रांची: जमशेदपुर पूर्वी विधानसभा सीट हमेशा से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की परंपरागत सीट रही है। रघुवर दास ने 1995 से 2014 तक इस सीट पर लगातार जीत दर्ज की। हालांकि, 2019 में भाजपा ने सरयू राय को टिकट नहीं दिया, जिससे नाराज होकर सरयू राय ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फैसला किया और रघुवर दास को हराया। सरयू की इस जीत ने जमशेदपुर पूर्वी सीट को देशभर में चर्चित कर दिया।
2024 के चुनाव में रघुवर दास खुद नहीं हैं, लेकिन उनकी बहू, पूर्णिमा दास, भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। इस बार उन्हें भितरघात से निपटने की चुनौती का सामना करना पड़ेगा। पार्टी के भीतर असंतोष भी बढ़ता जा रहा है, क्योंकि भाजपा और आरएसएस से जुड़े शिवशंकर सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा की है। कई अन्य नेता भी पार्टी के फैसले से नाराज हैं, जिससे चुनावी माहौल में हलचल मच गई है।
इस बार, रघुवर दास की उपस्थिति चुनाव में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी, चाहे वह व्यक्तिगत दौरे पर ही क्यों न आएं। मतदाताओं के बीच उनके समर्थन का संदेश महत्वपूर्ण रहेगा।
वहीं, कांग्रेस के लिए जमशेदपुर में स्थिति बेहतर नहीं है। पूर्व सांसद अजय कुमार के चुनाव लड़ने की संभावना है, लेकिन कांग्रेस के जिलाध्यक्ष आनंद बिहारी दूबे भी ताल ठोक रहे हैं। दोनों ही नेताओं के बीच तकरार की स्थिति नजर आ रही है, जिससे चुनावी रणनीति और भी जटिल हो सकती है।
सरयू राय विधायक बनने के बाद जब उन्हें लगा कि भाजपा पूर्वी सीट नहीं छोड़ेगी, तब उन्होंने जदयू का दामन थामा। लेकिन, रघुवर दास के कारण जदयू को यहां सफलता नहीं मिली। चर्चा है कि रघुवर दास ने भी चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी।
इस चुनाव में जमशेदपुर में रघुवर, सरयू और बन्ना गुप्ता के बीच कड़वाहट की झलक देखने को मिलेगी। यह चुनाव केवल राजनीतिक विरासत का नहीं, बल्कि पार्टी के भीतर उठापटक का भी है।