जनजातीय भाषा के शिक्षकों की बदहाली
- शिक्षकों ने काली पट्टी लगाकर छात्रों को पढ़ाया.
- विरोध प्रदर्शन मानदेय भुगतान होने तक जारी रहेगा.
Ranchi: एक तरफ झारखंड के कोने-कोने में भाषा विवाद की आंच सुलग रही है.
Highlights
पक्ष से लेकर विपक्ष तक जनजातीय भाषाओं के सवाल पर एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ ले रहा है.
सबकी कोशिश है कि वह जनजातीय और क्षेत्रीय भाषाओं के साथ अपने आप को खड़ा दिखा सके.
लेकिन इसकी जमीनी सच्चाई कुछ और ही बंया करती है.
सच्चाई यह है कि जिनके कंधे पर इन भाषाओं के प्रचार प्रसार करने की जिम्मेवारी है.
इन भाषाओं को संरक्षण और संवर्धन करने का गुरुतर दायित्व है,.
उन्हे दो वर्षों से उनके मानदेय का भुगतान नहीं हुआ है.
खुद खाली पेट वे इन भाषाओं के छात्रों को पठन पाठन करवा रहे हैं.
काली पट्टी लगाकर शिक्षक करवा रहें है पढ़ाई
हालात यह है कि रांची विश्वविद्यालय के जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग के अलग-अलग विषयों में अनुबंध पर नियुक्त घंटी आधारित सहायक प्राध्यापक अब काली पट्टी बांधकर विद्यार्थियों को पठन पाठन करवा रहे हैं.
इस सिलसिले में खोरठा भाषा की डॉ अर्चना कुमारी, डॉ निरंजन कुमार, हो भाषा की डॉ सरस्वती गागराई, गुरुचरण पूर्ति, कुड़माली भाषा के डॉ राकेश किरण, खड़िया भाषा के डॉ किरण कुल्लू और नागपुरी भाषा के डॉ बीरेन्द्र कुमार महतो की ओर से रांची विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ कामिनी कुमार को पत्र लिख कर अपनी व्यथा बतानी पड़ी है.
कुलपति को लिखे पत्र में सहायक प्राध्यापकों ने कहा कि पिछले दो वर्षों से उन्हें मानदेय का भुगतान नहीं किया गया है.
इस वजह से हमारी आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक हो गयी है.
तत्कालीन विभागाध्यक्ष डॉ हरि उराँव की ओर से मानदेय की संचिका विश्वविद्यालय को भेजी ही नहीं गयी.
रिपोर्ट- करिश्मा