Wednesday, July 2, 2025

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यूपी की सियासत में ‘छड़ी’ छोड़ अब ‘चाबी’ ही सुभासपा की नई पहचान, ओपी राजभर फिर बने राष्ट्रीय अध्यक्ष

लखनऊ : यूपी की सियासत में ‘छड़ी’ छोड़ अब ‘चाबी’ ही सुभासपा की नई पहचान, ओपी राजभर फिर बने राष्ट्रीय अध्यक्ष। पिछड़ों की सियासत करने वाली सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) अचानक फिर से सुर्खियों में है। इसके संगठन का पुनर्गठन किया गया है और ओम प्रकाश राजभर फिर से इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष बने हैं।

साथ ही सुभासपा ने अब ‘छड़ी’ छोड़कर ‘चाबी’ को अपना चुनाव निशान बनाया है  और उसी को लेकर आगे होने वाले चुनावों में वोटरों के बीच जाएगी। विधानसभा और लोकसभा चुनावों के साथ ही सुभासपा फोकस अब सीधे तौर पर गांव व किसान की सरकार कहे जाने वाले ग्राम पंचायत, ब्लॉक प्रमुखी और जिला पंचायतों के चुनाव पर भी है।

उसी के लिए फिर से सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने ओपी राजभर ने कहा कि सुभासपा गरीबों, वंचितों, पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक और पीड़ितों की पार्टी है और इसलिए सभी पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं के लिए एक ही मंत्र है कि वे अब से पूरी निरंतरता एवं तत्परता से पार्टी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाएं।

छड़ी छोड़ सुभासपा के चाबी को अपनाने की भी रही है रोचक सियासी वजह

जो छड़ी चुनाव चिन्ह सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और ओम प्रकाश राजभर की शान हुआ करती थी, वह अब उनके साथ नहीं रहेगी। सुभासपा ने घोषणा की है कि उसका चुनाव चिन्ह अब चाबी होगा। चुनाव आयोग की ओर से उसे ये चिन्ह दिया गया है।

लोकसभा चुनाव-2024 के दो महीने बाद पार्टी को नया चुनाव चिन्ह मिला है। दरअसल, सुभासपा ने घोसी में पार्टी उम्मीदवार अरविंद राजभर की हार के लिए चुनाव चिन्ह को जिम्मेदार ठहराया था क्योंकि पार्टी नेताओं का मानना था कि चुनाव चिन्ह पर भ्रम के कारण अरविंद राजभर हार गए।

नतीजों के बाद ही ओमप्रकाश राजभर ने इसे बदलने का फैसला कर लिया था।  अब लखनऊ में इसका ऐलान किया गया है। बता दें कि ओमप्रकाश राजभर के बेटे अरविंद राजभर घोसी में एनडीए के उम्मीदवार थे और उन्हें सपा के राजीव राय का हाथों हार का सामना करना पड़ा था। राजभर की हार 1.62 लाख वोटों से हुई थी।

खास बात यह रही कि उसी चुनाव में मूलनिवासी समाज पार्टी की लीलावती राजभर को 47 हजार 527 वोट मिले थे और बाद में सुभासपा ने आरोप लगाया कि चुनाव चिन्ह के कन्फ्यूजन के कारण हमारे वोट विभाजित हो गए क्यों कि लीलावती की पार्टी का चुनाव चिन्ह हॉकी स्टिक था जो कि सुभासपा के पुराने चिन्ह छड़ी से मिलता जुलता है।

सुभासपा राष्ट्रीय अध्यक्ष ओपी राजभर ने विनोद सिंह टीटी को प्रदेश महासचिव का दायित्व सौंपा।

ओपी राजभर ने पुनर्गठित संगठन की घोषणा, विनोद सिंह टीटी को बनाया यूपी प्रदेश महासचिव

फिलहाल एनडीए के साथ और यूपी की योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओपी राजभर को फिर से सुभासपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने पर दोबारा पदभार संभालते ही राष्ट्रीय अध्यक्ष ने संगठन के पुनर्गठन की घोषणा की। इसके तहत डॉक्टर अरविंद राजभर को राष्ट्रीय प्रमुख महासचिव और कोषाध्यक्ष बनाया गया है।

अरविंद राजभर ओमप्रकाश राजभर के बेटे हैं। पार्टी के नेता राम ललित चौधरी को सुभासपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और सालिक यादव को राष्ट्रीय संगठन मंत्री चुना गया है। अरुण राजभर को राष्ट्रीय प्रवक्ता घोषित किया गया है जबकि उनके साथ पीयूष मिश्रा को भी चौथी बार प्रवक्ता बनाया गया है।

इसी तरह प्रेम चंद कश्यप को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष चुना गया है जबकि वाराणसी निवासी विनोद सिंह टीटी को प्रदेश महासचिव का दायित्व दिया गया है। इसके अलावा पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ 25 जिला अध्यक्षों और विभिन्न मोर्चों व प्रकोष्ठों के पदाधिकारियों की घोषणा भी की है।

यूपी में सुभासपा संगठन का चार क्षेत्रों में विस्तार, बिहार विधानसभा में ताल ठोंकने की कर दी तैयारी

यूपी की सियासत में सुभासपा की उपस्थिति मुख्य रूप से पूर्वी उत्तर प्रदेश में मानी जाती रही है लेकिन अब राज्य के अन्य हिस्सों में भी अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए पार्टी ने संगठन को चार क्षेत्रों में विभाजित किया है। प्रत्येक को एक प्रमुख भी मिला है।  इस तरह एक प्रदेश अध्यक्ष के साथ-साथ चार जोनल अध्यक्ष भी होंगे। राज्य संगठन को जिन चार अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित किया गया है उसमें पूर्वाचल, पश्चिमांचल, बुंदेलखंड और मध्यांचल हैं।

सुभासपा में ओम प्रकाश राजभर ने घोषणा की कि उनकी पार्टी बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव भी मजबूती से लड़ेगी। उन्होंने दावा किया कि उनकी पार्टी न केवल उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रभाव रखती है,बल्कि बिहार में भी। उन्होंने कहा कि सुभासपा गरीबों, वंचितों, पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक और पीड़ितों की पार्टी है इसलिए पार्टी के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाएं।

इसी क्रम में ओमप्रकाश राजभर ने पूर्व की सरकारों पर निशाना साधते हुए पूछा कि पहले की सरकार में उन्हें शोषित, वंचित, पिछड़ा, दलित, अति पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक समाज के लोगों की याद क्यों नहीं आई? जब सरकार में थे तब उनको जातिगत जनगणना, सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट को लागू करने की याद क्यों नहीं आई?

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