के कोल्हान इलाके से हैं जहां विधानसभा की 14 और लोकसभा की 2 सीटें आती हैं।

चंपाई सोरेन जिस कोल्हान क्षेत्र के मजबूत नेता माने जाते हैं, वहां पर 2019 में झारखंड मुक्ति मोर्चा को 14 में 11 सीटों पर जीत मिली थी। ऐसे में चंपाई के भाजपा में आने से सरायकेला ही नहीं बल्कि पूरे कोल्हान इलाके में भाजपा का कद और बढ़ेगा एवं झारखंड में भाजपा के लिए सत्ता की राह आसान होने के प्रबल आसार बनेंगे।

मोटे तौर पर देखा जाए तो झारखंड में सबसे ज्यादा 26 फीसदी आबादी आदिवासियों की है, जो राजनीतिक दलों का सियासी समीकरण बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।

राज्य विधानसभा की कुल 81 में से 28 सीटें आदिवासी समुदाय के लिए रिजर्व हैं। ये सीट खूंटी, सिंहभूम, लोहरदगा, दुमका और साहिबगंज सरीखे जिलों में हैं और राज्य की सत्ता हासिल करने के लिए ये सीटें बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।

वर्ष 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में इन सीटों के नतीजे दखें तो जेएमएम ने सबसे ज्यादा 19 और कांग्रेस ने 6 आदिवासी बहुल सीट जीती थीं, जबकि भाजपा सिर्फ 2 सीट ही जीत सकी थी। इस बार के लोकसभा चुनाव की खास बात यह रही है कि आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों में एक भी सीट भाजपा को नहीं मिली।

वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव जैसा ही आदिवासी समाज का वोटिंग पैटर्न 2024 के लोकसभा चुनाव में रहा और आलम यह रहा कि बीते लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए काफी हास्यास्पद स्थिति भी बनी। वजह रही कि आदिवासी समाज से ही आने वाले झारखंड के दो बार सीएम रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा भाजपा की टिकट पर नहीं जीत पाए।

शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के साथ चंपाई सोरेन
शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन के साथ चंपाई सोरेन

आदिवासी समाज इस समय भाजपा में झारखंड के लिए मुख्य एजेंडा

भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इस समय झारखंड में खुद को आदिवासी समाज से कनेक्ट करने पर फोकस किए हुए है। इसी कड़ी में वह आदिवासियों से जुड़े किसी भी प्रसंग में खुद को सबसे ज्यादा संवेदनशील जताने पर फोकस किए हुए है।

बता दें कि झारखंड में आदिवासी समाज की पुरानी मांग रही है – खतियान आधारित स्थानीय नीति और नियोजन नीति। वर्ष 2019 में सीएम बनने के बाद जेएमएम नेता हेमंत सोरेन ने पहले तो ऐसी नीतियां बनाने से इनकार कर दिया था लेकिन बाद में विधानसभा से दोनों नीतियों के बिल पास करा दिए और राज्यपाल के पास भेज दिया।

फिर राज्यपाल ने संवैधानिक खोट बता कर इन्हें वापस कर दिया तो जेएमएम को यह कहने का मौका मिल गया कि हमने तो अपना काम कर दिया था लेकिन भाजपा के इशारे पर राज्यपाल ने ही अड़ंगा लगा दिया। आदिवासी समाज ने हेमंत सोरेन की बातों पर यकीन कर लिया और उसका खामियाजा भाजपा को लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ा।

डैमेज कंट्रोल करने को भाजपा ने आदिवासी समुदाय की नाराजगी को दूर करने के लिए प्रदेश नेतृत्व की कमान आदिवासी समाज से ही आने वाले झारखंड के पहले सीएम बाबूलाल मरांडी को सौंपी। फिर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष दलित समाज से आने वाले अमर बाउरी को बनाया गया।

यही नहीं, जेएमएम के संस्थापक शिबू सोरेन परिवार की बड़ी बहू सीता सोरेन ने लोकसभा चुनाव के वक्त भाजपा का दामन थाम कर सबको चौंकाया तो कांग्रेस की तत्कालीन सांसद गीता कोड़ा ने भी भाजपा में शामिल हुईं तो वह भाजपा के डैमेज कंट्रोल का ही हिस्सा रहा।

Breaking : जोहार साथियों, चंपई सोरेन ने बता दिया अपना दर्द...
Breaking : जोहार साथियों, चंपई सोरेन ने बता दिया अपना दर्द…

14 साल पहले जेएमएम और भाजपा के बीच अहम कड़ी थे चंपाई…

चंपाई सोरेन ने राजनीतिक करियर की शुरुआत शिबू सोरेन के सानिध्य में की थी। झारखंड आंदोलन के दौरान चंपई को कोल्हान की जिम्मेदारी मिली हुई थी और उसी क्रम में वर्ष 1991 के उपचुनाव में चंपई पहली बार सरायकेला सीट से विधायक चुने गए थे।

फिर साल 2000 का चुनाव छोड़ दें तो चंपई लगातार वहां से जीत दर्ज कर रहे हैं। वह वर्ष 2009 में शिबू सोरेन की सरकार में पहली बार मंत्री बने थे और फिर वर्ष 2010 में भाजपा-जेएमएम के बीच समझौता हुआ तो चंपाई को अर्जुन मुंडा सरकार में मंत्री बनने का अवसर मिला।

चंपाई उस सरकार में काफी पॉवरफुल थे और वजह थी कि चंपाई उस सरकार में जेएमएम की तरफ से गठबंधन के संदेशवाहक थे।

वर्ष 2013 में हेमंत सोरेन सरकार में भी चंपई मंत्री रहे। अभी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहते हुए पार्टी में वह तीसरे नंबर के नेता माने जाते रहे हैं। वर्ष 2019 में हेमंत फिर से मुख्यमंत्री बने तो चंपई को परिवहन विभाग की कमान सौंपी गई लेकिन साल 2024 के जनवरी में ईडी ने जब हेमंत को गिरफ्तार कर लिया, तब पिता शिबू सोरेन के कहने पर हेमंत ने मुख्यमंत्री की कुर्सी चंपई को सौंपी थी।

उसके बाद हेमंत सोरेन जब तक जेल में थे, तब तक दोनों के रिश्ते बेहतरीन थे लेकिन हेमंत के जेल से बाहर आते ही रिश्तों में दरार आ गई। पहले चंपई को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा और फिर उन्हें हेमंत कैबिनेट में शामिल होना पड़ा जो कि उनके लिए काफी अपमानजनक रहा।

संगठन और सरकार में अपने इसी तिरस्कार के बाद 14 साल पहले जिस भाजपा के लिए जेएमएम संस्थापक की ओर से कोल्हान टाईगर संदेशवाहक थे, अब उसी भाजपा के साथ उनकी नई पारी शुरू होने का लोगों को इंतजार है।

Loading Live TV...

📍 लोकेशन और मौसम लोड हो रहा है...